*◆ चौपइया छंद [सम मात्रिक] ◆*
विधान~ {4 चरण समतुकांत,प्रति चरण 30 मात्राएँ,
प्रत्येक में 10,8,12 मात्राओं पर यति,
प्रथम व द्वितीय यति समतुकांत,
जगण वर्जित, प्रत्येक चरणान्त में गुरु(2),
चरणान्त में दो गुरु होने पर यह छंद
मनोहारी हो जाता है।}
नर से श्रेष्ठ बनी, है छाँव घनी,
*कभी नहीं हारी है।*
शोभा दो घर की, जीवन भर की,
*सबकी हितकारी है।।*
जग की संचालक, सबकी पालक,
*कण-कण आभारी है।*
उपकृत रोम-रोम, नत हुआ ओम,
*अमृतमयी नारी है।।*
*©मुकेश शर्मा "ओम"*
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