विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत के संस्थापक एवं वरिष्ठ साहित्यकार आ. दिलीप कुमार पाठक 'सरस' जी का कोटि कोटि आभार
विधा-जीवनी
संबंधित रचनाकार ~ ओमप्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल'
दिनांक~ 8/7/2022
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हिंदी साहित्य के युवा सशक्त हस्ताक्षर ओमप्रकाश फुलारा जी का जन्म उत्तराखंड राज्य के जनपद अल्मोड़ा की एक सुंदर- सी पहाड़ी पर बसे छोटे-से गाँव मयोली में 2 मई सन् 1980 को एक साधारण से भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था | चार सुपुत्रियों को प्राप्त करने के पश्चात जन्मे इस पुत्ररत्न को प्राप्त कर विष्णुदत्त फुलारा और कमलादेवी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा अतः आपका नामकरण संस्कार हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ | आपके पिता सरकारी अस्पताल में लैब-तकनीशियन के पद पर कार्यरत होने के साथ ही साथ बहुत ही सामाजिक व्यक्ति थे,जिसका प्रभाव बालक पर पड़ना स्वाभाविक ही था | वे सप्ताह में एक बार गाँव आते थे तो पूरे गाँव का भ्रमण कर सभी के स्वास्थ्य की जानकारी लेते थे व मल ,मूत्र जाँच के लिए ले जाते थे तथा उचित सलाह व उपचार कराने में सहयोगी बनते थे | परन्तु इस बालक को यह सब देखना नसीब न हुआ | तीन वर्ष की बाल्यावस्था में ही पिता जी की छत्रछाया सिर से उठ गयी | अबोध बच्चे को पिता का प्यार अधिक समय तक न मिल सका |माता कमलादेवी ने कठोर श्रम कर अपने पाँचों बच्चों को पाला- पोसा |
आपके पिताजी की मृत्यु के बाद माताजी को 190 रुपया पारिवारिक पेंशन मिलने लगी लेकिन इतने अल्प में 5 बच्चों का भरण पोषण एवं उनकी शिक्षा सम्भव नहीं थी | परन्तु माताजी के श्रम ने खेतीबाड़ी कर तथा गाय भैंस पालकर घी दूध आदि बेचकर तथा कठिन मेहनत- मजदूरी करके परिवार का पालन पोषण कर इस दुष्कर कार्य को संभव कर दिखाया | बाद में बहनें बड़ी हो गयीं तो उन्होंने भी पढ़ाई के साथ-साथ मेहनत मजदूरी में माताजी का हाथ बँटाना शुरू किया। खेत में काम करते हुए विद्यालय का समय होने पर सभी भाई- बहन खेतों से ही तैयार होकर विद्यालय को जाते थे और विद्यालय से सीधे खेतों में ही आते थे | जहाँ माता जी बच्चों का इंतजार कर रहीं होतीं थीं| इस प्रकार कठिन संघर्षों के बीच सन् 1989 में बालक की प्रारंभिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालय बाबन में सम्पन्न हुई |
इस बालक ने कठिन परिश्रम कर सन् 1996 में इंटरमीडिएट राजकीय इंटर कॉलेज जालली से पूरा किया व उच्च शिक्षा मयोली गाँव की तहसील द्वाराहाट में स्थापित राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय द्वाराहाट से पूरी की |
विद्यार्थी जीवन में इस बालक को सदैव गुरुजनों का आशीर्वाद प्राप्त हुआ| प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक आ. रतन सिंह जी का भरपूर सहयोग औऱ आशीर्वाद प्राप्त कर उनके बताए मार्ग पर चलकर यह बालक समस्त बाधाओं को पार करता हुआ हमेशा आगे बढ़ा | आपका परिश्रम ही आपकी पहचान बनता चला गया |इसी बीच बहिनों के विवाह की जिम्मेदारी माताजी के साथ निभाई |
मृतक आश्रित के रूप में पिता जी जगह नौकरी के सपने बचपन से ही सबने इस बालक को दिखाए थे | जिसके चलते उच्च शिक्षा पूर्णतः प्रभावित रही। आपके चाचा श्री लीलाधर फुलारा जी का उपकार कभी भुलाया नहीं जा सकता | आपके पिताजी की मृत्यु के बाद उन्होंने ही आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और पूरी तरह से मार्गदर्शित किया। पिताजी की जगह पर नौकरी के लिए उन्होंने भरपूर भागदौड़ की पर ईश्वर की इच्छा के आगे किसकी चलती है।वर्ष 2004 में आ. हरीश पाण्डेय जी(जिन्होंने इंटर की कक्षाओं में हमेशा बालक का मार्गदर्शन किया) ने एक विद्यालय खोला और वहाँ अध्यापन का कार्य सौंपा जो पूर्णतः अवैतनिक था | केवल सीखने के उद्देश्य से बालक ने विद्यालय में भरपूर परिश्रम किया | उनका भी यह पहला अनुभव था। 3 साल तक वहाँ अध्यापन कार्य करने के बाद यह साहसी बालक बी. एड के लिए देहरादून चला गया। सन 2007 दिसम्बर में बी एड करके वापस लौटा तो 2 महीने शिशु मंदिर जालली में अध्यापन कार्य किया उसके पश्चात कंट्रीवाइड पब्लिक स्कूल गरुड़ में अध्यापन कार्य का अवसर प्राप्त हुआ। अप्रैल 2008 में गरुड़ आगमन हुआ। उसके बाद राजकीय महाविद्यालय बागेश्वर से हिंदी से पुनः एम.ए. किया। पढ़ाई के दौरान इस बालक के मन पर कबीरदास जी का बहुत प्रभाव पड़ा| जिसने सोचने का नजरिया ही बदल दिया |जितना है उसी में संतोष करना आ गया |परीक्षा के दौरान बालक की मुलाकात गुरुदेव डॉ हेम चंद्र दुबे जी से हुई धीरे-धीरे बातों का सिलसिला शुरू हुआ |जो मुलाकातों में बदलता चला गया | आ. दुबे जी के मृदुल स्वभाव एवं उनकी रचनाओं ने इस बालक को बहुत प्रभावित किया। उनसे ही रचना लिखने की प्रेरणा मिली | उन्हीं के आशीर्वाद से साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण किया। प्रसिद्ध साहित्यकार आ. मोहन जोशी जी ने भी इस क्षेत्र में बालक का मार्गदर्शन किया। इन दोनों विद्वतजनों के आशीर्वाद से ही आज साहित्य के क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए आज यह बालक ओमप्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल' नाम से युवा हिंदी साहित्यकारों का सिरमौर बनकर हिंदी साहित्य की श्रीबृद्धि कर रहा है |
सन् 2011 में आपका विवाह मंजू देवी से हुआ | सुशील पत्नी का साथ मिला तो जीवन में खुशहाली आई | घर परिवार सँभला | दाम्पत्य सुख से परिवार की बृद्धि हुई | सन् 2012 में लक्ष्मी के रूप में पुत्री प्रियांशी का जन्म हुआ और सन् 2014 में प्रियांशु पुत्ररत्न मिला | वर्ष 2014 में स्कूल पत्रिका DAWN का सम्पादन कार्य पहली बार मिला जिसे आपने सफलता पूर्वक सम्पन्न किया |
वर्ष 2019 में आ. भुवन बिष्ट जी द्वारा आपको विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत से जोड़ा गया | जहाँ कई साहित्यकारों का मार्गदर्शन मिला | आपने अपने परिश्रम व स्नेह से इस संस्था में अपनी जगह बनाई |आज विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत के आप राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष व उत्तराखंड इकाई के अध्यक्ष के रूप में अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन कुशलता पूर्वक कर रहे हैं |इस संस्था के माध्यम से आपको छंदगुरु के रूप में आ. शैलेन्द्र खरे सोम जी जैसे अनमोल रत्न प्राप्त हुए व कई अन्य साहित्य साधकों से समन्वय स्थापित कर निरन्तर आप संस्था की शक्ति बन रहे हैं | अब तक आपने हिंदी साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लिखने का काम किया | कई संस्थाओं ने आपको सम्मानित भी किया है | आपकी रचनाएँ कई साझा संकलनों में प्रकाशित हो चुकी हैं | अभी हाल में ही आपने श्रीराम जी के चरित पर आधारित एक नूतन छंदबद्ध खंडकाव्य की रचना भी की है जो शीघ्र प्रकाशित भी होगी | कई विशेषांकों का संपादन आप कर चुके हैं | एक कदम और त्रैमासिक साहित्यिक ई पत्रिका का आप संपादन विगत तीन वर्षों से लगातार करते चले आ रहे हैं | कई विद्यालयों नें, कई अधिकारियों ने व कई संस्थाओं ने आपके कार्य व परिश्रम की सराहना करते हुए आपको सम्मानित किया है |
आपके कार्य आपकी पहचान बनते जा रहे हैं | वह बालक जो अभावों में जिया, संघर्षों से खेला, पर अपने काम से व परिश्रम से कभी समझौता नहीं किया | हर जगह अपना एक अलग पहचान बनाई | अपना अलग स्थान बनाया | आज वही बालक श्री ओमप्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल' बनकर अध्यापन कार्य के द्वारा समाज की नई पीढ़ी को शिक्षित करने का काम करते हुए साहित्य साधना कर हिन्दी का नवोत्थान करते हुए समाज को जगाने का व राष्ट्र के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है और सभी के हृदय सिंहासन पर राज कर रहा है |
~दिलीप कुमार पाठक 'सरस'
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