◆लोकगीत◆
द्वारौ टेकें खड़ी बहिनियां,
कबलौ आहौ भैया जू
जल्दी टीका करवा जाऔ,
बीती जात समैया जू.....
भाई दोज आज है भैया,
तुम अबलौ न आये जू।
उठकै बड़े भोर सें मैंने,
व्यंजन विविध बनाये जू।।
नहीं उतारी आस कि अबलौ,
छन-छन होत करैया जू.....
बहुत दिनन से सोचें-सोचें,
मयके जा न पाई जू।
कैसे हाल हवाल उतै के,
कछू खबर न आई जू।।
जाने कैसे हुइहैं बाबुल,
कैसी प्यारी मैया जू.....
भैया मोय परायौ करके,
कैसे कै बिसराओ जू।
आजहुँ वीरन तुम्हें बहिन को,
काहे ख्याल न आओ जू।।
बिल्कुल"सोम" गहा दइ ऐसें,
जैसे सुरहिन गैया जू.....
~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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