Monday, December 30, 2019

काव्य गोष्ठी राष्ट्रीय कवि संगम छतरपुर मध्यप्रदेश इकाई



*राष्ट्र जागरण धर्म हमारा*

30 दिसम्बर 2019 को *नव वर्ष* के उपलक्ष्य में *राष्ट्रीय कवि संगम, जिला छतरपुर इकाई, मध्यप्रदेश* द्वारा शहर के प्रतिष्ठित बिद्यालय *हाईटेक द पब्लिक स्कूल, छत्रसाल नगर, छतरपुर* में एक बहुत ही सफल *कवि गोष्ठी* का आयोजन किया गया। जिसमें ऐसे *नवोदित साहित्यकारों* को अवसर दिया गया जिन्होंने पहली बार इस कवि गोष्ठी में काव्य पाठ किया।
अध्यक्षता - वरिष्ठ कवि सुरेंद्र शर्मा सुमन जी ( संरक्षक राष्ट्रीय कवि संगम, छतरपुर, मध्यप्रदेश)
मुख्य अतिथि - वरिष्ठ कवि डॉ० राघवेंद्र उदैनिया जी
मुख्य कवि - आ० अभिराम पाठक जी,आ० अजय मोहन तिवारी जी,राम लला शर्मा 'रमन' जी,सत्यम वैद्य।
संयोजन - सुश्री नम्रता जैन ( प्रदेश मंत्री, राष्ट्रीय कवि संगम, मध्यप्रदेश)
संचालन - कवि नीतेन्द्र सिंह परमार "भारत"
सहयोग - कवि जयकांत पाठक ( जिला महामंत्री, राष्ट्रीय कवि संगम, छतरपुर, मध्यप्रदेश)
नवोदित कवि - जयराम पाठक, हरिशंकर राठौर,शिवाकांत तिवारी, उत्कर्ष जैन,हरिओम तिवारी।
आयोजक:-विद्यालय संचालक श्री नवीन कुमार जैन।

कार्यक्रम संचालक
नीतेन्द्र सिंह परमार "भारत"
छतरपुर मध्यप्रदेश


















Friday, December 27, 2019

छंद विचार

प्रति चरण सोलह-सोलह मात्राओं का ऐसा छंद है जिसके कुल चार चरण होते हैं. यानि प्रत्येक चरण में सोलह मात्रायें होती हैं.
चौपाई के दो चरणों को अर्द्धाली कहते हैं. यह अति प्रसिद्ध छंद है.

इसका चरणांत जगण (लघु गुरु लघु यानि ।ऽ। यानि 121) या तगण (गुरु गुरु लघु यानि ऽऽ। यानि 221) से नहीं होता. यानि चरणों के अंत में किसी रूप में गुरु पश्चात तुरत एक लघु न आवे.

इस लिये चरणांत गुरु गुरु (ऽऽ यानि 22) या लघु लघु गुरु (।।ऽ यानि 112) या गुरु लघु लघु (ऽ।। यानि 211) या लघु लघु लघु लघु (।।।। यानि 1111) से होता है.

1. इस छंद में कलों के संयोजन पर विशेष ध्यान रखा जाता है. यानि द्विकल या चौकल के बाद कोई सम मात्रिक कल अर्थात द्विकल या चौकल ही रखते हैं.

2. विषम मात्रिक कल होने पर तुरत एक और विषम मात्रिक कल रख कर सम मात्रिक कर लेते हैं. यह अनिवार्य है. यानि दोनों त्रिकलों को साथ रखने से षटकल बन जाता है जो कि सम मात्रिक कल ही होता है.

3. किसी त्रिकल के बाद कोई सम मात्रिक कल यानि द्विकल या चौकल किसी सूरत में न रखें.

4. यह अवश्य है, कि किसी त्रिकल के बाद का चौकल यदि जगण (लघु गुरु लघु यानि ।ऽ। यानि 121) के रूप में आ रहा हो तो कई बार क्षम्य भी हो सकता है. क्यों कि जगण के पहली दो मात्राएँ उच्चारण के अनुसार त्रिकल का ही निर्माण करती हैं.
जैसे, राम महान कहें सब कोई .. .

यहाँ, राम (21) यानि त्रिकल के बाद महान (121) का चौकल आता है लेकिन इसके जगण होने के कारण महान के महा से राम का षटकल बन जाता है तथा महान का बचा हुआ न अगले शब्द कहें (12) के त्रिकल के साथ चौकल (न-कहें) बनाता हुआ आने वालों शब्दों सब और कोई के साथ प्रवाह में आजाता है.
यानि उच्चारण विन्यास हुआ -
राम महा - न कहें - सब - कोई .. अर्थात
षटकल - चौकल - द्विकल - चौकल .. इस तरह पूरा चरण संयत रूप से सम मात्रिक शब्दों का समूह हो जाता है.

कलों के विन्यास के अनुसार निम्नलिखित व्यवहार याद रखना आवश्यक है :
1. सम-सम सम-सम सम रखते हैं .. कुल 16 मात्राएँ
2. विषम-विषम पर सम रखते हैं .... . कुल 16 मात्राएँ
3. विषम-विषम पर शब्द रखेंगे .... .... कुल 16 मात्राएँ

Monday, December 23, 2019

सीता छंद विधान

वर्णिक छंदों का वाचिक प्रयोग ===============
      कुछ छंदों में वर्णों की संख्या निश्चित होती है, इन्हें वर्णिक छंद कहते हैं। इनमें से कुछ वर्णिक छंदों में वर्णों का मात्राभार भी सुनिश्चित होता है, इन्हें वर्णवृत्त कहते हैं। वर्ण वृत्तों की एक निश्चित वर्णिक मापनी भी होती है जिसमें गुरु के स्थान पर दो लघु प्रयोग करने की छूट नहीं होती है, इसलिए इन्हें मापनीयुक्त वर्णिक छंद भी कह सकते हैं। मापनीयुक्त वर्णिक छंदों अर्थात वर्णवृत्तों में यदि गुरु के स्थान पर दो लघु प्रयोग करने की छूट ले ली जाये तो छंद को रचना बहुत सरल हो जाता है और वह नये रूप में वर्णिक छंद का वाचिक रूप होता है। इस रूप में इन छंदों का प्रयोग गीत, गीतिका, ग़ज़ल, मुक्तक, भजन, कीर्तन और फिल्मी गानों में बहुलता से हो रहा है और यह प्रयोग बहुत ही लोकप्रिय सिद्ध हुआ है। मापनी युक्त वर्णिक छंदों या वर्णवृत्तों को वाचिक रूप में प्रयोग करना शास्त्र सम्मत है भी या नहीं? इस प्रश्न पर विचार करें तो हम पाते हैं कि हमारे पारंपरिक छंद शास्त्र में स्वयं इस प्रकार के प्रयोग किए गये हैं।  अनेक मात्रिक छंद वस्तुतः मापनीयुक्त वर्णिक छंदों या वर्णवृत्तों के वाचिक रूप ही है। इससे स्पष्ट है कि ऐसा प्रयोग करने की अनुमति हमारा छंद शास्त्र देता है। तथापि किसी वर्णिक छंद का वाचिक रूप में प्रयोग करते समय यह अवश्य परख लेना आवश्यक है कि इस परिवर्तन से छंद का मूल स्वरूप विकृत न होने पाये। हम केवल उन्हीं वर्णिक छंदों को वाचित रूप में प्रयोग कर सकते हैं जिनकी मूल प्रकृति ऐसा करने से अक्षुण्ण बनी रहती है। आइए अब कुछ उदाहरणों के माध्यम से ऐसे प्रयोगों पर दृष्टिपात किया जाये-

सोदाहरण व्याख्या-

(1) सीता
यह एक 'मापनीयुक्त वर्णिक छंद' है, जिसमें वर्णों की संख्या निश्चित होती है अर्थात किसी गुरु 2 के स्थान पर दो लघु 11 प्रयोग करने की छूट नहीं होती है। ऐसे छंद को 'वर्ण वृत्त' भी कहा जाता है। इसका विधान निम्नप्रकार है -
वर्णिक मापनी - 2122 2122 2122 212
वर्णिक लगावली- गालगागा गालगागा गालगागा गालगा
पारंपरिक सूत्र - राजभा ताराज मातारा यमाता राजभा (अर्थात र त म य र) 
जबकि य म त र ज भ न स ल ग क्रमशः यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण, सगण, लघु और गुरु को व्यक्त करते हैं।

सीता छंद का उदाहरण -
शीत ने कैसा उबाया, क्या बताएं साथियों!
माह दो कैसे बिताया, क्या बताएं साथियों!
रक्त में गर्मी नहीं, गर्मी न देखी नोट में,
सूर्य भी देखा छुपा-सा कोहरे की ओट में।
- ओम नीरव

      अब यदि इस छंद में गुरु के स्थान पर दो लघु का प्रयोग किया जाये तो हम इसे वाचिक सीता छंद कहेंगे जो मात्रिक छंद गीतिका के नाम से हमारे छंद शस्त्र में पहले से उपस्थित है। इसका विधान निम्नप्रकार है-
गीतिका (26 मात्रा, 14,12 या 12,14 पर यति उत्तम)
वाचिक मापनी – 2122 2122 2122 212
वाचिक लगावली- गालगागा गालगागा गालगागा गालगा

गीतिका छंद का उदाहरण -
शब्द के संग्राम में तलवार है यह गीतिका,
कायरों पर सिहनी का वार है यह गीतिका।
विश्व में हिन्दी हमारे राष्ट्र की पहचान है,
गीतिका में हिन्द-हिन्दी का अमित सम्मान है।
- राहुल द्विवेदी स्मित

उर्दू ग़ज़लों में इस छंद की मापनी को इसप्रकार लिखा जाता है-
उर्दू मापनी- फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
उर्दू बहर- बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़
और इसप्रकार छंद वाचिक सीता अथवा मात्रिक गीतिका पर आधारित ग़ज़लों का बहुलता से सृजन किया जाता है।
वाचिक सीता या गीतिका छंद पर रचित दुष्यंत कुमार की एक ग़ज़ल का मुखड़ा दृष्टव्य है-
गीतिका छंद पर आधारित एक शेर -
एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है,
आज शायर यह तमाशा देखकर हैरान है ।
- दुष्यंत कुमार

      इसी वाचिक सीता या गीतिका पर अनेक फिल्मी गानों का सृजन भी किया गया है, जैसे -
गीतिका छंद पर आधारित फिल्मी गीत -
1. चुपके' चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
2. आपकी नज़रों ने’ समझा प्यार के काबिल मुझे

इसी क्रम में हम कुछ और उदाहरण संक्षेप में प्रस्तुत करते हैं जिनमें वणिक छंदों को वाचिक रूप में प्रयोग किया गया है-

प्रिय मित्रों, सीता छंद लिखें  तो उसमें लघु के स्थान पर लघु और गुरु के स्थान पर गुरु ही रखें यानि

2122 2122 2122 212 निश्चित शब्द ।

इसी छंद में अगर  गुरु के स्थान पर दो लघु का प्रयोग करने की अनुमति लें तो वह गीतिका छंद बन जाता है।

दोनों तरह से चार चार चरण लिखने का प्रयास करें। दो दो चरण समतुकांत। सधे हुए हिंदी शब्द युक्त।

Friday, December 20, 2019

कवि सुमन जी

ज़हर मिश्रित हवाएं चल रही हैं देश में यारो।
अज़व दुर्गन्ध सी आती है इस परिवेश में यारो ।
समर्थन कर रहे दंगाइयों का सिरफिरे नेता,
लुटेरे घूमते हैं अब फकीर भेष में यारो।।

@  कवि सुरेंद्र शर्मा सुमन छतरपुर मध्य प्रदेश

Saturday, December 7, 2019

हम नर्सिंग ऑफिसर है

आप भी सोचे क्या ये बात वाकई में सही है।

हमारा शरीर *एनाटॉमी* और *फिजियोलॉजी* है।
व्यवहार हमारा *साइकॉलजी* है।।
तनाव एक *मैंटल* है और।
बीमारी को सही करना *मेडीकल सर्जिकल* है।
पोषण पूरा *न्यूट्रिशन* है।
समाज हमारा *सोसियोलॉजी* है।
मुहल्ला हमारी *कम्यूनिटी* है।
पीढ़ी दर पीढ़ी *जेनेटिक* है।
जो नया सीखते है वो *रिसर्च* है।
जो आकड़े निकलते है वो *स्टेटिक्स* है।
जो हमारे शरीर का विकास होता है वो *गाइनिकोलॉजी* है।
जीवन को सुगम बनाते है वो *मैनेजमेंट* है।
बीमारी यानी *पैथोलॉजी* से युद्ध करने के लिए उपयोग में लाये जाने औज़ार *फारमेकोलॉजी* है।
हॉस्पिटल मंदिर है और *नर्सिंग फाउंडेशन* एक गीता है।

                लोग पूछते है नर्सिंग क्या है? ये नहीं जानते के पूरा जीवन ही नर्सिंग है और हम सब एक नर्स है।

नीतेन्द्र सिंह परमार
( नर्सिंग ट्विटर )
मो. नं. 8109643725

Sunday, November 24, 2019

ई-पत्रिका जनचेतना

*विशेष सूचना*

जय जय हिंदी के सभी सम्मानित रचनाकारों को सूचित किया जाता है कि संस्था *सशुल्क एकल ई संग्रह प्रकाशन* योजना की शुरुआत करने जा रही है जो भी रचनाकार अपना एकल ई संग्रह प्रकाशित करवाना चाहता है सम्पर्क करें।

नियम एवं शर्तें:-
1 - 21 रचनाएँ , जीवन परिचय अधिकतम  कुल पृष्ठ 25 शुल्क 1100 ₹।

2- 51 रचनाएँ , जीवन परिचय अधिकतम  कुल पृष्ठ 55 शुल्क 2500 ₹।

3- 75 रचनाएँ , जीवन परिचय अधिकतम  कुल पृष्ठ 80 शुल्क 4000 ₹।

4- 101 रचनाएँ , जीवन परिचय अधिकतम  कुल पृष्ठ 105 शुल्क 5500 ₹।

इच्छुक रचनाकार संपर्क करें।

नोट- संग्रह को isbn नम्बर दिलाने का केवल प्रयास रहेगा पूर्ण गारण्टी नहीं रहेगी।

ओम प्रकाश फुलारा "प्रफुल्ल"
अध्यक्ष
प्रदेश इकाई उत्तराखंड
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत
9411583567

Friday, November 22, 2019

छंद सृजन

हिन्दी छन्द परिचय, गण, मात्रा गणना, छन्द भेद तथा उपभेद - (भाग २) में बताया गया कि छन्द मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं

१- वर्णिक छन्द
२- मात्रिक छन्द

तथा इनका परिचय भी प्रस्तुत किय गया अब छन्द के भेद के साथ उप भेद को भी जानेंगे

जैसा कि आपने जाना प्रत्येक पंक्ति को पद कहते हैं पद में यति/गति अर्थात विश्राम के आधार पर के आधार पर चरण का निर्माण होता है यति/गति अर्थात विश्राम न होने पर चरण नहीं बनता है
जैसे चौपाई में चार पद होते हैं तथा पदों में विश्राम नहीं होता इसलिए पद में चरण का निर्माण नहीं होता है

दो पंक्ति को द्विपदी कहते हैं
चार पंक्ति को चतुष्पदी कहते हैं

मुख्यतः छन्द के दो भेद १ - वर्णिक छन्द तथा २- मात्रिक छन्द के तीन तीन उप भेद होते हैं

मात्रिक छन्द के उप भेद

क) - सम मात्रिक छन्द
ख) - अर्ध सम मात्रिक छन्द
ग) - विषम मात्रिक छन्द

क) - सम मात्रिक छन्द - जिस द्विपदी के चरों चरण की मात्राएँ समान होती हैं अथवा जिस चतुष्पदी के चारो पद की कुल मात्राएं सामान होती हैं उन्हें सम मात्रिक छन्द कहते हैं

ऐसे चतुष्पदी का प्रचिलित उदाहरण चौपाई छन्द है जिसके चारो पद में १६ - १६ मात्राएं होती है|
विधान - ४ पद, प्रत्येक पद में १६ मात्रा
उदाहरण -
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
जय कपीस तिहुं लोक उजागर
राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवन सुत नामा 

मात्रा गणना
ज१ य१ ह१ नु१ मा२ न१  ज्ञा२ न१  गु१ न१  सा२ ग१ र१  = १६ मात्रा
ज१ य१ क१ पी२ स१ ति१ हुं१ लो२ क१ उ१ जा२ ग१ र१     = १६ मात्रा
रा२ म१ दू२ त१ अ१ तु१ लि१ त१  ब१ ल१  धा२ मा२      = १६ मात्रा
अं२ ज१ नि१ पु२ त्र१ प१ व१ न१ सु१ त१ ना२ मा२        = १६ मात्रा

चतुष्पदी का एक और उदाहरण कज्जल छन्द है जिसके चारो पद में १४ - १४ मात्राएं होती है, अंत गुरु लघु से होता है |
उदाहरण -
प्रभु मम ओरी देख लेव |  = १४ मात्रा
तुम सम नाहीं और देव |  = १४ मात्रा
कास प्रभु कीजै तोरि सेव | = १४ मात्रा
ताव न् कोऊ तोर भेव |    = १४ मात्रा

द्विपदी का प्रचिलित उदाहरण विधाता छन्द है जिसके चारो चरण में १४ - १४ मात्राएं होती हैं

सम मात्रिक छन्द के दो उप भेद हैं
१ - साधारण सम मात्रिक छन्द
२- दंडक सम मात्रिक छन्द

१ - साधारण सम मात्रिक छन्द - मात्रिक छन्द के अन्तर्गत प्रत्येक चरण अथवा प्रत्येक पद में मात्रा ३२ तक हो तो उसे साधारण सम मात्रिक छन्द कहते हैं
कुछ प्रचिलित छन्द -
उल्लाला छन्द (द्विपदी) प्रत्येक चरण १३ मात्रा
चौपाई छन्द (चतुष्पदी) प्रत्येक पद १६ मात्रा
सुमेरू छन्द (चतुष्पदी) प्रत्येक पद १९ मात्रा
हरिगीतिका छन्द (चतुष्पदी) प्रत्येक पद २८ मात्रा

 
२- दंडक सम मात्रिक छन्द - मात्रिक छन्द के अन्तर्गत प्रत्येक चरण अथवा प्रत्येक पद में मात्रा ३२ से अधिक हो तो उसे दंडक सम मात्रिक छन्द कहते हैं
उदाहरण  
हरिप्रिया छन्द (चतुष्पदी) प्रत्येक पद ४६ मात्रा
हरिप्रिया छन्द उदाहरण -
सोहाने कृपानिधान, देव देव राम चन्द्र भूमि पुत्रिका समेत देव चित्त मोहैं
मानो सुरतरुसमेत, कल्प बेलि छबि निकेत, शोभा श्रृंगार किधौं रोप धरैं सोहैं
लक्ष्मीपति लक्ष्मीयुत देवीयुत ईश किधौं छायायुत परम ईश चारु वेश राखैं 
वन्दैन् जग मात तात, चरण युगल, नीरजात जाको सुर सिद्ध विध मुनिजन अभि लाखैं  

ख)- अर्ध सम मात्रिक छन्द - जिस मात्रिक छन्द के द्विपदी में विषम चरम तथा सम चरण की मात्रा अलग अलग होती है अथवा चतुष्पदी में विषम पद तथा सम पद की मात्रा अलग अलग होती है उसे अर्ध सम मात्रिक छन्द कहते हैं
उदाहरण -
दोहा छन्द में विषम चरण १३ मात्रा तथा सम चरण ११ मात्रा का होता है अतः दोहा अर्ध सम मात्रिक छन्द है
अन्य अर्ध सम मात्रिक छन्द देखें -

सोरठा - (द्विपदी) = विषम चरण - ११ मात्रा / सम चरण - १३ मात्रा

उल्लाल - (चतुष्पदी) = विषम पद - १५ मात्रा / सम पद - १३ मात्रा

बरवै - (द्विपदी) = विषम चरण - १२ मात्रा / सम चरण - ७ मात्रा

ग) - विषम मात्रिक छन्द - जिस मात्रिक छन्द के द्विपदी में चारों चरण अथवा चतुष्पदी में चारो पद की मात्रा अलग अलग होती है उसे विषम मात्रिक छन्द कहते हैं
उदाहरण -
सिंहनी छन्द -(द्विपदी)
प्रथम चरण - १२ मात्रा
द्वितीय चरण - २० मात्रा
तृतीय चरण - १२ मात्रा
चतुर्थ चरण - १८ मात्रा

दो छन्दों के योग से निर्मित छन्द भी विषम मात्रिक छन्द कहलाते हैं
जैसे -
एक दोहा + एक रोला = कुंडलिया छन्द
एक रोला + एक उल्लाला = छप्पय छन्द

Thursday, November 21, 2019

छंद व्याकरण

मात्राभार और कलन की कला

छन्दबद्ध रचना के लिये मात्राभार की गणना का ज्ञान आवश्यक है। मात्राभार दो प्रकार का होता है – वर्णिक भार और वाचिक भार। वर्णिक भार में प्रत्येक वर्ण का भार अलग-अलग यथावत लिया जाता है जैसे – विकल का वर्णिक भार = 111 या ललल जबकि वाचिक भार में उच्चारण के अनुरूप वर्णों को मिलाकर भार की गणना की जाती है जैसे विकल का उच्चारण वि कल है, विक ल नहीं, इसलिए विकल का वाचिक भार है – 12 या लगा। वर्णिक भार की गणना करने के लिए कुछ निश्चित नियम हैं।

वर्णिक भार की गणना

(1) ह्रस्व स्वरों की मात्रा 1 होती है जिसे लघु कहते हैं, जैसे - अ, इ, उ, ऋ की मात्रा 1 है। लघु को 1 या । या ल से भी व्यक्त किया जाता है।

(2) दीर्घ स्वरों की मात्रा 2 होती है जिसे गुरु कहते हैं,जैसे - आ, ई, ऊ, ए,ऐ,ओ,औ की मात्रा 2 है। गुरु को 2 या S या गा से भी व्यक्त किया जाता है।

(3) व्यंजनों की मात्रा 1/ल होती है , जैसे - क,ख,ग,घ / च,छ,ज,झ / ट,ठ,ड,ढ,ण / त,थ,द,ध,न / प,फ,ब,भ,म / य,र,ल,व,श,ष,स,ह।
वास्तव में व्यंजन का उच्चारण स्वर के साथ ही संभव है, इसलिए उसी रूप में यहाँ लिखा गया है। अन्यथा क्, ख्, ग् … आदि को व्यंजन कहते हैं, इनमें अकार मिलाने से क, ख, ग ... आदि बनते हैं जो उच्चारण योग्य होते हैं।

(4) व्यंजन में ह्रस्व इ, उ, ऋ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार 1/ल ही रहता है।

(5) व्यंजन में दीर्घ स्वर आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार 2/गा हो जाता है।

(6) किसी भी वर्ण में अनुनासिक लगने से मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, जैसे – रँग = 11, चाँद = 21, माँ = 2, आँगन = 211, गाँव = 21

(7) लघु वर्ण के ऊपर अनुस्वार लगने से उसका मात्राभार 2 हो जाता है, जैसे – रंग = 21, अंक = 21, कंचन = 211, घंटा = 22, पतंगा = 122

(8) गुरु वर्ण पर अनुस्वार लगने से उसके मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, जैसे – नहीं = 12, भींच = 21, छींक = 21,
कुछ विद्वान इसे अनुनासिक मानते हैं लेकिन मात्राभार यही मानते हैं।

(9) संयुक्ताक्षर का मात्राभार 1 (लघु) होता है, जैसे – स्वर = 11, प्रभा = 12, श्रम = 11, च्यवन = 111

(10) संयुक्ताक्षर में ह्रस्व मात्रा लगने से उसका मात्राभार 1 (लघु) ही रहता है, जैसे – प्रिया = 12, क्रिया = 12, द्रुम = 11, च्युत = 11, श्रुति = 11

(11) संयुक्ताक्षर में दीर्घ मात्रा लगने से उसका मात्राभार 2 (गुरु) हो जाता है, जैसे – भ्राता = 22, श्याम = 21, स्नेह = 21, स्त्री = 2, स्थान = 21

(12) संयुक्ताक्षर से पहले वाले लघु वर्ण का मात्राभार 2 (गुरु) हो जाता है, जैसे – नम्र = 21, सत्य = 21, विख्यात = 221

(13) संयुक्ताक्षर के पहले वाले गुरु वर्ण के मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, जैसे – हास्य = 21, आत्मा = 22, सौम्या = 22, शाश्वत = 211, भास्कर = 211

(14) संयुक्ताक्षर सम्बन्धी नियम (12) के कुछ अपवाद भी हैं, जिसका आधार पारंपरिक उच्चारण है, अशुद्ध उच्चारण नहीं।

जैसे – तुम्हें = 12, तुम्हारा/तुम्हारी/तुम्हारे = 122, जिन्हें = 12, जिन्होंने = 122, कुम्हार = 121, कन्हैया = 122, मल्हार = 121, कुल्हाड़ी = 122
व्याख्या – इन अपवादों में संयुक्ताक्षर का पूर्ववर्ती अक्षर सदैव ऐसा व्यंजन होता है जिसका ‘ह’ के साथ योग करके कोई नया अक्षर हिन्दी वर्ण माला में नहीं बनाया गया है, इसलिए जब इस पूर्ववर्ती व्यंजन का ‘ह’ के साथ योग कर कोई संयुक्ताक्षर बनता हैं तो उसका व्यवहार संयुक्ताक्षर जैसा न होकर एक नए वर्ण जैसा हो जाता है और इसीलिए उसपर संयुक्ताक्षर के नियम लागू नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए न् म् ल् का ‘ह’ के साथ योग करने से बनने वाले संयुक्ताक्षर म्ह न्ह ल्ह ‘एक वर्ण’ जैसा व्यवहार करते है जिससे उनके पहले आने वाले लघु का भार 2 नहीं होता अपितु 1 ही रहता है। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि हिन्दी वर्णमाला के कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग और पवर्ग में पहले व्यंजन में ‘ह’ का योग करने से दूसरा व्यंजन तथा तीसरे व्यंजन में ‘ह’ का योग करने से चौथा व्यंजन बनता है। उदाहरणार्थ -
क् + ह = ख , ग् + ह = घ
च् + ह = छ , ज् + ह = झ
ट् + ह = ठ , ड् + ह = ढ
त् + ह = थ , द् + ह = ध
प् + ह = फ , ब् + ह = भ किन्तु -
न् + ह = न्ह , म् + ह = म्ह , ल् + ह = ल्ह (कोई नया वर्ण नहीं, तथापि व्यवहार नए वर्ण जैसा)

कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं जिनपर उपर्युक्त व्याख्या लागू नहीं होती है, जैसे नन्हा = 22, कुल्हड़ = 211, अल्हड़ = 211 आदि।

वाचिक भार की गणना
वाचिक भार की गणना करने में ‘उच्चारण के अनुरूप’ दो लघु वर्णों को मिलाकर एक गुरु मान लिया जाता है। उदहरणार्थ निम्न शब्दों के वाचिक भार और वर्णिक भार का अंतर दृष्टव्य है -

उदाहरण वाचिक भार, वर्णिक भार (क्रमशः)
कल, दिन, तुम, यदि, लघु, क्षिति, विभु, आदि ... 2 / गा, 11 / लल
अमर, विकल, विविध, मुकुल, मुदित आदि 12 / लगा, 111 / ललल
उपवन, मघुकर, विचलित, अभिरुचि आदि ... 22 / गागा, 1111 / लललल
नीरज, औषधि, शोधित, अंकुर, धूमिल आदि . 22 / गागा, 211 / गालल
चलिए, सुविधा, अवधी, विविधा, कमला आदि 22 / गागा, 112 / ललगा
आइए, माधुरी, स्वामिनी, उर्मिला, पालतू आदि 212 / गालगा, 212 / गालगा
सुपरिचित, अविकसित आदि 122/ललगा (212/गालगा नहीं), 11111 / ललललल
मनचली, किरकिरी, मधुमिता 212/गालगा (122/लगागा नहीं), 1112 / लललगा
असुविधा, सरसता, मचलती आदि 122/लगागा (212/गालगा नहीं), 1112 / लललगा

कलन की कला
जब हम किसी काव्य पंक्ति के मात्राक्रम की गणना करते हैं तो इस क्रिया को कलन कहते हैं, उर्दू में इसे तख्तीअ कहा जाता है। कलन में मात्राभार को व्यक्त करने की कई प्रणाली हैं। हमने ऊपर की विवेचना में मुख्यतः अंकावली या लगावली का प्रयोग किया है, अन्य प्राणियों के रूप में स्वरावली और अरकान का भी प्रयोग किया जाता है। आगामी उदाहरणों में हम इनका भी उल्लेख करेंगे। किसी काव्य पंक्ति का कलन करने के पूर्व यह समझ लेना आवश्यक है वह पंक्ति वर्णिक छंद पर आधारित है या फिर मात्रिक छंद पर। यदि पंक्ति वर्णिक छंद पर आधारित है तो कलन में वर्णिक भार का प्रयोग किया जाएगा और यदि पंक्ति मात्रिक छंद पर आधारित है तो कलन में वाचिक भार का प्रयोग किया जाएगा । एक बात और, काव्य पंक्ति का कलन करते समय मात्रापतन का ध्यान रखना भी आवश्यक है अर्थात जिस गुरु वर्ण में मात्रापतन है उसका भार लघु अर्थात 1 ही माना जाएगा। उदाहरणों से यह बात पूर्णतः स्पष्ट हो जाएगी।

वर्णिक कलन
इसे समझने के लिए महाकवि रसखान की एक पंक्ति लेते हैं -
मानुस हौं तो वही रसखान बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन
यह पंक्ति वर्णिक छंद (किरीट सवैया) पर आधारित है, इसलिए हम इसका कलन करने में वर्णिक भार का ही प्रयोग करेंगे।
पहले हम सभी शब्दों का वर्णिक भार अलग-अलग देखते हैं -
मानुस (211) हौं (2) तो’ (1) वही (12) रसखान (1121) बसौं (12) ब्रज (11) गोकुल (211) गाँव (21) के’ (1) ग्वारन (211)

इस कलन में प्रत्येक वर्ण का अलग-अलग भार यथावत लिखा गया है, दबाकर पढ़ने के कारण ‘तो’ का भार लघु 1 और ‘के’ का भार भी लघु 1 लिया गया है। यह वर्णिक छंद गणों पर आधारित है, इसलिए इसलिए इसके मात्राक्रम का विभाजन गणों के अनुरूप निम्नप्रकार करते हैं -
मानुस/ हौं तो’ व/ही रस/खान ब/सौं ब्रज/ गोकुल/ गाँव के’/ ग्वारन
211/ 211/ 211/ 211/ 211/ 211/ 211/ 211 (अंकावली)
गालल गालल गालल गालल गालल गालल गालल गालल (लगावली)
भानस भानस भानस भानस भानस भानस भानस भानस (गणावली)

वाचिक कलन
इसे समझने के लिए एक हम एक फिल्मी गीत की पंक्ति का उदाहरण लेते हैं -
सुहानी चाँदनी रातें हमें सोने नहीं देतीं
यह पंक्ति मात्रिक छंद (विधाता) पर आधारित है, इसलिए हम इसका कलन करने में वाचिक भार का ही प्रयोग करेंगे।
पहले हम सभी शब्दों का वाचिक भार अलग-अलग देखते हैं -
सुहानी(122) चाँदनी(212) रातें(22) हमें(12) सोने(22) नहीं(12) देतीं(22)
अब हम इसे प्रचलित स्वरकों (रुक्नों/अरकान) में विभाजित करते हैं-
सुहानी चाँ (1222) दनी रातें (1222) हमें सोने (1222) नहीं देतीं (1222)
सुविधा की दृष्टि से पारंपरिक रूप में हम इसे इसप्रकार भी लिख सकते हैं-
सुहानी चाँ/दनी रातें/ हमें सोने/ नहीं देतीं
1222 .... 1222 .... 1222 .... 1222 (अंकावली)
लगागागा लगागागा लगागागा लगागागा (लगावली)
यमातागा यमातागा यमातागा यमातागा (स्वरावली)
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन (अरकान)

इसी मापनी का एक और उदाहरण लेते हैं जिसमें मात्रापतन और वाचिक भार की बात भी स्पष्ट हो जाएगी। देखते हैं डॉ कुँवर बेचैन की यह पंक्ति -
नदी बोली समंदर से मैं तेरे पास आयी हूँ
यह पंक्ति भी मात्रिक छंद (विधाता) पर आधारित है, इसलिए वाचिक भार का प्रयोग करते हुए इसका वाचिक कलन निम्नप्रकार करते हैं -
नदी (12) बोली (22) समंदर (122) से (2) मैं (1) तेरे (22) पास (21) आयी (22) हूँ (2)
इस कलन में उच्चारण के अनुरूप ‘समंदर’ के अंतिम दो लघु 11 को मिलाकर एक गुरु 2 माना गया है (वाचिक भार) तथा दबाकर उच्चारण करने के कारण ‘मैं’ का भार गुरु न मानकर लघु माना गया है (मात्रापतन)।
पारंपरिक ढंग से इस कलन को हम ऐसे भी लिख सकते हैं -
नदी बोली/ समंदर से/ मैं’ तेरे पा/स आयी हूँ
1222 ..... 1222 ..... 1222 ...... 1222 (अंकावली)
लगागागा लगागागा लगागागा लगागागा (लगावली)
यमातागा यमातागा यमातागा यमातागा (स्वरावली)
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन (अरकान)

विशेष
छंदस काव्य की रचना प्रायः लय के आधार पर ही जाती है जो किसी उपयुक्त काव्य को उन्मुक्त भाव से गाकर अनुकरण से आत्मसात होती है। बाद में मात्राभार की सहायता से अपने बनाये काव्य का कलन करने से त्रुटियाँ सामने आ जाती हैं और उनका परिमार्जन हो जाता है और दूसरे के काव्य का निरीक्षण और परिमार्जन करने में भी कलन बहुत उपयोगी होता है।

- ओम नीरव, लखनऊ # 07526063802

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