प्रसादम
*******
यह संसार विविधताओं से भरा हुआ है। जिसको,जितना,जब भी लोककल्याणकारी कुछ भी समझ में आता है,वह अवश्य ही प्रयत्नशील होता है।
इस संसार में परोपकार वृत्ति के स्त्री पुरुषों की संख्या बहुत ही कम होती है।
संसार में ऐसे स्त्री पुरुष भी हैं कि परोपकार का स्वभाव न होने पर,धन होते हुए भी उनके द्वार से भूखे प्यासे को एक रोटी और एक गिलास पानी नहीं मिलता है।
इसी प्रकार, ऐसे उच्च शिक्षा प्राप्त स्त्री पुरुष भी हैं कि अपनी विद्या का उपयोग, करके पर्याप्त धन कमाकर शान्ति से अपने घर में ही बैठे रहते हैं। किसी को भी एक अक्षर का ज्ञान नहीं देते हैं।
इन दोनों प्रकार के स्त्री पुरुषों का धन व्यर्थ ही है।
विद्याधन प्राप्त करके जिनने ज्ञान नहीं दिया है,उनका विद्याधन व्यर्थ ही समाप्त हो जाता है।
इसी प्रकार धन,वैभव होते हुए भी जिनका रुपया पैसा किसी भी दीनहीन के काम नहीं आता है,वह धन भी व्यर्थ ही होता है।
जिस धन से यश प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं किया जाए,वह धन और वह विद्या दोनों ही निरर्थक ही हैं।
धनवान व्यक्ति के धन को उसके परिवार के सदस्य ही उपयोग और उपभोग करके उसको समाप्त कर देते हैं। अन्त में उसका नाम लेनेवाला भी कोई नहीं रहता है।
विद्या धन भी तभी श्रेष्ठ माना जाता है,जब वह विद्या समाज के हृदय में उतर जाती है।
कवियों ने,निबन्ध लेखकों ने समाज में पर्याप्त परिवर्तन किया है।
दीप्ति शुक्ला जी ने अपने गृहकार्यों को तथा आजीविका प्रदान करनेवाले कार्यों को करते हुए भी अथक परिश्रम करके इस "प्रसादम"पत्रिका का संपादन,प्रकाशन तथा संयोजन करके अनेक कवियों तथा लेखकों को प्रकाशित करके सर्वग्राही बना दिया है।
सभी लेखकों को तथा कवियों को भी दीप्ति शुक्ला जी का यथाशक्ति यथासंभव सहयोग करके उनके मनोबल की वृद्धि करते हुए आगामी पत्रिका प्रकाशन में पूर्ण सहयोग करना चाहिए। तथा वर्तमान पत्रिका का प्रचार प्रसार भी करना चाहिए।
इस पत्रिका का जितना अधिक प्रचार प्रसार होगा,उतना ही अधिक महत्त्व, कवियों और लेखकों का भी बढ़ेगा।
केशव कल्चर के नाम को सार्थक करने के लिए भगवान केशव ही दीप्ति जी को भरपूर सहयोग करेंगे।
आचार्य ब्रजपाल शुक्ल वृंदावनधाम। 11-8 -2022
No comments:
Post a Comment