◆ मंदाक्रान्ता छंद ◆
विधान~
[{मगण भगण नगण तगण तगण+गुरु गुरु}
( 222 211 111 221 221 22)
17 वर्ण, यति 4, 6,7 वर्णों पर,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]
वाणी ही है, सरस सबसे,तौलके आप बोलो।
सो वाणी से,अमिय मनमें,आप भी नित्य घोलो।।
जो होते हैं, सरल हिरदे , मोहनी होय बोली।
हो जाती है ,अमर जग में,"सोम" वाचा अमोली।।
~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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