Monday, December 30, 2019

काव्य गोष्ठी राष्ट्रीय कवि संगम छतरपुर मध्यप्रदेश इकाई



*राष्ट्र जागरण धर्म हमारा*

30 दिसम्बर 2019 को *नव वर्ष* के उपलक्ष्य में *राष्ट्रीय कवि संगम, जिला छतरपुर इकाई, मध्यप्रदेश* द्वारा शहर के प्रतिष्ठित बिद्यालय *हाईटेक द पब्लिक स्कूल, छत्रसाल नगर, छतरपुर* में एक बहुत ही सफल *कवि गोष्ठी* का आयोजन किया गया। जिसमें ऐसे *नवोदित साहित्यकारों* को अवसर दिया गया जिन्होंने पहली बार इस कवि गोष्ठी में काव्य पाठ किया।
अध्यक्षता - वरिष्ठ कवि सुरेंद्र शर्मा सुमन जी ( संरक्षक राष्ट्रीय कवि संगम, छतरपुर, मध्यप्रदेश)
मुख्य अतिथि - वरिष्ठ कवि डॉ० राघवेंद्र उदैनिया जी
मुख्य कवि - आ० अभिराम पाठक जी,आ० अजय मोहन तिवारी जी,राम लला शर्मा 'रमन' जी,सत्यम वैद्य।
संयोजन - सुश्री नम्रता जैन ( प्रदेश मंत्री, राष्ट्रीय कवि संगम, मध्यप्रदेश)
संचालन - कवि नीतेन्द्र सिंह परमार "भारत"
सहयोग - कवि जयकांत पाठक ( जिला महामंत्री, राष्ट्रीय कवि संगम, छतरपुर, मध्यप्रदेश)
नवोदित कवि - जयराम पाठक, हरिशंकर राठौर,शिवाकांत तिवारी, उत्कर्ष जैन,हरिओम तिवारी।
आयोजक:-विद्यालय संचालक श्री नवीन कुमार जैन।

कार्यक्रम संचालक
नीतेन्द्र सिंह परमार "भारत"
छतरपुर मध्यप्रदेश


















Friday, December 27, 2019

छंद विचार

प्रति चरण सोलह-सोलह मात्राओं का ऐसा छंद है जिसके कुल चार चरण होते हैं. यानि प्रत्येक चरण में सोलह मात्रायें होती हैं.
चौपाई के दो चरणों को अर्द्धाली कहते हैं. यह अति प्रसिद्ध छंद है.

इसका चरणांत जगण (लघु गुरु लघु यानि ।ऽ। यानि 121) या तगण (गुरु गुरु लघु यानि ऽऽ। यानि 221) से नहीं होता. यानि चरणों के अंत में किसी रूप में गुरु पश्चात तुरत एक लघु न आवे.

इस लिये चरणांत गुरु गुरु (ऽऽ यानि 22) या लघु लघु गुरु (।।ऽ यानि 112) या गुरु लघु लघु (ऽ।। यानि 211) या लघु लघु लघु लघु (।।।। यानि 1111) से होता है.

1. इस छंद में कलों के संयोजन पर विशेष ध्यान रखा जाता है. यानि द्विकल या चौकल के बाद कोई सम मात्रिक कल अर्थात द्विकल या चौकल ही रखते हैं.

2. विषम मात्रिक कल होने पर तुरत एक और विषम मात्रिक कल रख कर सम मात्रिक कर लेते हैं. यह अनिवार्य है. यानि दोनों त्रिकलों को साथ रखने से षटकल बन जाता है जो कि सम मात्रिक कल ही होता है.

3. किसी त्रिकल के बाद कोई सम मात्रिक कल यानि द्विकल या चौकल किसी सूरत में न रखें.

4. यह अवश्य है, कि किसी त्रिकल के बाद का चौकल यदि जगण (लघु गुरु लघु यानि ।ऽ। यानि 121) के रूप में आ रहा हो तो कई बार क्षम्य भी हो सकता है. क्यों कि जगण के पहली दो मात्राएँ उच्चारण के अनुसार त्रिकल का ही निर्माण करती हैं.
जैसे, राम महान कहें सब कोई .. .

यहाँ, राम (21) यानि त्रिकल के बाद महान (121) का चौकल आता है लेकिन इसके जगण होने के कारण महान के महा से राम का षटकल बन जाता है तथा महान का बचा हुआ न अगले शब्द कहें (12) के त्रिकल के साथ चौकल (न-कहें) बनाता हुआ आने वालों शब्दों सब और कोई के साथ प्रवाह में आजाता है.
यानि उच्चारण विन्यास हुआ -
राम महा - न कहें - सब - कोई .. अर्थात
षटकल - चौकल - द्विकल - चौकल .. इस तरह पूरा चरण संयत रूप से सम मात्रिक शब्दों का समूह हो जाता है.

कलों के विन्यास के अनुसार निम्नलिखित व्यवहार याद रखना आवश्यक है :
1. सम-सम सम-सम सम रखते हैं .. कुल 16 मात्राएँ
2. विषम-विषम पर सम रखते हैं .... . कुल 16 मात्राएँ
3. विषम-विषम पर शब्द रखेंगे .... .... कुल 16 मात्राएँ

Monday, December 23, 2019

सीता छंद विधान

वर्णिक छंदों का वाचिक प्रयोग ===============
      कुछ छंदों में वर्णों की संख्या निश्चित होती है, इन्हें वर्णिक छंद कहते हैं। इनमें से कुछ वर्णिक छंदों में वर्णों का मात्राभार भी सुनिश्चित होता है, इन्हें वर्णवृत्त कहते हैं। वर्ण वृत्तों की एक निश्चित वर्णिक मापनी भी होती है जिसमें गुरु के स्थान पर दो लघु प्रयोग करने की छूट नहीं होती है, इसलिए इन्हें मापनीयुक्त वर्णिक छंद भी कह सकते हैं। मापनीयुक्त वर्णिक छंदों अर्थात वर्णवृत्तों में यदि गुरु के स्थान पर दो लघु प्रयोग करने की छूट ले ली जाये तो छंद को रचना बहुत सरल हो जाता है और वह नये रूप में वर्णिक छंद का वाचिक रूप होता है। इस रूप में इन छंदों का प्रयोग गीत, गीतिका, ग़ज़ल, मुक्तक, भजन, कीर्तन और फिल्मी गानों में बहुलता से हो रहा है और यह प्रयोग बहुत ही लोकप्रिय सिद्ध हुआ है। मापनी युक्त वर्णिक छंदों या वर्णवृत्तों को वाचिक रूप में प्रयोग करना शास्त्र सम्मत है भी या नहीं? इस प्रश्न पर विचार करें तो हम पाते हैं कि हमारे पारंपरिक छंद शास्त्र में स्वयं इस प्रकार के प्रयोग किए गये हैं।  अनेक मात्रिक छंद वस्तुतः मापनीयुक्त वर्णिक छंदों या वर्णवृत्तों के वाचिक रूप ही है। इससे स्पष्ट है कि ऐसा प्रयोग करने की अनुमति हमारा छंद शास्त्र देता है। तथापि किसी वर्णिक छंद का वाचिक रूप में प्रयोग करते समय यह अवश्य परख लेना आवश्यक है कि इस परिवर्तन से छंद का मूल स्वरूप विकृत न होने पाये। हम केवल उन्हीं वर्णिक छंदों को वाचित रूप में प्रयोग कर सकते हैं जिनकी मूल प्रकृति ऐसा करने से अक्षुण्ण बनी रहती है। आइए अब कुछ उदाहरणों के माध्यम से ऐसे प्रयोगों पर दृष्टिपात किया जाये-

सोदाहरण व्याख्या-

(1) सीता
यह एक 'मापनीयुक्त वर्णिक छंद' है, जिसमें वर्णों की संख्या निश्चित होती है अर्थात किसी गुरु 2 के स्थान पर दो लघु 11 प्रयोग करने की छूट नहीं होती है। ऐसे छंद को 'वर्ण वृत्त' भी कहा जाता है। इसका विधान निम्नप्रकार है -
वर्णिक मापनी - 2122 2122 2122 212
वर्णिक लगावली- गालगागा गालगागा गालगागा गालगा
पारंपरिक सूत्र - राजभा ताराज मातारा यमाता राजभा (अर्थात र त म य र) 
जबकि य म त र ज भ न स ल ग क्रमशः यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण, सगण, लघु और गुरु को व्यक्त करते हैं।

सीता छंद का उदाहरण -
शीत ने कैसा उबाया, क्या बताएं साथियों!
माह दो कैसे बिताया, क्या बताएं साथियों!
रक्त में गर्मी नहीं, गर्मी न देखी नोट में,
सूर्य भी देखा छुपा-सा कोहरे की ओट में।
- ओम नीरव

      अब यदि इस छंद में गुरु के स्थान पर दो लघु का प्रयोग किया जाये तो हम इसे वाचिक सीता छंद कहेंगे जो मात्रिक छंद गीतिका के नाम से हमारे छंद शस्त्र में पहले से उपस्थित है। इसका विधान निम्नप्रकार है-
गीतिका (26 मात्रा, 14,12 या 12,14 पर यति उत्तम)
वाचिक मापनी – 2122 2122 2122 212
वाचिक लगावली- गालगागा गालगागा गालगागा गालगा

गीतिका छंद का उदाहरण -
शब्द के संग्राम में तलवार है यह गीतिका,
कायरों पर सिहनी का वार है यह गीतिका।
विश्व में हिन्दी हमारे राष्ट्र की पहचान है,
गीतिका में हिन्द-हिन्दी का अमित सम्मान है।
- राहुल द्विवेदी स्मित

उर्दू ग़ज़लों में इस छंद की मापनी को इसप्रकार लिखा जाता है-
उर्दू मापनी- फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
उर्दू बहर- बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़
और इसप्रकार छंद वाचिक सीता अथवा मात्रिक गीतिका पर आधारित ग़ज़लों का बहुलता से सृजन किया जाता है।
वाचिक सीता या गीतिका छंद पर रचित दुष्यंत कुमार की एक ग़ज़ल का मुखड़ा दृष्टव्य है-
गीतिका छंद पर आधारित एक शेर -
एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है,
आज शायर यह तमाशा देखकर हैरान है ।
- दुष्यंत कुमार

      इसी वाचिक सीता या गीतिका पर अनेक फिल्मी गानों का सृजन भी किया गया है, जैसे -
गीतिका छंद पर आधारित फिल्मी गीत -
1. चुपके' चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
2. आपकी नज़रों ने’ समझा प्यार के काबिल मुझे

इसी क्रम में हम कुछ और उदाहरण संक्षेप में प्रस्तुत करते हैं जिनमें वणिक छंदों को वाचिक रूप में प्रयोग किया गया है-

प्रिय मित्रों, सीता छंद लिखें  तो उसमें लघु के स्थान पर लघु और गुरु के स्थान पर गुरु ही रखें यानि

2122 2122 2122 212 निश्चित शब्द ।

इसी छंद में अगर  गुरु के स्थान पर दो लघु का प्रयोग करने की अनुमति लें तो वह गीतिका छंद बन जाता है।

दोनों तरह से चार चार चरण लिखने का प्रयास करें। दो दो चरण समतुकांत। सधे हुए हिंदी शब्द युक्त।

Friday, December 20, 2019

कवि सुमन जी

ज़हर मिश्रित हवाएं चल रही हैं देश में यारो।
अज़व दुर्गन्ध सी आती है इस परिवेश में यारो ।
समर्थन कर रहे दंगाइयों का सिरफिरे नेता,
लुटेरे घूमते हैं अब फकीर भेष में यारो।।

@  कवि सुरेंद्र शर्मा सुमन छतरपुर मध्य प्रदेश

Saturday, December 7, 2019

हम नर्सिंग ऑफिसर है

आप भी सोचे क्या ये बात वाकई में सही है।

हमारा शरीर *एनाटॉमी* और *फिजियोलॉजी* है।
व्यवहार हमारा *साइकॉलजी* है।।
तनाव एक *मैंटल* है और।
बीमारी को सही करना *मेडीकल सर्जिकल* है।
पोषण पूरा *न्यूट्रिशन* है।
समाज हमारा *सोसियोलॉजी* है।
मुहल्ला हमारी *कम्यूनिटी* है।
पीढ़ी दर पीढ़ी *जेनेटिक* है।
जो नया सीखते है वो *रिसर्च* है।
जो आकड़े निकलते है वो *स्टेटिक्स* है।
जो हमारे शरीर का विकास होता है वो *गाइनिकोलॉजी* है।
जीवन को सुगम बनाते है वो *मैनेजमेंट* है।
बीमारी यानी *पैथोलॉजी* से युद्ध करने के लिए उपयोग में लाये जाने औज़ार *फारमेकोलॉजी* है।
हॉस्पिटल मंदिर है और *नर्सिंग फाउंडेशन* एक गीता है।

                लोग पूछते है नर्सिंग क्या है? ये नहीं जानते के पूरा जीवन ही नर्सिंग है और हम सब एक नर्स है।

नीतेन्द्र सिंह परमार
( नर्सिंग ट्विटर )
मो. नं. 8109643725

प्रयागराज संगम की पावन नगरी में साहित्यिक क्षेत्र में सुप्रसिद्ध संगठन "विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत" का छठवाॅं वार्षिकोत्सव मनाया गया।

दिनांक 30/11/2024 को प्रयागराज संगम की पावन नगरी में साहित्यिक क्षेत्र में सुप्रसिद्ध संगठन "विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत" का छठवाॅं ...