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● तारक छंद ●
विधान~ जाति-अति जगती,
प्रस्तार भेद~८१९२
[सगण सगण सगण सगण गुरु]
११२ ११२ ११२ ११२ २
चार चरण,दो-दो चरण समतुकांत।
अब बात सुनो मनमोहन मोरी।
विनती करुँ नाथ खड़ा कर-जोरी।।
सबकी बिगड़ी नित आप बनाते।
भव - सागर से प्रभु पार लगाते।।
- नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर ( मध्यप्रदेश )
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