Wednesday, September 28, 2022

मेरी दृष्टि - नीतेंद्र भारत

मेरी दृष्टि

आप सभी ने एक बात हमेशा सोशल मीडिया पर देखी होंगी। कि शुद्ध हिंदी लिखी हुई बहुत कम मिलती है। चाहे हम इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि की पोस्ट की बात करें। विशेषकर चाहे वह वीडियो हो या फ़ोटो पोस्ट पर लिखा हो। और इसके साथ साथ कुछ यूट्यूब चैनल पर भी ऐसा देखना को मिलता है।

निवेदन- कृपया लिखने और बोलने में शुद्ध हिंदी शब्दों का उपयोग करें।

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Thursday, September 15, 2022

श्रीनाथद्वारा में यशपाल शर्मा यशस्वी का दोहा संग्रह अन्तस् के अनुनाद हुआ लोकार्पित

श्रीनाथद्वारा में यशपाल शर्मा यशस्वी का दोहा संग्रह अन्तस् के अनुनाद हुआ लोकार्पित

साहित्य मण्डल, नाथद्वारा द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय 'हिंदी लाओ, देश बचाओ समारोह' के द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र में 
डॉ रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर' की अध्यक्षता डॉ विजय कुमार 'वेदालंकार', के मुख्य आतिथ्य एवं प्रो डॉ हेमराज मीणा, डॉ राहुल, डॉ संतोष यादव,  श्री गोपाल गुप्ता, डॉ जितेंद्र सिंह जी व पंडित मदन मोहन शर्मा 'अविचल' जी के विशिष्ट आतिथ्य व श्री श्याम प्रकाश देवपुरा, श्री वीरेंद्र लोढ़ा, श्री भँवर प्रेम, श्री सत्यनारायण व्यास 'मधुप', श्रीमती रेखा लोढ़ा 'स्मित' की मंच पर उपस्थिति में यशपाल शर्मा 'यशस्वी' का सद्य प्रकाशित दोहा संग्रह अन्तस् के अनुनाद का लोकार्पण किया गया। रेखा लोढ़ा 'स्मित' ने लोकार्पित कृति पर समीक्षात्मक चर्चा की । श्री यशपाल शर्मा ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए अपने सृजन कर्म व पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त किए।   कार्यक्रम का संचालन श्री वीरेंद्र लोढ़ा ने किया।



Sunday, September 11, 2022

फतेहपुर बावन_इमली का एक ऐसा इतिहास, जिसे सुन कर रूह कांप जायगी -

अपने पूर्वजों का इतिहास जानो !

फतेहपुर #बावन_इमली का एक ऐसा इतिहास, 
जिसे सुन कर रूह कांप जायगी...
भारत की वो एकलौती ऐसी घटना जब , अंग्रेज़ों ने एक साथ 52 क्रांतिकारियों को इमली के पेड़ पर लटका दिया था, पर इतिहास की इतनी बड़ी घटना को आज तक गुमनामी के अंधेरों में ढके रखा।

उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जिले में स्थित बावनी इमली एक प्रसिद्ध इमली का पेड़ है, जो भारत में एक शहीद स्मारक भी है। इसी इमली के पेड़ पर 28 अप्रैल 1858 को गौतम क्षत्रिय जोधासिंह अटैया और उनके इक्यावन साथी फांसी पर झूले थे। यह स्मारक उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के बिन्दकी उपखण्ड में खजुआ कस्बे के निकट बिन्दकी तहसील मुख्यालय से तीन किलोमीटर पश्चिम में मुगल रोड पर स्थित है।

यह स्मारक स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों का प्रतीक है। 28 अप्रैल 1858 को ब्रिटिश सेना द्वारा बावन स्वतंत्रता सेनानियों को एक इमली के पेड़ पर फाँसी दी गयी थी। ये इमली का पेड़ अभी भी मौजूद है। लोगों का विश्वास है कि उस नरसंहार के बाद उस पेड़ का विकास बन्द हो गया है।
10 मई, 1857 को जब बैरकपुर छावनी में आजादी का शंखनाद किया गया, तो 10 जून,1857 को फतेहपुर में क्रान्तिवीरों ने भी इस दिशा में कदम बढ़ा दिया जिनका नेतृत्व कर रहे थे जोधासिंह अटैया। फतेहपुर के डिप्टी कलेक्टर हिकमत उल्ला खाँ भी इनके सहयोगी थे। इन वीरों ने सबसे पहले फतेहपुर कचहरी एवं कोषागार को अपने कब्जे में ले लिया। जोधासिंह अटैया के मन में स्वतन्त्रता की आग बहुत समय से लगी थी। उनका सम्बन्ध तात्या टोपे से बना हुआ था। मातृभूमि को मुक्त कराने के लिए इन दोनों ने मिलकर अंग्रेजों से पांडु नदी के तट पर टक्कर ली। आमने-सामने के संग्राम के बाद अंग्रेजी सेना मैदान छोड़कर भाग गयी ! इन वीरों ने कानपुर में अपना झंडा गाड़ दिया।

जोधासिंह के मन की ज्वाला इतने पर भी शान्त नहीं हुई। उन्होंने 27 अक्तूबर, 1857 को महमूदपुर गाँव में एक अंग्रेज दरोगा और सिपाही को उस समय जलाकर मार दिया, जब वे एक घर में ठहरे हुए थे। सात दिसम्बर, 1857 को इन्होंने गंगापार रानीपुर पुलिस चैकी पर हमला कर अंग्रेजों के एक पिट्ठू का वध कर दिया। जोधासिंह ने अवध एवं बुन्देलखंड के क्रान्तिकारियों को संगठित कर फतेहपुर पर भी कब्जा कर लिया।

 
आवागमन की सुविधा को देखते हुए क्रान्तिकारियों ने खजुहा को अपना केन्द्र बनाया। किसी देशद्रोही मुखबिर की सूचना पर प्रयाग से कानपुर जा रहे कर्नल पावेल ने इस स्थान पर एकत्रित क्रान्ति सेना पर हमला कर दिया। कर्नल पावेल उनके इस गढ़ को तोड़ना चाहता था, परन्तु जोधासिंह की योजना अचूक थी। उन्होंने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का सहारा लिया, जिससे कर्नल पावेल मारा गया। अब अंग्रेजों ने कर्नल नील के नेतृत्व में सेना की नयी खेप भेज दी। इससे क्रान्तिकारियों को भारी हानि उठानी पड़ी। लेकिन इसके बाद भी जोधासिंह का मनोबल कम नहीं हुआ। उन्होंने नये सिरे से सेना के संगठन, शस्त्र संग्रह और धन एकत्रीकरण की योजना बनायी। इसके लिए उन्होंने छद्म वेष में प्रवास प्रारम्भ कर दिया, पर देश का यह दुर्भाग्य रहा कि वीरों के साथ-साथ यहाँ देशद्रोही भी पनपते रहे हैं। जब जोधासिंह अटैया अरगल नरेश से संघर्ष हेतु विचार-विमर्श कर खजुहा लौट रहे थे, तो किसी मुखबिर की सूचना पर ग्राम घोरहा के पास अंग्रेजों की घुड़सवार सेना ने उन्हें घेर लिया। थोड़ी देर के संघर्ष के बाद ही जोधासिंह अपने 51 क्रान्तिकारी साथियों के साथ बन्दी बना लिये गये।

28 अप्रैल, 1858 को मुगल रोड पर स्थित इमली के पेड़ पर उन्हें अपने 51 साथियों के साथ फाँसी दे दी गयी। लेकिन अंग्रेजो की बर्बरता यहीं नहीं रुकी। 
अंग्रेजों ने सभी जगह मुनादी करा दिया कि जो कोई भी शव को पेड़ से उतारेगा उसे भी उस पेड़ से लटका दिया जाएगा । जिसके बाद कितने दिनों तक शव पेड़ों से लटकते रहे और चील गिद्ध खाते रहे । 
अंततः महाराजा भवानी सिंह अपने साथियों के साथ 4 जून को जाकर शवों को पेड़ से नीचे उतारा और अंतिम संस्कार किया गया । 
बिन्दकी और खजुहा के बीच स्थित वह इमली का पेड़ (बावनी इमली) आज शहीद स्मारक के रूप में स्मरण किया जाता है !

Saturday, September 10, 2022

"पितॄणामर्यमा चास्मि" - अजय मोहन तिवारी



शास्त्रों में चन्द्रमा के ऊपर एक अन्य लोक को पितृ लोक कहा गया है और पितृगणों को देवताओं के समान पूजनीय बताया गया है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं को पितृओं में अर्यमा नामक पितृ बताया है; "पितॄणामर्यमा चास्मि"
हिन्दू मान्यताओं में पितृ पक्ष को विशेष स्थान दिया गया है। भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा से आश्विन मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या(पितृमोक्ष अमावस्या) तक की कालावधि पितृपक्ष कहलाती है। पितृपक्ष में पूर्वजों का श्रद्धापूर्वक स्मरण करके उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है। श्राद्ध कर्म पितृओं की शांति, मुक्ति के साथ-साथ उनके प्रति अपना सम्मान एवं कृतज्ञता प्रकट करने के लिए किये जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में पितृओं का श्राद्ध करने से न केवल उनकी कृपा प्राप्त होती है, बल्कि हर प्रकार की बाधाओं से मुक्ति भी मिलती है। श्राद्धकर्म में मातृकुल और पितृकुल दोनों शामिल होते हैं।
अब आते हैं उस बात पर जो साझा करने के उद्देश्य से मैंने ये सब लिखा या लिख रहा हूँ.. दरअसल कल अर्थात दिनाँक 10.09.22 को भाद्रपद मास की पूर्णिमा से पितृ पक्ष की शुरुआत थी तो एक सामान्य सनातनी परिवार की तरह मेरे घर में भी पितृओं के प्रति सम्मान प्रकट करने हेतु श्राद्ध कर्म किया गया और मेरी माँ ने प्रचलित मान्यता के अनुसार मुझसे पितृओं के लिए भोजन(खीर-पूड़ी) का कुछ भाग ऊपर छत में रख आने के लिए कहा। यहाँ तक तो यह एक सामान्य बात है, लेकिन जैसे ही मैं वह भोज्य सामग्री लेकर छत पर पहुँचा तो मैं अचंभित रह गया। कौआ जो सनातन धार्मिक मान्यता के अनुसार पितृओं का प्रतीक माना गया है और लगभग लुप्तप्राय हो चुके हैं, मेरे छत पर पहुँचने के पहले ही वहाँ पर कुछ कौए बैठे हुए थे मानों मेरी प्रतीक्षा कर रहे हों, इतना ही नहीं कुछ ही क्षणों में न जाने कहाँ से वहाँ पर और भी बहुत से कौए आ गए और जैसे कि उन्हें पहले से ही सब कुछ भलीभाँति ज्ञात हो, वे उड़ते हुए आते और भोज्य सामग्री जो मैंने छत की पट्टी पर अलग अलग स्थान पर रखी थी, उसे खाते अथवा अपनी चोंच में दबाकर उड़ जाते। यह क्रम लगभग 10 से 15 मिनट तक चलता रहा। मैं यह दृश्य देखकर रोमांचित हो उठा और मैंने अपने मोबाइल कैमरा से कुछ फोटोग्राफ्स खींच लिए। अंततः मैं यही कहना चाहूँगा कि पितृ पक्ष अथवा श्राद्ध कर्म मात्र कपोल कल्पना अथवा कोरी धार्मिक मान्यता नहीं बल्कि कुछ ऐसा है जिसकी व्याख्या का सामर्थ्य फिलहाल वर्तमान भौतिक विज्ञान पास नहीं है। ॐ पितृ दैवतायै नम: 🙏🙏
 

                                            - अजय मोहन तिवारी

हार्दिक आभार माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी का - - नीतेंद्र सिंह भारत - प्रदेश अध्यक्ष मध्यप्रदेश इकाई


माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी मैं हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। जिन्होंने इस भारत गौरव गाथा काव्य संकलन के लिए शुभकामना संदेश लिखा। मैं विश्व जनचेतना भारत की ओर पुनः आभार व्यक्त करता हूँ।

प्रदेश अध्यक्ष
नीतेंद्र सिंह परमार'भारत'
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत 
मध्यप्रदेश इकाई

Sunday, September 4, 2022

शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर कला - ईश फाउण्डेशन के द्वारा सम्मानित।

शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर कला - ईश फाउण्डेशन जिसकी संस्थापक आदरणीया दिव्या गंगवार जी जो सांसद स्व०डॉ परशुराम गंगवार जी की सुपुत्री हैं । बहेड़ी बरेली के विधायक श्री जिया उर्रहमान जी और जगजीत सिंह जग्गा जी के कर कमलों से आदरणीय दिलीप कुमार पाठक सरस जी , आदरणीय राजेश कुमार मिश्र प्रयास जी तथा विमलेश कुमार हमदम को शिक्षक सम्मान से सम्मानित किया गया है ।
सभी का धन्यवाद है।


Saturday, September 3, 2022

शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित कवि सम्मेलन - नीतेंद्र भारत

शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित कवि सम्मेलन आप सभी का स्वागत है। कार्यक्रम में बड़े भाई साहब अभिराम जी व वीरेंद्र खरे अकेला जी की विशेष उपस्थिति व साथ ही विरल जी, जीतेंद्र जीत जी,अभिषेक जी और आ० नम्रता शुक्ला जी के संयोजक एवं सूरज कुमार के संचालन में। 


नीतेंद्र सिंह परमार 'भारत'
छतरपुर मध्यप्रदेश

प्रयागराज संगम की पावन नगरी में साहित्यिक क्षेत्र में सुप्रसिद्ध संगठन "विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत" का छठवाॅं वार्षिकोत्सव मनाया गया।

दिनांक 30/11/2024 को प्रयागराज संगम की पावन नगरी में साहित्यिक क्षेत्र में सुप्रसिद्ध संगठन "विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत" का छठवाॅं ...