सभी मित्र, जिन्हें मात्राओं का ज्ञान प्राप्त करना हो, यह जानने के लिये यह लेख पढ़ सकते हैं, कोई शंका होने पर प्रश्न पूछ सकते हैं।
मात्राभार की गणना
छन्दबद्ध रचना के लिये मात्राभार की गणना का ज्ञान आवश्यक है। मात्राभार दो प्रकार का होता है – वर्णिक भार और वाचिक भार। वर्णिक भार में प्रत्येक वर्ण का भार अलग-अलग यथावत लिया जाता है जैसे – विकल का वर्णिक भार = 111 या ललल जबकि वाचिक भार में उच्चारण के अनुरूप वर्णों को मिलाकर भार की गणना की जाती है जैसे विकल का उच्चारण वि कल है, विक ल नहीं, इसलिए विकल का वाचिक भार है – 12 या लगा। वर्णिक भार की गणना करने के लिए कुछ निश्चित नियम हैं।
वर्णिक भार की गणना
(1) ह्रस्व स्वरों की मात्रा 1 होती है जिसे लघु कहते हैं, जैसे - अ, इ, उ, ऋ की मात्रा 1 है। लघु को 1 या । या ल से भी व्यक्त किया जाता है।
(2) दीर्घ स्वरों की मात्रा 2 होती है जिसे गुरु कहते हैं,जैसे - आ, ई, ऊ, ए,ऐ,ओ,औ की मात्रा 2 है। गुरु को 2 या S या गा से भी व्यक्त किया जाता है।
(3) व्यंजनों की मात्रा 1/ल होती है , जैसे - क,ख,ग,घ / च,छ,ज,झ / ट,ठ,ड,ढ,ण / त,थ,द,ध,न / प,फ,ब,भ,म / य,र,ल,व,श,ष,स,ह।
वास्तव में व्यंजन का उच्चारण स्वर के साथ ही संभव है, इसलिए उसी रूप में यहाँ लिखा गया है। अन्यथा क्, ख्, ग् … आदि को व्यंजन कहते हैं, इनमें अकार मिलाने से क, ख, ग ... आदि बनते हैं जो उच्चारण योग्य होते हैं।
(4) व्यंजन में ह्रस्व इ, उ, ऋ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार 1/ल ही रहता है।
(5) व्यंजन में दीर्घ स्वर आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार 2/गा हो जाता है।
(6) किसी भी वर्ण में अनुनासिक लगने से मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, जैसे – रँग = 11, चाँद = 21, माँ = 2, आँगन = 211, गाँव = 21
(7) लघु वर्ण के ऊपर अनुस्वार लगने से उसका मात्राभार 2 हो जाता है, जैसे – रंग = 21, अंक = 21, कंचन = 211, घंटा = 22, पतंगा = 122
(8) गुरु वर्ण पर अनुस्वार लगने से उसके मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, जैसे – नहीं = 12, भींच = 21, छींक = 21,
कुछ विद्वान इसे अनुनासिक मानते हैं लेकिन मात्राभार यही मानते हैं।
(9) संयुक्ताक्षर का मात्राभार 1 (लघु) होता है, जैसे – स्वर = 11, प्रभा = 12, श्रम = 11, च्यवन = 111
(10) संयुक्ताक्षर में ह्रस्व मात्रा लगने से उसका मात्राभार 1 (लघु) ही रहता है, जैसे – प्रिया = 12, क्रिया = 12, द्रुम = 11, च्युत = 11, श्रुति = 11
(11) संयुक्ताक्षर में दीर्घ मात्रा लगने से उसका मात्राभार 2 (गुरु) हो जाता है, जैसे – भ्राता = 22, श्याम = 21, स्नेह = 21, स्त्री = 2, स्थान = 21
(12) संयुक्ताक्षर से पहले वाले लघु वर्ण का मात्राभार 2 (गुरु) हो जाता है, जैसे – नम्र = 21, सत्य = 21, विख्यात = 221
(13) संयुक्ताक्षर के पहले वाले गुरु वर्ण के मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, जैसे – हास्य = 21, आत्मा = 22, सौम्या = 22, शाश्वत = 211, भास्कर = 211
(14) संयुक्ताक्षर सम्बन्धी नियम (12) के कुछ अपवाद भी हैं, जिसका आधार पारंपरिक उच्चारण है, अशुद्ध उच्चारण नहीं।
जैसे – तुम्हें = 12, तुम्हारा/तुम्हारी/तुम्हारे = 122, जिन्हें = 12, जिन्होंने = 122, कुम्हार = 121, कन्हैया = 122, मल्हार = 121, कुल्हाड़ी = 122
व्याख्या – इन अपवादों में संयुक्ताक्षर का पूर्ववर्ती अक्षर सदैव ऐसा व्यंजन होता है जिसका ‘ह’ के साथ योग करके कोई नया अक्षर हिन्दी वर्ण माला में नहीं बनाया गया है, इसलिए जब इस पूर्ववर्ती व्यंजन का ‘ह’ के साथ योग कर कोई संयुक्ताक्षर बनता हैं तो उसका व्यवहार संयुक्ताक्षर जैसा न होकर एक नए वर्ण जैसा हो जाता है और इसीलिए उसपर संयुक्ताक्षर के नियम लागू नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए न् म् ल् का ‘ह’ के साथ योग करने से बनने वाले संयुक्ताक्षर म्ह न्ह ल्ह ‘एक वर्ण’ जैसा व्यवहार करते है जिससे उनके पहले आने वाले लघु का भार 2 नहीं होता अपितु 1 ही रहता है। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि हिन्दी वर्णमाला के कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग और पवर्ग में पहले व्यंजन में ‘ह’ का योग करने से दूसरा व्यंजन तथा तीसरे व्यंजन में ‘ह’ का योग करने से चौथा व्यंजन बनता है। उदाहरणार्थ -
क् + ह = ख , ग् + ह = घ
च् + ह = छ , ज् + ह = झ
ट् + ह = ठ , ड् + ह = ढ
त् + ह = थ , द् + ह = ध
प् + ह = फ , ब् + ह = भ किन्तु -
न् + ह = न्ह , म् + ह = म्ह , ल् + ह = ल्ह (कोई नया वर्ण नहीं, तथापि व्यवहार नए वर्ण जैसा)
कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं जिनपर उपर्युक्त व्याख्या लागू नहीं होती है, जैसे नन्हा = 22, कुल्हड़ = 211, अल्हड़ = 211 आदि।
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