शीर्षक:- गिरना,उठना,चलना और फिर गिरना
क्या कभी सोचा है कि हम क्या कर रहें हैं? नहीं तो सोचों की जो कर रहें है उस काम को हम ईमानदारी के साथ कर रहें है? हमनें कही कोई कमी तो नहीं छोड़ी है कि जिसकी वजह से हम सफलता हासिल ना कर पाएं। यदि "अभी नहीं सोचा तो कभी नहीं सोचा; हमे कुछ चीजें बेहद जानना ज़रूरी है। जीवन में उतार चढ़ाव आते है,आना भी ज़रूरी है। यदि आप प्रतिदिन एक ही क्रिया करते रहें। तो फिर कुछ नया पाने की भी मत सोच लेना।
गिरना,उठना,चलना,और फिर गिरना यह क्रिया निरंतर हर व्यक्ति के साथ चलती रहती है। कोई कहता है हमारा नसीब ख़राब है, सायद हमें इस जीवन में सुख ही नसीब ना हो? आधुनिक युग का प्राणी मात्र झूठी प्रसंशा सुनना चाहता है,अपने सामने दूसरों के मुख से वह इसी में प्रसन्न रहता है। वह सच्चाई तक जाना ही नहीं चाहता है, झूठ इतना बढ़ गया है कि सच्चाई दिखती नहीं है।
आप सबके हृदय को ठेस पहुंचाने का हमारा कोई उद्देश्य नहीं है अपितु एक सही लक्ष्य का चयन करें। और उसे प्राप्त करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दो,दिनरात मेहनत करके हासिल करो,फिर रुकना नहीं है। लक्ष्य प्राप्ति के बाद चुप मत बैठे,दूसरा लक्ष्य तैयार करें, और हमेशा सीखते रहें, और तजुर्बा लेकार सिखाते रहो।
"जीवन है एक जंग,जीतो भारत संग"
बस आपकी जिदंगी आसान होती जाएंगी। और यहीं कहना है कि
"हँसते रहो मुस्कुराते रहें,गीत नये रोज आप गाते रहो"
लेखक
नीतेंद्र सिंह परमार "भारत"
छतरपुर मध्यप्रदेश
दिनांक:-14/07/2020
समय:- रात्रि 01:51 मिनट्स
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