2122 1212 22
अपनी पलकों पे आब रखता हूँ।
ग़म, खुशी का हिसाब रखता हूँ।
पढ़ के दो चार हर्फ टूट गये?
ग़म की पूरी किताब रखता हूँ।
पूछ कर देखिए कभी मुझसे
याद सारे जवाब रखता हूँ।
रोज दो चार घूँट हूँ पीता
मैं वफ़ा की शराब रखता हूँ।
मानता हूँ अज़ीज़ सब को ही
किस से रिश्ता खराब रखता हूँ।
जानता हूँ दगा कहाँ पाया
दिल में सारे सराब रखता हूँ।
हीरालाल
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