Monday, November 12, 2018

मंदाक्रान्ता छंद

◆ मंदाक्रान्ता छंद ◆

विधान~
[{मगण भगण नगण तगण तगण+गुरु गुरु}
( 222  211  111  221  221 22)
17 वर्ण, यति 4, 6,7 वर्णों पर,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

वाणी ही  है, सरस  सबसे,तौलके  आप  बोलो।
सो वाणी से,अमिय मनमें,आप भी नित्य घोलो।।
जो  होते  हैं, सरल  हिरदे , मोहनी  होय  बोली।
हो जाती है ,अमर जग में,"सोम" वाचा अमोली।।

                                     ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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