Sunday, March 8, 2020

छंद

*◆ चौपइया छंद [सम मात्रिक] ◆*
विधान~ {4 चरण समतुकांत,प्रति चरण 30 मात्राएँ, 
प्रत्येक में 10,8,12 मात्राओं पर यति,
प्रथम व द्वितीय यति समतुकांत,  
जगण वर्जित, प्रत्येक चरणान्त में गुरु(2),
चरणान्त में दो गुरु होने पर यह छंद  
मनोहारी हो जाता है।}

नर  से  श्रेष्ठ  बनी, है  छाँव   घनी,  
                         *कभी   नहीं   हारी है।*
शोभा दो घर  की, जीवन भर की,  
                         *सबकी   हितकारी है।।*
जग की संचालक, सबकी पालक, 
                         *कण-कण आभारी है।*
उपकृत  रोम-रोम, नत हुआ ओम, 
                         *अमृतमयी     नारी है।।*
                                         
                         *©मुकेश शर्मा "ओम"*

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