पुलगामा में शहीद वीर सपूतों को नमन करते हुए हृदयोद्गार.........
◆गीत◆
बातों से कब तक समझाएं
इन लातों के भूतों को
आखिर कैसे सहन करें हम
इन काली करतूतों को.....
तोपों तलवारों की अब तो
लगी जंग हट जाने दो।
दुश्मन की लाशों से सारी
घाटी अब पट जाने दो।।
सहनशीलता बहुत हुई अब
केवल जंग जरूरी है।
शांति समर्थक के सम्मुख अब
रक्तपात मजबूरी है।।
क्या ऐसे ही सदा रहेंगे
गिनते हम ताबूतों को...
अक्षरधाम,उरी,पुलवामा,
संसद तक दहशतगर्दी।
शर्म नहीं आती है उनको
करते जो ये नामर्दी।।
कुछ तो नमक हराम मिले हैं
जाकर दुश्मन के दल से।
अपने बनकर ही अपनों को,
मरवाते हैं जो छल से।।
रहे भारती कबतक खोती
यूँ ही वीर सपूतों को....
उनका जीना कैसा जीना
जिन्हें वतन से प्यार नहीं।
इस पावन धरती उनको
मरने का अधिकार नहीं।।
गंदा रक्त गिरा तो ये
धरती गंदी हो जाएगी।
महक त्याग की जो इस रज में
शायद वो खो जाएगी।।
भारत माता निज गोदी में
रखती नहीं कपूतों को...
शस्य श्यामला भारत भू से
कुछ तो पापी कम कर दो।
सीमा से बाहर ले जाकर
उनके शीश कलम कर दो।।
बढ़ो साथियो सीमा लांघो
अपना फर्ज निभाना है।
पाकिस्तान दुष्ट का अब तो
जग से नाम मिटाना है।।
शंखनाद कर देते न्यौता
"सोम" आज यमदूतों को...
~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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