* विषय:- आँचल *
रोज सबेरे उठकर मैया,
हमको रोज जगाती हैं।
बालक को गर नजर लगे ना,
काजल माथ लगाती हैं।।
नजरो में माँ आस भरे हैं,
जीवन कुछ खास लगे हैं।
गीले में खुद सौती माता,
सूखे हमें सुलाती है।।
पेट जाय ना अन्य का दाना,
हमको खूब खिलाती हैं।
माता एक मुस्कान को तरसे
खुशिया अब लाखो बरसे।।
फर्ज नही चुक सकता कोई
मेरे मन जो भाता हैं।
अपनी माता के *आँचल* में,
सुत *भारत* छिप जाता हैं।।
- नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर ( मध्यप्रदेश )
सम्पर्क :- 8109643725
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