◆गीत◆
[16,14,मात्राएँ,अन्त मगण,
ताटंक छन्द पर आधारित]
धन्य धन्य है भारत माता,
नित नित शीश झुकाता हूँ
मेवाड़ी माटी की महिमा,
सुनिये आज सुनाता हूँ......
1-
महाराणा जी परम सुभट थे,
तन-मन जोश समाया था।
सुनकर साहस की गाथाएँ,
सारा जग चकराया था।।
जनमानस की बात कहूँ क्या,
पंछी गाथा गाते हैं।
दुश्मन के वंशज अब तक भी,
सुन-सुन के थर्राते हैं।।
गूँजे गली-गली में जो वो,
गौरव गाथा गाता हूँ......
2-
छिपे-छिपे रहते सब दुश्मन,
ढूँढ़-ढूँढ़ के मारे थे।
रण में कितने ही मुगलों के,
धड़ से शीश उतारे थे।।
लेकर जब भी भाला रण में,
राणा जी आ जाते थे।
पर्वत भी थर्रा जाते तब ,
सब दुश्मन भय खाते थे।।
समझ पड़े तो समझ लीजिये,
आज यही समझाता हूँ.....
3-
मुगल सल्तनत की दीवारें,
हिलतीं थीं हुंकारों से।
अगर बात दुश्मन से होती,
तो भाला के वारों से।।
कुछ ऐसा ही तो जादू है,
इस मेवाड़ी पानी में।
आँख उठाकर देख न लेना,
कोई भी नादानी में।।
जन्म मिला इस पुण्य धरा पर,
"सोम" सदा इतराता हूँ......
~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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