Saturday, July 16, 2022

आपके प्रति ~~दिलीप कुमार पाठक 'सरस'प्रधान संपादकएक कदम और त्रैमासिक ई साहित्यिक पत्रिका

आपके प्रति ~

यह गौरव की बात है कि एक कदम और त्रैमासिक साहित्यिक ई पत्रिका (प्रथम अंक~बालपत्रिका) अक्टूबर 2019 में प्रकाशित होकर अनवरत विकास की ओर अग्रसर होती हुई आज हिंदी साहित्य की श्रेष्ठ ई पत्रिकाओं में अपनी अलग पहचान रखती है | इस पत्रिका के संपादक प्रिय भाई ओमप्रकाश फुलारा 'प्रफुल्ल' जी ने इस पत्रिका को स्थायित्व दिया और आप सभी साथियों ने इसे अपना प्रत्येक प्रकार से समर्पण दिया, स्नेह दिया | इस पत्रिका का नवीन जुलाई अंक आपके कर कमलों में है | आप सभी साथियों के स्नेह ने इसे सींचा है, पल्लवित किया है, पुष्पित किया | आप सभी साथियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ |
      प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से आप सभी साथी इस अनुठी पत्रिका के सहयोगी हैं, आपके किए गए प्रयासों को भुलाया नहीं जा सकता |इस अंक के माध्यम से आप सभी स्नेहिल साथियों का हार्दिक अभिनंदन करता हूँ | 
     इस अंक में विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत के त्रैमासिक कार्यों का संक्षिप्त विवरण मिलेगा जो कि संस्था उपाध्यक्ष आ. डॉ. राहुल शुक्ल साहिल जी द्वारा लिखा जाता है, आपको पढ़ने को मिलेगा | मुख्य पृष्ठ का आकर्षण आपको लुभाएगा, जो आ. संपादक महोदय की साज सज्जा, क्रमबद्धता के द्योतक हैं | आप सभी स्नेहिल साथियों के प्यार भरे शुभकामना संदेश निश्चित रूप से इस पत्रिका को विशेष बनाने का काम कर रहे हैं | नाम में क्या रखा है, काम स्वयं बोलते हैं | जब काम बोलते हैं तो नाम स्वयं गूँजता है |समस्त जिला इकाई, समस्त प्रांत इकाई, राष्ट्रीय इकाई के पदाधिकारी व प्रशासक मंडल के पदाधिकारी,समस्त पत्रिका पदाधिकारियों के साथ इस पत्रिका से जुड़े सभी पाठक व सभी रचनाकार साथियों को इस अंक के प्रकाशन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ |
    श्रावण के पावन मास में, प्रकृति के क्रीड़ांगण की भावभूमि पर क्रीड़ा करती रचनाकारों की कलमतूलिका एक नवीनतम् सृष्टि-चित्र का निर्माण करने में संलग्न है | यह चित्र आनंद का केन्द्र बनकर हर दृष्टि को प्रेरणा प्रदान करेगा ऐसा मेरा विश्वास है |
      भगवान भोलेनाथ की महिमा का गान, हर-हर बम-बम करती काँवरियों की टोलियों का जयगान, रिमझिम-रिमझिम सावन की फुहारों के बीच प्रस्फुटित होते आनंद की किलकारियाँ | सावन में मेघों की धोखेबाजी, मिलन की उत्कंठा, पौधारोपण के बाद उनका जलाभिलाषी होना स्वाभाविक है |
  स्वाभाविकता के धरातल पर सभी साथियों की ओर से इतना ही कहना चाहूँगा हे प्रिय मेघ! 
       अबकी बार बरस जाओ |
       मैंने पौध लगाई है |
        प्यासी है मुरझाई है ||
        दुबली हो अकुलाई है |
        सावन की ऋतु आई है ||
        कर उपकार बरस जाओ |
         अबकी बार बरस जाओ ||
      नवरसकलश की छलकन का आनंद आपको समर्पित करते हुए गौरवान्वित हूँ | पुनश्च हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ | आपका सहयोग व स्नेह सदैव मिलता रहेगा | कुछ नया करने की आप सभी साथी नित प्रेरणा देते रहेंगे | मुझे पूर्ण विश्वास है |
बधाई! 

~दिलीप कुमार पाठक 'सरस'
प्रधान संपादक
एक कदम और त्रैमासिक ई साहित्यिक पत्रिका

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