Saturday, July 30, 2022

वरिष्ठ साहित्यकार दादा आ० सुरेंद्र शर्मा 'शिरीष' जी से हुईं मुलाकात - नीतेंद्र सिंह परमार 'भारत'

बहुत दिनों बाद छतरपुर नगर के वरिष्ठ साहित्यकार दादा आ० सुरेंद्र शर्मा 'शिरीष' जी से मुलाकात हुईं। और दादा श्री का आशिर्वाद प्राप्त हुआ तथा जो मेरे अंदर विभिन्न प्रकार की जिज्ञासा थी। उनके  उत्तर भी  दादा श्री से पाकर मैं धन्य हुआ।
      






नीतेंद्र सिंह परमार
🙏🙏🙏🙏

Friday, July 22, 2022

महान_क्रांतिकारी_चंद्रशेखर_आजाद - जीतेन्द्र यादव जीत

#महान_क्रांतिकारी_चंद्रशेखर_आजाद_को_सादर_समर्पित



धन्य धरा भारत की हुई थी, जब उसका अवतार हुआ ।
डूब रही थी जो नैया, वह उसका  खेवनहार हुआ ।।
बेड़ी डलीं गुलामी की थीं, चारों ओर अंधेरा था ।
लंदन से आ गए फिरंगी, भारत भू को घेरा था ।।
कांधे पर जिसके जनेऊ, जयमाल भाँति लहराता था ।
देख फिरंगी ज़ुल्मों को वह, बबर शेर बन जाता था  ।।
आशा की जो किरण बना था, वह अनमोल नगीना था ।
कमर में पिस्टल हरदम रहती, छप्पन इंची सीना था ।।

चाल निराली मतवाली थी, स्वाभिमान था मूछों में ।
हिन्दुस्तानी होने का, अभिमान भरा था मूछों में ।।
हृदय देश के मध्य प्रदेश की, गाँव भाभरा माटी में ।
बचपन बीता था संघर्षों, वाली उस परिपाटी में ।।
खेल खेल में उस बालक ने, बाण चलाना सीख लिया ।
गोरों की गर्दन रखकर, पिस्तौल चलाना सीख लिया ।।
बाल्यकाल में उसने यारो, रौद्र रूप दिखलाया था ।
खुली बग़ावत अंग्रेजों से, केसरिया लहराया था ।।

अत्याचारी अंग्रेजों का, खौफ नहीं था शेखर में ।
भारत माँ के घावों का प्रति, शोध भरा था शेखर में ।।
नर संहार किया गोरों ने, जलियाँ वाले बाग में ।
भड़की ज्वाला थी भारत में, कूद पड़ा था आग में ।।
संतावन वाली आग अभी तक, धधक रही थी सीने में ।
लक्ष्य एक था बस आजादी, मरने में या जीने में ।।
गाँधी जी के आंदोलन में, आगे बढ़कर भाग लिया ।
नाम देश के लिखी जवानी, मात-पिता को त्याग दिया ।।

पंद्रह वर्ष की आयु में वह, गिरफ्तार हो जाते हैं ।
हैरान सभी रह जाते हैं जब, न्यायालय में आते हैं ।।
न्यायाधीश हुकुम देता है, नाम पता बतला देना ।
आज़ाद लाल स्वाधीन पिता का, पता जेल लिखवा लेना ।।
नग्न बदन पर पड़े बेंत, ना संयम उसका डोला था ।
कतरा कतरा लाल लहू, जय भारत माँ की बोला था ।।
ऐसे चंद्रशेखर को यारो, आओ सभी सलाम करें ।
जान लुटाई जिनने हम पर, उनका हम गुणगान करें ।।

गोरों की हिंसा के बदले, मार्ग अहिंसक बौने थे  ।
भारत माँ का मन व्याकुल था, घायल कोने कोने थे ।।
लाला जी पर पड़ी लाठियाँ, दृश्य नहीं वह भूला था ।
तोड़ दिया व्रत सत्य अहिंसा, क्रांति मार्ग कबूला था ।।
सपना सुखद संजोया था तब, भारत के हर वासी ने ।
राह दिखाई अंधों को थी, गाँव भाभरा वासी ने ।।
आजादी पाने का उसने, मार्ग नया दिखलाया था ।
एक गाल के बदले दूजा, गाल नहीं सिखलाया था ।।

मार भगाने अंग्रेजों को, बिस्मिल के संग जाते हैं ।
काकोरी में रेल रोक, हथियार उड़ा ले आते हैं ।।
खुली चुनौती अंग्रेजों को, बेटा हिम्मत वाला था ।
थर-थर कँपते थे शेखर से, जिनका भी दिल काला था ।।
वेष बदलने में माहिर थे, और अचूक निशाना था ।
नगर ओरछा के जंगल में, वर्षों रहा ठिकाना था ।।
गाँव-गाँव में घूम-घूम कर, क्रांतिवीर तैयार किये ।
आजादी की अलख जगाई , लड़ने को हथियार दिये ।।

भारत का हर बच्चा बच्चा, शेखर का दीवाना था ।
सर्वस्व समर्पण किया देश पर, ऐसा वह परवाना था ।।
चढ़ा बसंती रंग वीर पर, इंकलाब की बोली थी ।
बनी टोलियाँ मस्तानों की, खेली खून से होली थी ।।
लाला की हत्या का बदला, लेना था उस दौर में ।
शेर पंजाबी भगत सिंह संग, जा पहुँचे लाहौर में ।।
साण्डर्स के काल बने थे, भून दिया था गोली से । 
सिंहासन हिल गया फिरंगी, इंकलाब की बोली से ।।

पूरे भारत को उकसाने, काम नया कुछ करना था ।
ब्रिटिश हुकूमत की आँखों में, उनको जिंदा रहना था ।।
फेंकेंगे बम असेम्बली में, शेखर ने ऐलान किया ।
भगत सिंह और बटुकेश्वर ने, भलीभाँति अंजाम दिया ।। 
सुखदेव भगत व राजगुरु की, फाँसी का फरमान हुआ ।
रंग दे बसंती चोला मेरा, भारत में जय गान हुआ ।।
आज़ाद ने फाँसी रुकवाने को, पूरा जोर लगाया था ।
दुर्गा भाभी से संदेशा, बापू तक पहुँचाया था ।।

गांधी जी गर एक पत्र ही, इरविन को तब लिख देते ।
फाँसी भी रुक सकती थी, और मन भी मैले ना होते ।।
भगत सिंह को रिहा कराने, चाचा के घर आये थे ।
अल्फ़्रेड पार्क को रणनीति का, अपना केन्द्र बनाये थे ।।
किन्तु विभीषण जयचंदों ने, भेद खोलकर दगा किया ।
भारत माँ का शेर पार्क में, अंग्रेजों को बता दिया ।।
अंग्रेजी अफ़सर बाबर ने, आकर उनको घेरा था ।
गोलीं बरसीं अंधाधुंध, आज़ाद ने मुँह ना फेरा था ।।

मृत्यु खड़ी थी गले लगाने, हिम्मत ना वे हारे थे ।
पेड़ को ढाल बनाकर गोरे, मौत के घाट उतारे थे ।।
भारत माँ के चरणों की, सौगन्ध लाल ने खाई थी ।
अपनी पिस्टल से गोरों कीं, लाशें वहाँ बिछाईं थीं ।।
अंतिम गोली पिस्टल में, शेखर की यारो बचती है ।
मातृभूमि पर मर मिटने की, नई इबारत लिखती है ।।
भरत भूमि की चंदन रज का, टीका भाल लगाता है ।
कनपट्टी पर पिस्टल रखके, ट्रिगर लाल दबाता है ।।

हाँथ नहीं आया गोरों के , प्राणों का बलिदान दिया ।
भारत माता की गोदी में, शेखर ने विश्राम किया ।। 
वचन दिया था माता को जो, अंतिम क्षण तक याद रहा ।
चंद्रशेखर आज़ाद हमारा, जीवन भर आजाद रहा ।।
चंद्रशेखर से वीर धरा पर, रोज जन्म ना पाते हैं ।
इतिहासों के स्वर्ण पृष्ठ पर, नाम अमर कर जाते हैं ।।
चंद्र शेखर आजादों से हम, अपना हिन्दुस्तान भरें ।
जान लुटाई जिनने हम पर, उनका हम गुणगान करें ।।





✍️ जीतेन्द्र यादव जीत

Wednesday, July 20, 2022

जीवनी-हाकी के जादूगर : मेजर ध्यानचंद - संतोष कुमार सिंह मथुरा, उ०प्र०

जीवनी-हाकी के जादूगर : मेजर ध्यानचंद
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खेल मनुष्य के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक माना जाता है। जो व्यक्ति कोई न कोई खेल खेलता है, वह स्वस्थ अवश्य ही रहता है।
        भारत में कई खेल प्रतिभाओं ने जन्म लिया है। जैसे- 'उड़नपरी' के नाम से प्रसिद्ध पी०टी० उषा, 'मास्टर ब्लास्टर' के नाम से प्रसिद्ध सचिन तेंदुलकर और 'हाकी के जादूगर' के नाम से प्रसिद्ध मेजर ध्यानचंद। आज मैं, मेजर ध्यानचंद के बारे बताने जा रहा हूँ।
        
       हाॅकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज ( इलाहाबाद) शहर में हुआ था। इनके पिता का नाम सूबेदार समेश्वर दत्त सिंह और माता का नाम शारदा सिंह था।
   ध्यानचंद, साधारण शिक्षा प्राप्त करने के बाद 16 वर्ष की आयु में एक सिपाही के रूप में सेना में भर्ती हुए थे। सेना में रहते हुए ही इन्होंने हाॅकी के खेल  में रुचि ली। धीरे-धीरे ये हाॅकी खेल प्रतिस्पर्धाओं में उत्तम प्रदर्शन करने लगे। इसी कारण सेना में पदोन्नति देकर सन् 1927 में लांस नायक, सन् 1936 सूबेदार बना दिए गए थे। ...उत्कृष्ट खेल प्रदर्शन करते रहने पर लेफ्टीनेंट, कैप्टेन और फिर मेजर बने।

       मेजर ध्यानचंद हॉकी के इतने बेहतरीन खिलाड़ी थे कि अगर गेंद एक बार उनकी स्टिक से चिपक जाए तो गोल करने के बाद ही हटती थी। यही कारण था एक बार खेल को बीच में रोककर उनकी स्टिक तोड़कर देखा गया कि कहीं उनकी स्टिक में चुंबक या कोई ऐसी चीज तो नहीं लगी है जो बाॅल को चिपका लेती है। यही कारण है कि उनको 'हॉकी का जादूगर' कहा जाता है। मेजर ध्यानचंद तीन बार ओलंपिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे थे, जिनमें सन् 1928 का एम्सटर्डम ओलंपिक सन् 1932 का लॉस एंजिल्स ओलंपिक एवं 1936 का वर्लिन ओलंपिक शामिल है। सन् 1936 के बर्लिन ओलंपिक खेलों में ध्यानचंद को भारतीय टीम का कप्तान चुना गया था। उन्होंने 1926 से 1948 तक अपने कैरियर में 400 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय गोल किए थे। जब कि पूरे कैरियर में एक हजार के लगभग गोल किए थे। इतना ही नहीं, जब ध्यान चंद हॉकी से रिटायर हो गए तो उसके बाद भी उनके प्रदर्शन की चमक भारतीय हॉकी टीम में बनी रही। भारत ने 1928 से 1964 तक खेले गए आठ ओलंपिक खेलों में से 7 में गोल्ड मेडल जीता था।

     भारत सरकार ने इस महान खिलाड़ी को सम्मानित करते हुए सन् 2012 में इनके जन्मदिन को *राष्ट्रीय खेल दिवस*' के रूप में मनाने का फैसला लिया था। उन्हें भारत सरकार द्वारा सन् 1956 में 'पदम भूषण' सम्मान से सम्मानित भी किया गया था।
     राष्ट्रीय खेल दिवस को राष्ट्रीय स्तर पर बड़े तौर पर मनाया जाता है।  इसका आयोजन प्रतिवर्ष राष्ट्रपति भवन में किया जाता है और राष्ट्रपति द्वारा देश के उन खिलाड़ियों को राष्ट्रीय खेल पुरस्कार दिया जाता है, जिन्होंने अपने खेल के उत्तम प्रदर्शन द्वारा पूरे विश्व में तिरंगे झंडे का मान बढ़ाया होता है। राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों  के अंतर्गत, अर्जुन अवॉर्ड, राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड और द्रोणाचार्य अवार्ड जैसे कई पुरस्कार देकर खिलाड़ियों को सम्मानित किया जाता है। इन सभी सामानों के साथ ,ध्यानचंद अवार्ड, भी इसी दिन दिया जाता है।
     सन 1979 में मेजर ध्यानचंद की मृत्यु के बाद भारतीय डाक विभाग ने उनके सम्मान में स्टाम्प भी जारी किए थे। दिल्ली के नेशनल स्टेडियम का नाम भी बदल कर उनके नाम पर 'मेजर ध्यान चंद स्टेडियम' रख कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई है। इतना ही नहीं 6 अगस्त 2021 को राजीव गांधी खेल रत्न का नाम बदलकर 'मेजर ध्यानचंद खेल रत्न' कर दिया गया है।

मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन अर्थात प्रतिवर्ष 29 अगस्त को *राष्ट्रीय खेल दिवस* के दिन उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को भारत के महामहिम राष्ट्रपति, राष्ट्रपति भवन में बुलाकर राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों से  खिलाड़ियों को सम्मानित करते हैं। इस अवसर पर खिलाड़ियों के साथ-साथ उनकी प्रतिभा निखारने वाले खेल प्रशिक्षकों को भी सम्मानित किया जाता है। इसके अतिरिक्त लगभग सभी स्कूलों तथा अन्य शिक्षण संस्थाओं में 'राष्ट्रीय खेल दिवस' के दिन अपना सालाना खेल समारोह आयोजित करते हैं।
   *मेजर ध्यानचंद खेल रत्न सम्मान* पाने वाले खिलाड़ियों को राष्ट्रपति द्वारा एक पदक, एक प्रमाण पत्र तथा नकद राशि  25,00,000 रुपए दी जाती है। सम्मानित व्यक्तियों को रेल की मुक्त पास सुविधा प्रदान की जाती है, जिसके अंतर्गत  राजधानी या शताब्दी गाड़ियों में प्रथम और द्वितीय श्रेणी वातानुकूलित कोचों में मुफ्त यात्रा कर सकते हैं।
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 संतोष कुमार सिंह
       मथुरा, उ०प्र०
मोबाइल 9456882131

संस्मरण श्रद्धा भक्ति में शक्ति - गीतांजली वार्ष्णेय"सूर्यान्जलि"इफको ऑवला बरेली उ.प्रदेश


संस्मरण
विधा-गद्य
श्रद्धा भक्ति में शक्ति
 
विश्वास एक शब्द ही नहीं एक
शक्ति है। हमारी श्रद्धा और विश्वास हमें सफलता की राह दिखाता है,हमारी कोशिश मंजिल तक ले जाती है। ऐसी ही घटना लॉक डाउन में मेरे साथ घटित हुई।
              सितंबर के महीना,मेरा 17 बर्षीय बेटा शुभांश जो हाइपरऑटिस्टिक है,हॉस्टल में वृंदावन रहता है।उसे संभालना बहुत मुश्किल है।लॉक डाउन में घर आया था।कुछ दिन ठीक रहा,धीरे धीरे उसकी हाइपर नेस बढ़ने लगी। एक दिन वह पापा के साथसब्जी मंडी गया,उसे स्प्रिंग रोल खाने थे जो लॉक डाउन के कारण नहीं मिले। पापा सब्जी ले रहे थे वह चुपचाप घर भाग आया।और चिल्लाने लगा स्प्रिंग रोल खायेगा,चिल्लाते हुए साइकिल की चाभी ली और तेजी से साइकिल लेकर निकल गया,में किचिन में खाने की तैयारी कर रही थी,मैं उसके पीछे भागी,किन्तु वह हाथ न आया।कोई यकीन नहीं करता वह सायकिल 25-30km की स्पीड में दौड़ा कर आँखों से ओझल हो गया।उसे घर लौटने का रास्ता नहीं मालूम,न ही किसी से बात करता है।कोई पूछे तो जबाब भी नही देता।
    कहते है न कि "मुसीबत अकेले नही आती,उधर मेरी सास भी उठने की कोशिश में बिस्तर से गिर गयीं।जैसे तैसे उन्हें उठाया।
    उस दिन मेरे पति फोन भी नही ले गए,वह ढूंढते हुए घर वापस आये,मैंने पूरी बात बताई और तुरंत गाड़ी लेकर ढूंढने निकल पड़े,सारे पुलिस थानों में सूचना दे दी,किन्तु नही मिला।पूरी रात दूसरा दिन ढूंढते रहे नही मिला।
    हम घर लौटे मैंने माता के मंदिर में दीपक जलाया और प्रार्थना की मेरा बच्चा सही सलामत घर नहीं लौटा तो मैं दीपक जलाना छोड़ दूँगी,ईश्वर से विश्वास खत्म हो जाएगा।पर कहते हैं विश्वास में भक्ति और ,#भक्ति में शक्ति होती है हमारे एक मित्र ने हमें 12 km और आगे देखने के लिए प्रेरित किया, और घर से लगभग 64km दूर बेटे के देखे जाने का क्लू मिला।
    हमने 112 न.गाड़ी को उसी रास्ते पर  दौड़वाया और 7 सितम्बर तीसरा दिन ,की रात्रि दो बजे भूखा प्यासा अति दयनीय स्थिति में मिला।उसकी हालत याद आ जाती है तो कलेजा कांप उठता है। किंतु माता रानी का शुक्र है उन्होनें रास्ता दिखलाया और सफलता हासिल हुईं।
    तब भक्ति में शक्ति का एहसास हुआ।।

गीतांजली वार्ष्णेय"सूर्यान्जलि"
इफको ऑवला बरेली उ.प्रदेश

संस्मरण - झलक ~ दिलीप कुमार पाठक 'सरस'

विधा-संस्मरण 

"झलक"

उत्तर प्रदेश के दो जनपद, शाहजहाँपुर तथा पीलीभीत को मिलाने वाली कटना नदी के किनारे बसा एक सुन्दर गाँव जिन्दपुरा है | पीलीभीत की दृष्टि से देखें तो नदी के इस ओर बसे गाँव पीलीभीत के हैं और उस ओर बसे गाँव शाहजहाँपुर के हैं | नदी के इस ओर गाँव खनंका और नदी पार करो तो जिंदपुरा | स्टेशन जिन्दपुरा में है और बस- अड्डा खनंका नदी पुल है | पुल पार करते ही बालासिद्धन (बारह सिद्धियों का) एक रमणीक प्राकृतिक तपोवन है जो सदैव श्रधालुओं व दर्शनार्थियों को बुलाता रहता है |
       भगवान भोलेनाथ का प्रताप कहाँ नहीं है | प्रभु का "इटौरनाथ" शिव धाम जिंदपुरा का शक्ति-धाम है | विशेष बात यह है कि यहाँ भी भगवान शिवजी कटना नदी के किनारे ही विराजमान हैं | इसी गाँव में एक ऐसा भी स्थान है जो समन्वय का पावन स्थान है| जिसके सिर पर वट-वृक्ष की छाँव है | जहाँ मंजार और मंदिर प्राचीन समय से अपनी पहचान बनाए हुए हैं | विशेष बात यह है कि इस पवित्र स्थान पर हर वृहस्पतिवार को मेला लगता है | दूर-दूर से लोग आज भी इस स्थान पर आते हैं |इस स्थान की कुछ तो विशेष बात होगी | इस स्थान से हिंदू व मुसलमान दोनों का विश्वास जुड़ा हुआ है |समान रूप से दोनों, दोनों स्थानों पर प्रसाद चढ़ाते हैं| दोनों स्थानों पर श्रद्धा से शीश झुकाते हैं |इसीलिए यहाँ की गई प्रार्थना मनोकामना के रूप में पूरी होती है |
       इसी गाँव के एक जमीनदार कश्यप गोत्रीय ब्राह्मण परिवार में परम श्रद्धेय स्व. श्री मथुरा प्रसाद पाठक जी के हृदयांश परम पूजनीय  स्व. श्री पोथीराम पाठक जी के स्नेहिल मझले सुपुत्र परम वंदनीय स्व. श्री बनवारी लाल पाठक जी ने वंश को समृद्ध करने वाले अपने श्रेष्ठ भाइयों के बड़े छोटे के बीच को भरने वाले मझले बेटे के रूप में जिसे पाया, उन्हीं वंदनीय श्री जगदीश सरन पाठक जी का पुत्र बनने का मुझे 5 जुलाई सन् 1983 को सौभाग्य मिला | ममतामयी  श्रीमती मैनादेवी मइया की गोद में मैं रोता हुआ आया था ,उस दिन आज तक  उनका दुलार पाकर हँस रहा हूँ, प्रसन्न हूँ| निश्चित रूप से माँ की देन है | 
     मेरी जन्मभूमि जिंदपुरा जैसा सुरम्य गाँव बिरला ही कोई होगा |जिसके पूर्व में स्टेशन व रेल पटरी को काटती हुई नहर, पश्चिम में शिवधाम इटौरनाथ, उत्तर में पुल व बालासिद्धन, दक्षिण में विशाल वट वृक्ष की शीतल छाया में देवस्थान व मजार चारों ओर से आपको आमंत्रित कर रहे हैं | 
       अपनी जन्मभूमि पर मुझे गर्व है | खनंका में मौसी ,जिंदपुरा में माँ , बीच में नदी | जिंदपुरा से जितनी दूर व्लॉक निगोही, उतनी ही दूर खनंका की तहसील बीसलपुर | शाहजहाँपुर बचपन का क्रीड़ांगण और जनपद पीलीभीत कब कर्मक्षेत्र बन गया? पता ही नहीं चला |

~ दिलीप कुमार पाठक 'सरस'
    20 जुलाई 2022

संस्मरण - पश्चात्ताप - मुनीशा यादव

विधा -संस्मरण
विषय- पश्चात्ताप

     निशा बहुत ही सुलझी हुई लड़की थी। उसकी आदर्शवादी विचारधारा के सभी प्रसंशक थे।सेवा भाव तो उसमें कूट-कूट कर भरा था। शादी के बाद ससुराल में भी उसने सभी के ह्रदय को जीत लिया था। सभी उससे बहुत प्यार करते थे।
           ससुर की मृत्यु के बाद उसकी सास निशा के साथ ही रहने लगीं। वह भी अपनी माँ जी का बहुत ध्यान रखती थी। माँ जी के खाने-पीने नहलाने व कपड़े धोने का भी बहुत ध्यान रखती थी। कुछ वर्षों बाद माँ जी की भी तबियत बिगड़ने लगी। लाख कोशिशों के बाद भी माँ जी को स्वास्थ्य लाभ न मिला। दिन-रात स्वास्थ्य बिगड़ता ही जा रहा था। मानसिक स्थिति भी बिगड़ने लगी थी। निशा एक शिक्षिका थी उसने कई दिनों से अवकाश ले रखा था।दिन-रात माँ जी की सेवा में गुजार रही थी। अचानक एक रात माँ जी को रात में बुखार आ गया। जब निशा ने देखा तो रात्रि के तीन बजे रहे थे। उसने अपने पति को जगाया तो पति भी घबरा गए और दवा देने को कहा। ढूँढने पर दवा भी घर में न मिली फिर ठण्डे पानी की पट्टी रखती रही व हाथ पैर भी धोती रही। बुखार थोड़ा कम हुआ तब तक सुबह के पाँच बजे चुके थे। निशा ने जल्दी-जल्दी से फिर काम किया और माँ जी को भी नित्य कर्म से निवृत कराकर   खुद भी तैयार हुई आज विद्यालय में कुछ आवश्यक सूचना जमा करनी थीं।माँ जी से विद्यालय जाने के लिये अनुमति मांगी, *"मम्मी मैं विद्यालय चली जाऊँ दो घंटे में वापस आ जाऊँगी।"* माँ जी ने एक बार के लिए भी मना नहीं किया और सिर हिलाकर अनुमति दे दी।विद्यालय पहुँचते ही उसके पति का फोन पहुँच गया कि जल्दी आ जाओ मम्मी की तबियत और बिगड़ गई हैं। वह तुरंत ही दूसरे शिक्षक के साथ चल दी। घर आई तब तक माँ जी गोलोक को सिधार चुकी थीं। उसके सब्र का बाँध टूट गया और मैं वहीं जड़ की भाँति स्थिर हो गई। बार-बार यही पश्चात्ताप हो रहा था कि काश मैं न जाती । बता दूं कि निशा कोई और नहीं मैं ही थी। यह अफसोस मुझे जीवन भर रहेगा।
       
         मुनीशा यादव



संस्मरण बदलता समय अर्थात परिवर्तन - हरीश बिष्ट "शतदल"


विषय :- बदलता समय  अर्थात परिवर्तन
विधा :- संस्मरण 

  
 परिवर्तन प्रकृति का शास्वत नियम है , जो कि सर्वविदित है | इस नियम के अनुसार समय-२ पर  मूर्त-अमूर्त हर प्रकार की वस्तुओं में परिवर्तन देखा जाना लाजिमी ही है, इसी प्रकार संस्मरण के रूप में आप सबके समक्ष अपने बचपन की बात रखने जा रहा हूँ, उस समय जब मैं बहुत छोटा था तो गाँव में ही रहता था, गाँव में ही पढ़ाई-लिखाई और घर परिवार के हर प्रकार के काम-काज करते हुए बचपन के साथ-२ जीवन के सुनहरे २०-२१ साल बीत गये, आज जब कभी उन दिनों को याद करता हूँ तो मन करता है कि काश वो दिन फिर लौटकर आ जाते, क्योंकि वो दिन जैसे भी थे बहुत अच्छे थे  |
           बचपन में हम जब छोटे-छोटे थे तो गाँव में ही रहते थे, तो उस समय आज की तरह गाँव शहरों की मानिंद इतने विकसित नहीं थे, उस समय गाँवों में शहरों की भाँति हर वस्तु आसानी से और नजदीक में ही नहीं मिलती थी, यदि हमें कुछ लेना भी होता तो गाँव से बाहर बहुत दूर-२ वो भी पैदल ही बाजारों में जाना पड़ता था, आज तो पहाड़ों में भी गाँव-२ और घर में दुकानें खुल चुकी हैं , शहरों की तरह उनमें भी हर प्रकार की अधिकतर वस्तुएं आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं, इसके अलावा किसी वस्तु के लिए बाजार भी जाना पड़ा तो गाँव-२ में रोड़ और घर-२ में गाड़ियां खड़ी हैं, मगर हमारे समय में ऐसा नहीं था, हम स्कूल भी जाते थे तो हमें पांच किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था, पाँच किलोमीटर आना और पाँच किलोमीटर जाना, और स्कूल से वापस आकर फिर घर का काम भी करना पड़ता था, लेकिन हम फिर भी खुश रहते थे | इस सब के बावजूद बाल मन तो बाल मन ही होता है, जो चंचल और जिज्ञासु होने के साथ-२ महत्वाकांक्षी भी होता ही है, बशर्ते उसकी महत्वाकांक्षा बड़ी-२ न होकर छोटी-२ सही, हमारा गाँव दो भागों में बँटा है एक नाले के इस ओर और दूसरा उस ओर, मगर गाँव एक ही है, अब तो सब पूरी तरह से लगभग एक सा ही हो गया है, उन दिनों जब कभी कोई त्योहार वगैरह या फिर गाँव में शादियाँ होती थी तो उस दूसरी तरफ के लड़के जो की उस समय अधिकतर शहरों में रहते थे तो वे गाँव आते रहते थे, और जब गाँव आते थे तो अपने साथ फल-फूल, मिठाई, अपने छोटे भाई-बहिनों के लिए लत्ते-कपड़े, खिलोने, दिवाली पर फुलझड़ी, बाम्ब, तथा अन्य प्रकार के छोटे-बड़े पटाखे लाते थे, दूसरी तरफ हमारी तरफ से एक-दो को छोड़कर कोई भी शहरों में नहीं था, जो थे भी तो वो अपने परिवारों के साथ रहते थे, तो वो २-३ साल में कभी कभार ही गाँव आते थे, तो मिठाई वगैरह खाने को कम ही मिला करती थी, उस समय मेरा भी शायद हो सकता है दूसरे बच्चों का मन भी करता हो, पर मैं तो अपने मन की बता सकता हूँ, तो उस समय मेरा मन करता था की काश हमारे बाखली ( मोहल्ले) के लड़के भी शहरों में होते तो हमारी बाखली खूब मिठाई आती और हमको भी खाने को मिलती, और हमें भी मजा आता, मैं आप सभी को एक बात और बताना चाहता हूँ कि शुरु से ही हमारे पहाड़ों में एक रिवाज है कि जो भी शहरों से नौकरी करके आता तो वह गाँव में बाँटने के लिए मिठाई जरुर लाता, और जैसे नई-२ बहुएंँ  भी अपने मायके से ससुराल को आती या फिर चैत के महिने  में भिटोली ( चैत्र के महिने में मायके वालों की तरफ से अपनी बेटी को दिया जाने वाला तोहफे के रूप में लत्ते-कपड़े के साथ- पूरियाँ या मिठाई ) के समय जो कुछ भी लाते या आता उसे पूरे गाँव में बाँटा जाता है, तब हमारा भी मन करता काश कोई आता अच्छी-२ टॉफियाँ, मिठाईयाँ या फिर फल-फूल  लाता तो कितना अच्छा होता , ऐसा विशेषकर दिवाली या किसी अन्य त्योहार के समय ज्यादा होता, धीरे-२ हम भी बढ़े होते गये, और फिर एक दिन मैं भी शहर को आ गया, अब जब भी घर जाता हूँ तो ४-५ किलो मिठाई, फल-फूल और घर पर जाते समय बाखली के बच्चों को बाँटने के लिए टॉफी इत्यादि जरूर ले जाता हूँ, परंतु हमारे समय में तो बाखली में बच्चे भी बहुत थे, मानो हर घर से ४-५ बच्चे तो होंगे ही, और बाहर से आने वाले गिने-चुने लोग वो भी २-३ साल में एक बार, अब तो हर घर से कोई न कोई बाहर शहरों में रहता है, और हर महिने कोई न कोई गाँव जाते रहता, लेकिन अब बाखली में पहले की तरह बच्चे भी नहीं रहे , किसी का एक तो किसी के दो और उनमें से भी अधिकतर शहरों की तरफ आ चुके है़ं , इसलिए अब पहले की तरह बच्चे भी नहीं, साथ ही जो चीज शहरों में मिलती है वही सब वस्तुए गाँवों में भी आसानी से मिल जाती है, तो जिसे जब जो चीज चाहिए वो वहीं पर ले लेता है  , इसलिए अब पहले जैसी बात भी नहीं रही, और हाँ गर्मियो में सभी जगह मई- जून में स्कूलों की छुट्टीयाँ पड़ जाती और गाँवों में अधिकतर शादियाँ भी उसी समय होती थी, तो हम लोग भी उस समय बड़ी बेसब्री से शहर से गाँव आने वालों का इंतजार करते रहते कि वो आएगा, फलाना आएगा, उसके चाचा आएंगे, उसका भाई आएगा करके, जो भी एक बार गाँव आता वो हमारा और हम उसके मित्र बन ही जाते, और बड़े खुश होते, और जब वो लोग छुट्टियाँ बीत जाने पर शहरों की तरफ जाते तो हमको बहुत बुरा लगता और उस रात तो हम खाना भी नहीं खाते, भूखे ही सो जाते, ऐसी थी उस समय गाँव की जिंदगी, लेकिन आज की शहरों की जिंदगी से तो बड़ा ही आनंद आता था गाँव की उस जिंदगी में, लेकिन अपने दिनों को याद करते हुए जब भी गाँव जाता हूँ तो कभी भी खाली हाथ नहीं जाता, क्योंकि मुझे पता है अपने घर में खाने को चाहे कुछ कितना बढ़िया ही क्यों न मिल जाए मगर उससे ज्यादा आनंद तो बाहर अर्थात दूसरे के घर से आयी चीज में होता है, चाहे वो खाने को बिल्कुल थोड़ा सा ही क्यों न मिले, उसमें जो प्यार और अपनत्व की महक होती है उससे उसका स्वाद कई गुना बढ़ जाता है, इसीलिए मेरे बाल मन में उस समय ऐसी बाल इच्छाएँ अक्सर जन्म लेती रहती थी, और हाँ दुख केवल इस बात का नहीं होता था कि हमें मिठाई या फिर कुछ और खाने को नहीं मिली बल्कि दुख तो इस बात का होता की काश कोई हमारा भी शहरों से आता! 


   हरीश बिष्ट "शतदल"
रानीखेत || उत्तराखण्ड ||
  VJTM438045IN

Monday, July 18, 2022

इंजी. हेमंत कुमार जैन जी को जबलपुर इकाई का जिलाध्यक्ष बनाये जाने पर हार्दिक शुभकामनाएं।


विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत मध्यप्रदेश की जबलपुर इकाई का जिला अध्यक्ष इंजी. हेमंत कुमार जैन जी को बनाये जाने पर हार्दिक शुभकामनाएं।

     
       प्रदेश अध्यक्ष
नीतेंद्र सिंह परमार 'भारत'
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत
    मध्यप्रदेश इकाई



Saturday, July 16, 2022

नव नियुक्त - नीतेंद्र भारत

आमंत्रण पत्र सह कार्यक्रम की रूपरेखा 
*एक कदम और त्रैमासिक ई पत्रिका* के जुलाई अंक का विमोचन, *नवनियुक्ति* व *सम्मान समारोह*

दिनांक - 16/7/2022,शनिवार

समय ~शाम 8:30 से प्रारम्भ 

स्थान - जय काव्य चित्रशाला 
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सरस्वती वंदना ~आ. आशा बुटोला 'सुप्रसन्ना' जी
स्वागत-गीत ~ आ. इंजी. संतोष कुमार सिंह जी 
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नियुक्ति पत्र प्रदाता ~ राष्ट्रीय संरक्षक आ. कौशल कुमार पाण्डेय आस जी
नियुक्त ~राष्ट्रीय प्रवक्ता
डॉ. शरद श्रीवास्तव जी 

नियुक्ति पत्र प्रदाता ~ राष्ट्रीय अध्यक्ष आ. सुशीला धस्माना मुस्कान जी 
नियुक्त ~अन्तर्राष्ट्रीय समन्वयक ~ आ. विमलेश कुमार 'हमदम' जी 

नियुक्ति पत्र प्रदाता ~ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आ. डॉ. राहुल शुक्ल 'साहिल' जी 
नियुक्त ~ राष्ट्रीय समन्वयक आ. डॉ. संतोष कुमार सिंह 'सजल' जी 

सम्मान पत्र प्रदाता ~ अलंकरण प्रमुख पं. सुमित शर्मा 'पीयूष: जी 
नियुक्त ~ जिला इकाई फर्रुखाबाद अध्यक्ष आ. दिनेश अवस्थी जी 

सम्मान पत्र प्रदाता ~ राष्ट्रीय सलाहकार आ. संतोष कुमार 'प्रीत' जी 
नियुक्त ~ राष्ट्रीय कार्यक्रम अध्यक्ष नीतेन्द्र सिंह परमार 'भारत' जी 

नियुक्ति पत्र प्रदाता ~ राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष ओमप्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल' जी 
नियुक्त ~ जबलपुर जिला इकाई अध्यक्ष आ. इंजी. हेमंत जैन जी 

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कार्यक्रम संचालक ~ नीतेन्द्र सिंह परमार भारत जी 
(साहित्यिक नामकरण समारोह प्रभारी) पाँच साहित्यकार साथियों के साहित्यिक नामकरण हेतु चयन करना |

कार्यक्रम संरक्षक ~ आ. शंकर केहरी जी 
कार्यक्रम अध्यक्ष ~ आ. अरविंद सोनी 'सार्थक' जी 
स्वागत प्रमुख ~ आ. मनोज खोलिया जी व आ. राजेश मिश्रा 'प्रयास' जी 
विमोचनकर्ता  ~ आ. इंजी. हेमंत कुमार जैन जी 

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(लिखित और ऑडियो दोनों में) विशेष उद्बोधक

राष्ट्रीय प्रवक्ता ~डॉ. शरद श्रीवास्तव जी 
वरिष्ठ साहित्यकार व मार्गदर्शक ~ आ. इंजी. संतोष कुमार सिंह जी 
राष्ट्रीय समन्वयक ~ आ. डॉ. संतोष कुमार सिंह सजल जी 
कार्यक्रम अध्यक्ष ~ आ.अरविंद सोनी 'सार्थक' जी 
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ~ डॉ. राहुल शुक्ल साहिल ~ त्रैमासिक गतिविधि का लिखित रूप विशेष सह उद्बोधन |
दैनिक कार्यक्रम प्रमुख ~ आ. हेमंत कुमार जैन जी 
राष्ट्रीय अध्यक्ष ~ आ. सुशीला धस्माना 'मुस्कान' जी 
आगामी कार्ययोजना का प्रारूप सहित उद्बोधन  ~ दिलीप कुमार पाठक 'सरस' 
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निवेदक - प्रशासक मंडल

तृतीय- श्रावणमास #श्रृंगार श्री श्री 1008 श्री संकट मोचन मंदिर छतरपुर (म.प्र)

#तृतीय- श्रावणमास #श्रृंगार 🌺🌺🌺
श्री श्री 1008 श्री संकट मोचन मंदिर छतरपुर (म.प्र)

आपके प्रति ~~दिलीप कुमार पाठक 'सरस'प्रधान संपादकएक कदम और त्रैमासिक ई साहित्यिक पत्रिका

आपके प्रति ~

यह गौरव की बात है कि एक कदम और त्रैमासिक साहित्यिक ई पत्रिका (प्रथम अंक~बालपत्रिका) अक्टूबर 2019 में प्रकाशित होकर अनवरत विकास की ओर अग्रसर होती हुई आज हिंदी साहित्य की श्रेष्ठ ई पत्रिकाओं में अपनी अलग पहचान रखती है | इस पत्रिका के संपादक प्रिय भाई ओमप्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल' जी ने इस पत्रिका को स्थायित्व दिया और आप सभी साथियों ने इसे अपना प्रत्येक प्रकार से समर्पण दिया, स्नेह दिया | इस पत्रिका का नवीन जुलाई अंक आपके कर कमलों में है | आप सभी साथियों के स्नेह ने इसे सींचा है, पल्लवित किया है, पुष्पित किया | आप सभी साथियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ |
      प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से आप सभी साथी इस अनुठी पत्रिका के सहयोगी हैं, आपके किए गए प्रयासों को भुलाया नहीं जा सकता |इस अंक के माध्यम से आप सभी स्नेहिल साथियों का हार्दिक अभिनंदन करता हूँ | 
     इस अंक में विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत के त्रैमासिक कार्यों का संक्षिप्त विवरण मिलेगा जो कि संस्था उपाध्यक्ष आ. डॉ. राहुल शुक्ल साहिल जी द्वारा लिखा जाता है, आपको पढ़ने को मिलेगा | मुख्य पृष्ठ का आकर्षण आपको लुभाएगा, जो आ. संपादक महोदय की साज सज्जा, क्रमबद्धता के द्योतक हैं | आप सभी स्नेहिल साथियों के प्यार भरे शुभकामना संदेश निश्चित रूप से इस पत्रिका को विशेष बनाने का काम कर रहे हैं | नाम में क्या रखा है, काम स्वयं बोलते हैं | जब काम बोलते हैं तो नाम स्वयं गूँजता है |समस्त जिला इकाई, समस्त प्रांत इकाई, राष्ट्रीय इकाई के पदाधिकारी व प्रशासक मंडल के पदाधिकारी,समस्त पत्रिका पदाधिकारियों के साथ इस पत्रिका से जुड़े सभी पाठक व सभी रचनाकार साथियों को इस अंक के प्रकाशन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ |
    श्रावण के पावन मास में, प्रकृति के क्रीड़ांगण की भावभूमि पर क्रीड़ा करती रचनाकारों की कलमतूलिका एक नवीनतम् सृष्टि-चित्र का निर्माण करने में संलग्न है | यह चित्र आनंद का केन्द्र बनकर हर दृष्टि को प्रेरणा प्रदान करेगा ऐसा मेरा विश्वास है |
      भगवान भोलेनाथ की महिमा का गान, हर-हर बम-बम करती काँवरियों की टोलियों का जयगान, रिमझिम-रिमझिम सावन की फुहारों के बीच प्रस्फुटित होते आनंद की किलकारियाँ | सावन में मेघों की धोखेबाजी, मिलन की उत्कंठा, पौधारोपण के बाद उनका जलाभिलाषी होना स्वाभाविक है |
  स्वाभाविकता के धरातल पर सभी साथियों की ओर से इतना ही कहना चाहूँगा हे प्रिय मेघ! 
       अबकी बार बरस जाओ |
       मैंने पौध लगाई है |
        प्यासी है मुरझाई है ||
        दुबली हो अकुलाई है |
        सावन की ऋतु आई है ||
        कर उपकार बरस जाओ |
         अबकी बार बरस जाओ ||
      नवरसकलश की छलकन का आनंद आपको समर्पित करते हुए गौरवान्वित हूँ | पुनश्च हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ | आपका सहयोग व स्नेह सदैव मिलता रहेगा | कुछ नया करने की आप सभी साथी नित प्रेरणा देते रहेंगे | मुझे पूर्ण विश्वास है |
बधाई! 

~दिलीप कुमार पाठक 'सरस'
प्रधान संपादक
एक कदम और त्रैमासिक ई साहित्यिक पत्रिका

Thursday, July 14, 2022

#प्रथम- श्रावणमास #श्रृंगार श्री श्री 1008 श्री संकट मोचन मंदिर छतरपुर (म.प्र)

#प्रथम- श्रावणमास #श्रृंगार 
श्री श्री 1008 श्री संकट मोचन मंदिर छतरपुर (म.प्र)

1857 की क्रांति के समय भारत का क्षेत्रफल था लगभग 83 लाख वर्ग किलोमीटर जो आज घटकर मात्र लगभग 33 लाख वर्ग-किलोमीटर रह गया है।

ज्यादा अतीत में न जायें तो भी 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेज प्रशासनिक अफसर जब कलकत्ता के अपने दफ़्तर में बैठते थे तो प्रोटोकॉल के अनुसार उनके पीछे की दीवार पर उस भारत का मानचित्र लगा होता था जिसे वो "इंडिया" कहकर पुकारते थे। 

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उस नक़्शे के अनुसार 1857 की क्रांति के समय भारत का क्षेत्रफल था लगभग 83 लाख वर्ग किलोमीटर जो आज घटकर मात्र लगभग 33 लाख वर्ग-किलोमीटर रह गया है। 

यानि 1857 के बाद हमने अपनी भारतभूमि का लगभग पचास लाख वर्ग किलोमीटर भूभाग गँवा दिया। 

मगर न तो हमें वेदना है न ही कोई शर्म 🙁
#ख्वाजामेरालेले

Monday, July 11, 2022

"संवेदनशील हृदय के लिए कितनी बड़ी चुनौती है, प्रयोगात्मक दौर में भावनात्मक रहना।"~ इति शिवहरे

जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है, न सुख न दुःख न नौकरी न रिश्ते कुछ भी नहीं, एक नियत समय पर सबको छूटना ही है पर छूटने की क्रिया में कब कुछ छूट पाया है, बल्कि शामिल और हो जाती है, उदासी, उदासीनता, ऊब, घुटन, पीड़ा और भी न जाने क्या-क्या? 
छूटने के क्रम में तो हरा पत्ता भी पीला पड़ जाता है, फिर हम तो मनुष्य हैं! और हमारी भावनाएँ किसी की प्रयोगशाला जिस पर लोग अपने प्रयोग करते रहते हैं!

"संवेदनशील हृदय के लिए कितनी बड़ी चुनौती है, प्रयोगात्मक दौर में भावनात्मक रहना।"

~ इति शिवहरे

Saturday, July 9, 2022

भारतीय परंपरा - प्रथम

हमने कभी वेदों का अध्ययन नही किया,हमने कभी गीता पढ़कर उसे अमल में लाने का प्रयास नही किया,हमने योग विद्या को कभी नही अपनाया,हमने आयुर्वेद में कोई अनुसंधान नही किया,हमने संस्कृत भाषा को कोई महत्व नही दिया ऐसी बहुत सी अच्छी और महत्वपूर्ण चीजें है जो हमारे पूर्वज हमारे बुजुर्ग हमे विरासत में दे गए पर हम पाश्चात्य संस्कृति अपनाने में अंधे हो गए हमने धीरे धीरे हमारी संस्कृति को ही छोड़ने का काम किया.
अब एक बहुत छोटी सी बात है पर हमने उसे विस्मृत कर दिया हमारी भोजन संस्कृति इस भोजन संस्कृति में बैठकर खाना और उस भोजन को "दोने पत्तल" पर परोसने का बड़ा महत्व था कोई भी मांगलिक कार्य हो उस समय भोजन एक पंक्ति में बैठकर खाया जाता था और वो भोजन पत्तल पर परोसा जाता था जो विभिन्न प्रकार की वनस्पति के पत्तो से निर्मित होती थी.

क्या हमने कभी जानने की कोशिश की कि ये भोजन पत्तल पर परोसकर ही क्यो खाया जाता था?नही क्योकि हम उस महत्व को जानते तो देश मे कभी ये "बुफे"जैसी खड़े रहकर भोजन करने की संस्कृति आ ही नही पाती.
जैसा कि हम जानते है पत्तले अनेक प्रकार के पेड़ो के पत्तों से बनाई जा सकती है इसलिए अलग-अलग पत्तों से बनी पत्तलों में गुण भी अलग-अलग होते है| तो आइए जानते है कि कौन से पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से क्या फायदा होता है? 

लकवा से पीड़ित व्यक्ति को अमलतास के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना फायदेमंद होता है| 
जिन लोगों को जोड़ो के दर्द की समस्या है ,उन्हें करंज के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए| 
जिनकी मानसिक स्थिति सही नहीं होती है ,उन्हें पीपल के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए| 
पलाश के पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से खून साफ होता है और बवासीर के रोग में भी फायदा मिलता है| 
केले के पत्ते पर भोजन करना तो सबसे शुभ माना जाता है ,इसमें बहुत से ऐसे तत्व होते है जो हमें अनेक बीमारियों से भी सुरक्षित रखते है| 
पत्तल में भोजन करने से पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता है क्योंकि पत्तले आसानी से नष्ट हो जाती है| 
पत्तलों के नष्ट होने के बाद जो खाद बनती है वो खेती के लिए बहुत लाभदायक होती है| 
पत्तले प्राकतिक रूप से स्वच्छ होती है इसलिए इस पर भोजन करने से हमारे शरीर को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है| 
अगर हम पत्तलों का अधिक से अधिक उपयोग करेंगे तो गांव के लोगों को रोजगार भी अधिक मिलेगा क्योंकि पेड़ सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रो में ही पाये जाते है| 

अगर पत्तलों की मांग बढ़ेगी तो लोग पेड़ भी ज्यादा लगायेंगे जिससे प्रदूषण कम होगा| 
डिस्पोजल के कारण जो हमारी मिट्टी ,नदियों ,तालाबों में प्रदूषण फैल रहा है ,पत्तल के अधिक उपयोग से वह कम हो जायेगा| 

जो मासूम जानवर इन प्लास्टिक को खाने से बीमार हो जाते है या फिर मर जाते है वे भी सुरक्षित हो जायेंगे ,क्योंकि अगर कोई जानवर पत्तलों को खा भी लेता है तो इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा| 

सबसे बड़ी बात पत्तले ,डिस्पोजल से बहुत सस्ती भी होती है|

ये बदलाव आप और हम ही ला सकते है अपनी संस्कृति को अपनाने से हम छोटे नही हो जाएंगे बल्कि हमे इस बात का गर्व होना चाहिए कि हम हमारी संस्कृति का विश्व मे कोई सानी नही है

लेखक अभय

राष्ट्रीय महासचिव - संकीर्तन समोत्थान समिति मध्यप्रदेश,भारत का बनाया गया। - नीतेंद्र भारत

हार्दिक आभार समिति का मुझें महासचिव का दायित्व देने हेतु। आ० विनोदी जी का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।

राष्ट्रीय महासचिव
नीतेंद्र सिंह परमार 'भारत'
संकीर्तन समोत्थान समिति
मध्यप्रदेश, भारत

Friday, July 8, 2022

"कितनी बड़ी त्रासदी है न युवावस्था में मोहावस्था से विरक्ति होना!" ~ इति शिवहरे


एक समय होता है जब हमें सब-कुछ चाहिए होता है। हर सपने अपने होते हैं, लेकिन ये समय, कुछ समय के लिए ही होता है, फिर आता है एक 'ठहराव' अनिश्चितकाल के लिए, जहाँ न कुछ पाने की जिद होती है न कामनाएँ। यहाँ तक की मिली हुई चीजों को भी सहेजने में कोई दिलचस्पी नहीं रह जाती। जो कुछ भी हमसे छूट रहा होता है, उसे उतनी ही सहजता के साथ छूटने देते हैं। जाते हुए को रोक नहीं पाते, किसी के साथ ज्यादा जुड़ने का प्रयास नहीं करते, क्योंकि जानते हैं, हम सब जिंदगी की रेल के डिब्बे में बैठे यात्री हैं जो अपना गंतव्य आते ही उतर जाएँगे।

"कितनी बड़ी त्रासदी है न युवावस्था में मोहावस्था से विरक्ति होना!"

~इति शिवहरे

विधा-जीवनी संबंधित रचनाकार ~ ओमप्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल'



विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत के संस्थापक एवं वरिष्ठ साहित्यकार आ. दिलीप कुमार पाठक 'सरस' जी का कोटि कोटि आभार

विधा-जीवनी 
संबंधित रचनाकार ~ ओमप्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल'
दिनांक~ 8/7/2022
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हिंदी साहित्य के युवा सशक्त हस्ताक्षर ओमप्रकाश फुलारा जी का जन्म उत्तराखंड राज्य के जनपद अल्मोड़ा की एक सुंदर- सी पहाड़ी पर बसे छोटे-से गाँव मयोली में 2 मई सन् 1980 को एक साधारण से भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था | चार सुपुत्रियों को प्राप्त करने के पश्चात जन्मे इस पुत्ररत्न को प्राप्त कर विष्णुदत्त फुलारा और कमलादेवी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा अतः आपका नामकरण संस्कार हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ | आपके पिता सरकारी अस्पताल में लैब-तकनीशियन के पद पर कार्यरत होने के साथ ही साथ बहुत ही सामाजिक व्यक्ति थे,जिसका प्रभाव बालक पर पड़ना स्वाभाविक ही था | वे सप्ताह में एक बार गाँव आते थे तो पूरे गाँव का भ्रमण कर सभी के स्वास्थ्य की जानकारी लेते थे व मल ,मूत्र जाँच के लिए ले जाते थे तथा उचित सलाह व उपचार कराने में सहयोगी बनते थे | परन्तु इस बालक को यह सब देखना नसीब न हुआ | तीन वर्ष की बाल्यावस्था में ही पिता जी की छत्रछाया सिर से उठ गयी | अबोध बच्चे को पिता का प्यार अधिक समय तक न मिल सका |माता कमलादेवी ने कठोर श्रम कर अपने पाँचों बच्चों को पाला- पोसा | 
    आपके पिताजी की मृत्यु के बाद माताजी को 190 रुपया पारिवारिक पेंशन मिलने लगी लेकिन इतने अल्प में 5 बच्चों का भरण पोषण एवं उनकी शिक्षा सम्भव नहीं थी | परन्तु माताजी के श्रम ने  खेतीबाड़ी कर तथा गाय भैंस पालकर घी दूध आदि बेचकर तथा कठिन मेहनत- मजदूरी करके परिवार का पालन पोषण कर इस दुष्कर कार्य को संभव कर दिखाया | बाद में बहनें बड़ी हो गयीं तो उन्होंने भी पढ़ाई के साथ-साथ मेहनत मजदूरी में माताजी का हाथ बँटाना शुरू किया। खेत में काम करते हुए विद्यालय का समय होने पर सभी भाई- बहन खेतों से ही तैयार होकर विद्यालय को जाते थे और विद्यालय से सीधे खेतों में ही आते थे | जहाँ माता जी बच्चों का इंतजार कर रहीं होतीं थीं| इस प्रकार कठिन संघर्षों के बीच सन् 1989 में बालक की प्रारंभिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालय बाबन में सम्पन्न हुई |
      इस बालक ने कठिन परिश्रम कर सन् 1996 में इंटरमीडिएट राजकीय इंटर कॉलेज जालली से पूरा किया व उच्च शिक्षा मयोली गाँव की तहसील द्वाराहाट में स्थापित राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय द्वाराहाट से पूरी की | 
    विद्यार्थी जीवन में इस बालक को सदैव गुरुजनों का आशीर्वाद प्राप्त हुआ| प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक आ. रतन सिंह जी का भरपूर सहयोग औऱ आशीर्वाद प्राप्त कर उनके बताए मार्ग पर चलकर यह बालक समस्त बाधाओं को पार करता हुआ हमेशा आगे बढ़ा | आपका परिश्रम ही आपकी पहचान बनता चला गया |इसी बीच बहिनों के विवाह की जिम्मेदारी माताजी के साथ निभाई | 
         मृतक आश्रित के रूप में पिता जी जगह नौकरी के सपने बचपन से ही सबने इस बालक को दिखाए थे | जिसके चलते उच्च शिक्षा पूर्णतः प्रभावित रही। आपके चाचा श्री लीलाधर फुलारा जी का उपकार कभी भुलाया नहीं जा सकता | आपके पिताजी की मृत्यु के बाद उन्होंने ही आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और पूरी तरह से मार्गदर्शित किया। पिताजी की जगह पर नौकरी के लिए उन्होंने भरपूर भागदौड़ की पर ईश्वर की इच्छा के आगे किसकी चलती है।वर्ष 2004 में आ. हरीश पाण्डेय जी(जिन्होंने इंटर की कक्षाओं में हमेशा बालक का मार्गदर्शन किया) ने एक विद्यालय खोला और वहाँ अध्यापन का कार्य सौंपा जो पूर्णतः अवैतनिक था | केवल सीखने के उद्देश्य से बालक ने विद्यालय में भरपूर परिश्रम किया | उनका भी यह पहला अनुभव था। 3 साल तक वहाँ अध्यापन कार्य करने के बाद यह साहसी बालक बी. एड के लिए देहरादून चला गया। सन 2007 दिसम्बर में बी एड करके वापस लौटा तो 2 महीने शिशु मंदिर जालली में अध्यापन कार्य किया उसके पश्चात कंट्रीवाइड पब्लिक स्कूल गरुड़ में अध्यापन कार्य का अवसर प्राप्त हुआ। अप्रैल 2008  में गरुड़ आगमन हुआ। उसके बाद राजकीय महाविद्यालय बागेश्वर से हिंदी से पुनः एम.ए. किया। पढ़ाई के दौरान इस बालक के मन पर कबीरदास जी का बहुत प्रभाव पड़ा| जिसने सोचने का नजरिया ही बदल दिया |जितना है उसी में संतोष करना आ गया |परीक्षा के दौरान बालक की मुलाकात गुरुदेव डॉ हेम चंद्र दुबे जी से हुई धीरे-धीरे बातों का सिलसिला शुरू हुआ |जो मुलाकातों में बदलता चला गया | आ. दुबे जी के मृदुल स्वभाव एवं उनकी रचनाओं ने इस बालक को बहुत प्रभावित किया। उनसे ही रचना लिखने की प्रेरणा मिली | उन्हीं के आशीर्वाद से साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण किया। प्रसिद्ध साहित्यकार आ. मोहन जोशी जी ने भी इस क्षेत्र में बालक का मार्गदर्शन किया। इन दोनों विद्वतजनों के आशीर्वाद से ही आज साहित्य के क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए आज यह बालक ओमप्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल' नाम से युवा हिंदी साहित्यकारों का सिरमौर बनकर हिंदी साहित्य की श्रीबृद्धि कर रहा है |
        सन् 2011 में आपका विवाह मंजू देवी से हुआ | सुशील पत्नी का साथ मिला तो जीवन में खुशहाली आई | घर परिवार सँभला | दाम्पत्य सुख से परिवार की बृद्धि हुई | सन् 2012 में लक्ष्मी के रूप में पुत्री प्रियांशी का जन्म हुआ और सन् 2014 में प्रियांशु पुत्ररत्न मिला | वर्ष 2014 में स्कूल पत्रिका DAWN का सम्पादन कार्य पहली बार मिला जिसे आपने सफलता पूर्वक सम्पन्न किया |
वर्ष 2019 में आ. भुवन बिष्ट जी द्वारा आपको विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत से जोड़ा गया | जहाँ कई साहित्यकारों का मार्गदर्शन मिला | आपने अपने परिश्रम व स्नेह से इस संस्था में अपनी जगह बनाई |आज विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत के आप राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष व उत्तराखंड इकाई के अध्यक्ष के रूप में अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन कुशलता पूर्वक कर रहे हैं |इस संस्था के माध्यम से आपको छंदगुरु के रूप में आ. शैलेन्द्र खरे सोम जी जैसे अनमोल रत्न प्राप्त हुए व कई अन्य साहित्य साधकों से समन्वय स्थापित कर निरन्तर आप संस्था की शक्ति बन रहे हैं | अब तक आपने हिंदी साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लिखने का काम किया | कई संस्थाओं ने आपको सम्मानित भी किया है | आपकी रचनाएँ कई साझा संकलनों में प्रकाशित हो चुकी हैं | अभी हाल में ही आपने श्रीराम जी के चरित पर आधारित एक नूतन छंदबद्ध खंडकाव्य की रचना भी की है जो शीघ्र प्रकाशित भी होगी | कई विशेषांकों का संपादन आप कर चुके हैं | एक कदम और त्रैमासिक साहित्यिक ई पत्रिका का आप संपादन विगत तीन वर्षों से लगातार करते चले आ रहे हैं | कई विद्यालयों नें, कई अधिकारियों ने व कई संस्थाओं ने आपके कार्य व परिश्रम की सराहना करते हुए आपको सम्मानित किया है |
      आपके कार्य आपकी पहचान बनते जा रहे हैं | वह बालक जो अभावों में जिया, संघर्षों से खेला, पर अपने काम से व परिश्रम से कभी समझौता नहीं किया | हर जगह अपना एक अलग पहचान बनाई | अपना अलग स्थान बनाया | आज वही बालक श्री ओमप्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल' बनकर अध्यापन कार्य के द्वारा समाज की नई पीढ़ी को शिक्षित करने का काम करते हुए साहित्य साधना कर हिन्दी का नवोत्थान करते हुए समाज को जगाने का व राष्ट्र के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है और सभी के हृदय सिंहासन पर राज कर रहा है |

~दिलीप कुमार पाठक 'सरस'

Thursday, July 7, 2022

महारानी अजबदे पंवार

• महारानी अजबदे पंवार •

मेवाड़ के महाराजा महाराणा प्रताप की पत्नी महारानी अजबदे पंवार का जन्म 1542 में महान राव मम्रख पंवार और महारानी हंसा बाई के यहाँ हुआ था। महारानी अजबदे महाराणा प्रताप के लिए महान समर्थक थी। महाराणा प्रताप का यह मानना था की वह महाराणा प्रताप की मां महारानी जयवंताबाई की छाया थी। वह महाराणी अजबदे में हमेशा अपनी मां महारानी जयवंता बाई को देखा करते थे।

संस्कृत भाषा का चमत्कार देखिये

संस्कृत भाषा का चमत्कार देखिये

अहिः = सर्पः
अहिरिपुः = गरुडः
अहिरिपुपतिः = विष्णुः
अहिरिपुपतिकान्ता = लक्ष्मीः
अहिरिपुपतिकान्तातातः = सागरः
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धः = रामः
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ता = सीता
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरः = रावणः
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयः = मेघनादः
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्ता = लक्ष्मणः
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदाता = हनुमान्
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजः = अर्जुनः

अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजसखा = श्रीकृष्णः
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजसखिसुतः = प्रद्युम्नः
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजसखिसुतसुतः = अनिरुद्धः


 
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजसखिसुतसुतकान्ता = उषा
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजसखिसुतसुतकान्तातातः = बाणासुरः
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजसखिसुतसुतकान्तातातसम्पूज्यः = शिवः

अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजसखिसुतसुतकान्तातातसम्पूज्यकान्ता = पार्वती
अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजसखिसुतसुतकान्तातातसम्पूज्यकान्तापिता = हिमालयः

अहिरिपुपतिकान्तातातसम्बद्धकान्ताहरतनयनिहन्तृप्राणदातृध्वजसखिसुतसुतकान्तातातसम्पूज्यकान्तापितृशिरोवहा = गङ्गा,

सा मां पुनातु इति अन्वयः

है किसी अन्य भाषा में इतना सामर्थ्य..???

जयतु सनातन
सनातन धर्म सर्वश्रेष्ठ है
हर हर महादेव
जय श्रीराम

प्रयागराज संगम की पावन नगरी में साहित्यिक क्षेत्र में सुप्रसिद्ध संगठन "विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत" का छठवाॅं वार्षिकोत्सव मनाया गया।

दिनांक 30/11/2024 को प्रयागराज संगम की पावन नगरी में साहित्यिक क्षेत्र में सुप्रसिद्ध संगठन "विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत" का छठवाॅं ...