हमारा मान, हमारी पाग (साफा)
ऐसी मान्यता है कि कपड़े व्यक्ति की शान बढ़ाते हैं, व्यक्ति कपड़ों की। साफा य पाग भी एक ऐसा पहनावा है जो व्यक्ति को मान प्रदान करता है। साफा कई तरीक़े से बांधा जाता है, सब जगह अलग-अलग नामों से संबोधन होता है। जैसे :-
मारवाड़ - साफा
मेवाड़ - पाग
जैसलमेर - फेंटा
गुजरात - पागड़ी/पागड़ा
अपने यहां - मुड़इंठा (मूड़ + ऐंठा)
सब के अपने बांधने (कसने) के तरीके। एक कहावत है :-
" गान, रसोई, पाग।
कभी-कभी बन जात।।"
साफा बंधन से चेहरे की भव्यता बढ़ जाती है. मान बढ़ जाता है, सर बड़ा लगने लगता है।
सिर बड़ा सरदार का
पैर बड़ा गमार का।
साफा के विभिन्न प्रकार बाजार में उपलब्ध हैं - चुनरी, लहरिया, मूठड़ा, इकरंगा, तिरंगा, पंचरंगी, गोटेदार आदि आदि.....।
साफा बांधने के कई फायदे हैं/थे।
1- सोलह हाथ लंबा होने के कारण ओढ़ना-बिछाना भी हो जाता।
2 - घुड़सवारी मे हेलमेट का काम।
3 - कुंएं आदि से पानी खींचने का काम
4 - चेहरे की भव्यता और पहचान प्रदान करना।
नियमतः अपना साफा किसी को नहीं देना चाहिए, ना ही दूसरे का साफा अपने कसना चाहिए। पिता का साफा पुत्र को कदापि नहीं बांधना चाहिए। फटे साफा से परहेज किया जाता था। साफा हमारी शान है, इज्जत बचाने के लिए (समर्पण भाव) अपनी पगड़ी, साफा दूसरे के चरणों में रख दिया जाता था। किसी के बेइज्जती के लिए मुहावरा बना है 'पगड़ी उछालना'। अयोध्या के आसपास के क्षत्रियों ने राममंदिर न बनने तक नंगा सर रहने का संकल्प लिया था जो अब पूरा होने जा रहा है। पुराने जमाने में तो साफा पगड़ी गिरवी रखने तक के उदाहरण मिलते हैं।
वर्तमान में सारे निषेध ध्वस्त हैं, अब साफा व्यवसाय से जुड़ गया है। हर सुअवसर पर किराए से उपलब्ध हैं, कौन/ किसका/ कैसा/ नया/पुराने/फटा साफा से कोई मतलब नहीं। भरे सुअवसर पर व्यवसायी आपका साफा उतरवा लेते हैं। अब तो महिलाएं भी साफा पहनने लगीं हैं जो उचित नहीं, महिलाएं घूंघट मे मर्यादित-सम्मानित लगती हैं। कोई प्रहसन अभिनय हो तो बात अलग। वर्तमान में साफा बांधकर सड़कों मे महिला-पुरुष भौंड़े नृत्य करते हैं। जबकि साफा की अपनी गरिमा है।
उपरोक्त बातें अपनी समझ के अनुसार वर्णित किया है मेरा उद्देश्य किसी को दुखी करने का ना है। क्षमा के साथ
अजय सिंह परिहार