जय श्रीराम
मनहरण घनाक्षरी छंद
राम जी का चाहा काम,होता पल भर में ही।
विधि का विधान कोई,कैसे मेट पायेगा।।
राम को पठा के वन, दुखी दशरथ मन।
नीति औ अनिति का भी,भेद कौन गायेगा।।
हृदय उठी जो पीर,धरता न मन धीर।
बिलख -बिलख तन,किसको सुनायेगा।।
भाग्य में लिखी जो बात,टलती ना टाले कभी।
कर्म की गति से प्रभु ,नाम ही बचायेगा।।
नीतेंद्र सिंह परमार 'भारत'
छतरपुर,मध्यप्रदेश
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