◆ *चंडी छंद* ◆
विधान-नगण नगण सगण सगण गुरु
(111 111 112 112 2)
दो-दो चरण समतुकांत, 4 चरण।
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अवध नयन रघुवीर महाये |
सुमति सुपथि चित आप सुहाये ||
इहहि भगत सुधि जानत नीका |
सतत भजन रत रामहुँ जी का ||
पटल सहज पुनि होवनि लागा |
सरस सुरस मन सोवत जागा ||
अबहुँ पुनिअ सबु कारज सोई |
विरल सरल अबु आपहुँ होई ||
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©भगत
संग्रहितकर्ता:-
नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
( छतरपुर मध्यप्रदेश )
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