Saturday, September 8, 2018

मुलाकात







ये पल कैसे भूलू!



आज दिनांक 08/09/2018 को आ0:- शैलेन्द्र खरे "सोम" ( छंद गुरू ) जी का फोन आया और अचानक से मुझे बताया। कि नीतेन्द्र हम छतरपुर आये हैं। आप कहा पर हो।मेरा मन इतना ही सुनते गद् गद् हो गया। मैनें कहा गुरूवर आप कहा हैं। में वही आता हूँ। गुरूवर जी ने पता बताया।तो मैं इतना खुश था की पता ही सही से याद नही रहा थोड़ा आगे बढ़कर मैंने फिर से फोन किया तो आदरणीय ने बताया कि हम अपनी बहिन जी के यहा पर हैं जो सटई रोड पर मकान पड़ता हैं। मैं बहुत हर्षित था। कि ना जाने कितने दिनो बाद गुरुवर से मुलाकात का द्वितीय अवसर प्राप्त हो रहा हैं। जैसे ही मैं उस जगह पर पहुंचा तो चारो ओर देखने लगा पर दिखे नही पर थोड़ी देर वहा खड़ा होने के बाद सामने के रास्ते से आते हुये दिखे मैं दौड़कर गया और गुरुवर के चरण स्पर्श किया और गुरूदेव ने मुझे अपने हृदय से लगा लिया। आज मानो ऐसा लग रहा हैं कि मुझे ईश्वर ने कितना सुंदर अवसर दिया हैं। जिसे पाकर हम धन्य हो गये।
                 फिर गुरुदेव ने कहा कि प्रिये नीतेन्द्र मुझे आ0:- सुरेन्द्र शर्मा सुमन जी से मिलना हैं। जो कि बहुत अच्छे साहित्यकार हैं। हमने तुरंत हां की और साथ आ0:-जयकांत पाठक जी भी मिलना चाहते थे । गुरुदेव से तो उनका भी फोन मेरे पास आ रहा हैं। तो गुरुदेव के आदेश को पाते हुए। चले तो गुरुदेव ने बिना मोटरसाइकिल के चलने को कहा। बोलो चलो घूमते हुए पैदल चलते हैं तकरीबन डेढ़ किलोमीटर दूर घर था फिर भी वो पैदल चलने को तैयार थे। थोड़े ही दूर चले तो आ0:- जयकांत पाठक जी मिले रास्ते जो इंतजार कर रहे थे। गुरुवर को प्रणाम किये और साथ में आ0:- सुमन जी के घर की ओर हम पाठक जी गुरुदेव चलने लगे तथा चारो तरफ का नज़ारा देखते हुए। आ0:- सुमन दादा जी के घर पहुंचे । आ0:- सुमन दादा भी गुरुदेव से मिलना चाहते थे। ज्यों ही गुरुदेव को देखा छत से तुरंत नीचे आये। और दोनो आ0:- को भेंट हुई। और चाय नाश्ता के साथ मुह भी मीठा कराया तथा फलाहार भी हुआ। फिर लगभग सभी आ0:- का साहित्यिक परिचय हुआ तथा आ0:-सुमन दादा जी की रचनात्मक लेखन सुना देखा और पढ़ा और गुरूदेव से भी हमें और आ0:- पाठक जी को बहुत कुछ सुनने को मिला । आज मानो ऐसा लग रहा था। जैसे हम सुमन दादा के घर में जबकि स्वर्ग लोक में बैठे हुये हैं।साहित्यिक चर्चा होती रही लगभग चार- पाँच घंटों तक इसके बाद फिर सभी को प्रणाम करते हुये। आ0:-सुमन दादा के यहा से हम,पाठक जी और गुरूदेव आने लगे। फिर रास्ते में ही पाठक जी ने प्रणाम किया और वो अपने घर के लिए गये। तथा फिर गुरुदेव के साथ गुरुवर जी की बहिन जी के घर पहुंचे और गुरूदेव ने आज्ञा लेकर अपने नौगाँव के लिए जाने को कहा बहुत रोकने बाद भी गुरुदेव ने बताया। जरूरी काम होने के कारण मुझे घर जाना हैं। तो बहिन जी के मैं चरण स्पर्श करते हुये । आ0:- गुरुवर को गाड़ी में बिठाकर कर गुरुदेव के चरण स्पर्श करते हुए। आज्ञा लेते हुए। वापिस अपने घर आया।
         यदि कही पर लेखन में कोई त्रुटिपूर्ण हो तो कृपया क्षमा करें। मन के भाव सहित आज रहा नही गया मुझे कि हम सभी को वो पल बताये।
     
धन्यवाद!


स्थान:- सटई रोड छतरपुर  ( मध्यप्रदेश )


   - नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
      छतरपुर ( मध्यप्रदेश )
      सम्पर्क :- 8310237314 



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