[29/05, 11:01 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆मुक्तक◆
(1)
बहर- 1222 1222 1222 1222
वफ़ा की आड़ में धोखा यकीनन पल रहा कोई।
हवाओं की तपिश कहती कहीं दिल जल रहा कोई।
मुहब्बत में हुए घायल न जाने ज़ख्म हैं कितने।
उन्हीं जख्मों पे फिर मरहम दीवाना मल रहा कोई।
(2)
बहर- 212 212 212 212
दर्द की रात है ख़्वाब टूटे सभी।
दूर इतना हुए साथ छूटे सभी।
क्या करूँ जिंदगी राह मुझको दिखा।
दोस्त किसको कहूँ आज लूटे सभी।
(3)
बहर- 2122 1212 22
क़त्ल का वो लिए इरादा थे।
साथ जीने का करते वादा थे।
दूर से दिल पे वार करना था।
पास आये वो क्यूँ ज़ियादा थे।
(4)
बहर- 2122 2122 2122 212
दाग़ दिल के साफ़ करने कौन आएगा भला।
बेवफ़ा तुझे माफ़ करने कौन आएगा भला।
फ़ैसले की है घड़ी नज़रें उठाकर देख ले।
अब तेरा इंसाफ़ करने कौन आएगा भला।
(5)
बहर - 122 122 122 122
तुम्हारे लिए जब कहो जान दूँगा।
तुम्हें प्यार की एक पहचान दूँगा।
भले प्यार मेरा समझ न सको तुम।
मग़र मैं तुम्हें मान सम्मान दूँगा।।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
29/05/2019
[29/05, 9:12 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: *दोहे*
मंदिर मे मत खोजिए,घर में हैं भगवान।
जीवनदाता आपके,मात-पिता पहचान ||
मूर्ति बनाओ राम की,और विराजो गेह।
जीवन पथ में आपके,बरसे उन्नति मेह।।
पूजा जप-तप साधना,यही मोक्ष के द्वार।
हरि सुमिरन नित कीजिये,होगा मनु उद्धार।।
करो राष्ट्र की वंदना,भारत देश महान।
एक तिरंगा है बना,हम सबका अभिमान।।
मन्नत ऐसी माँगिये,जिसमें सर्व सुखाय।
ईश्वर भी पूरी करे,देख ध्येय मन भाय।।
श्रद्धा से विश्वास की,बँधी हुई है डोर।
कर्म मनुज ऐसे करो,फैले यश चहुँ ओर।।
मन में आस्था राखिये,प्रभु का करिये ध्यान।
सकल कष्ट मनु आपके,दूर करें भगवान।।
बन बैठे भगवान हैं,कुछ अधमी इंसान।
अंत समय सब छूटता,जब हो देहवसान।।
मन में हो विश्वास तो,मिले मनुज आकाश।
बाँध सके नहि लक्ष्य को,जग में कोई पाश।।
कर लीजै अब आरती,पूर्ण हुआ यह यज्ञ।
क्षमा माँग लीजै सभी,प्रभु तो हैं सर्वज्ञ।।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी
9826278837
29मई2019
[30/05, 9:15 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆सार छन्द◆
अंतर्मन में दीप जलाकर,ज्ञान चक्षु निज खोलो।
कर सत्संग ज्ञानियों का मनु,कलुष हृदय का धो लो।।
कभी हृदय आघात हुआ तो,जग की पीड़ा तोलो।
मृदु वाणी सम्मोहन वाली,हँसकर सबसे बोलो।।
आशीष पाण्डेय जिद्दी।
9826278837
30मई2019
[30/05, 6:12 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆मुक्तक◆
मुहब्बत का नया अंदाज़ बनकर मुस्कुराती हो।
न जाने बिजलियाँ कितनी कुँवारों पर गिराती हो।
कहीं उठता धुआँ दिल से कहीं चिंगारियाँ निकलें।
अदा-ए-हुश्न से अपने सभी का दिल जलाती हो।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
30/05/2019
[01/06, 9:43 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆ताटंक छंद◆
जन्म लिया है जिस धरती पर,उसका कर्ज चुकाऊंगा।
कहीं रहूँ मैं गाँव देश की,महिमा वहीं सुनाऊँगा।
गाँव हमारे कितने प्यारे,सुंदर खेत निराले हैं।
हरियाली चहुँ ओर फैलती,ताल तलैया नाले हैं।
पोखर नदियाँ झरने सबको,मीठा जल भरने देते।
बाग बगीचे सैर सपाटे,खेल कूद करने देते।।
बड़े बुजुर्गों सँग पीपल भी,छाँव सुहानी देता है।
संस्कार हम सबको उज्ज्वल,प्रेम निशानी देता है।।
भाई-भाई मिलकर रहते,बैरी नहीं पड़ोसी हो।
विपदा में सब साथ खड़ें हों,नहीं अकेला दोषी हो।।
प्रेम कहीं ऐसा नहिं मिलता,जो है गाँव घरानों में।
कोयल गाती पंछी चहकें,अपने नए तरानों में।।
अन्न उगाकर पेट पालते,जो अपने परिवारों का।
सीधे-सादे लोग न जानें,रिश्तों में व्यापारों का।।
भाईचारे में जिंदा हैं,दिल के सच्चे होते हैं।
गाँव घरों में मिलने वाले,अच्छे बच्चे होते हैं।।
सरसो फूली पीली धरती,रौनक है खलिहानों में।
नाचें झूमें बाग बगीचे,सावन फागुन गानों में।।
संस्कार पहनावे भाषा,ग्रामीणों का सोना है।
शहर बसे जो गाँव छोड़कर,संस्कृति उनको खोना है।।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी
9826278837
01मार्च2018
[01/06, 12:01 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆मुक्तक◆
एक तिरंगे खातिर कितने,प्राणों की बलिहारी है।
भारत की यह पुण्य भूमि तो,खुशियों की फुलवारी है।
सबके मन से द्वेष मिटायें,जाति धर्म का भेद न हो।
राष्ट्र एकता कायम रखना,नैतिक जिम्मेदारी है।
◆लावणी छन्द◆
आपस में हो भाईचारा,साथ बैठ सुख- दुख बाँटो।
जीवन रूपी वृक्ष मिला है,बढ़ें शूल तो नित छाँटो।
हम सबकी यह जिम्मेदारी,नहीं एकता खण्डित हो।
भेदभाव की बात नहीं फिर,शूद्र वैश्य या पण्डित हो।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
01जून2019
[01/06, 9:58 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: *दोहे*
मोह दर्प माया जिसे,बाँधे अपने पाश।
निश्चय ही उसका हुआ,मूल समेत विनाश।।
रोक सके जलधार को,नहिं कोई अवरोध।
टूटे शैल शिला सभी,करते हुए विरोध।।
शौर्य पताका हिन्द की,अंबर में लहराय।
जन गण मन का गान जब,चारों ओर सुनाय।।
अस्त्र शस्त्र सब त्याग दो,बोलो मीठे बोल।
प्रेम जीत लेता समर,यह सबसे अनमोल।।
गाथा श्री राम की,त्रेता के भगवान।
तार अहिल्या नार को,भेज दिया निज धाम।।
लक्ष्मण ने जो खींच दी,उस सीमा के पार।
सीता माता जब गयीं,पाया कष्ट अपार।।
आप सुरक्षा कीजिए,वृक्ष प्रकृति वरदान।
जीवन का पर्याय हैं,जंगल देव समान।।
द्रोही रावण ने कहा,दिया अनुज को त्याग।
गया विभीषण प्रभु शरण,पाया भक्ति पराग।।
गीता के उपदेश में,दिया पार्थ को ज्ञान।
निज स्वरूप के दर्श से,कृष्ण कराते भान।।
नमन करूँ माता-पिता,गुरु करिये स्वीकार।
भिक्षुक बन आया यहाँ,कर दीजै उद्धार।।
पूर्ण नहीं ज्ञानी यहाँ,सब दोषों से युक्त।
जिद्दी इस संसार में,कौन दोष से मुक्त।।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी
9826278837
1जून2019
[03/06, 1:43 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆दोहे◆
पर्यावरण बचाइए,वृक्ष लगाकर मित्र।
नित्य प्रदूषण बढ़ रहा,मिटता जीवन चित्र।।
गर्म हुई जलवायु है,स्वेद बहे दिन- रात।
सूखे सर सरिता सभी,दिखते नहीं प्रपात।।
गर्म हवाएँ ला रहीं,सुन मानव संदेश।
बदल गया जब तू स्वयं,बदल गया परिवेश।।
स्वार्थ सिद्ध करने लगे,नित मानव तरु काट।
धरती बंजर हो गयी,जंगल हुए सपाट।।
मानवता में आ गया,जबसे यह तूफान।
घर-घर बनते जा रहे,कैसे रेगिस्तान।।
प्यासे पंछी मर गए,कहीं मिले नहिं नीर।
आग लगाता भानु है,जलने लगा समीर।।
जीव जंतु मानव सभी,करते हाहाकार।
गर्मी भीषण पड़ रही,क्या है अब उपचार।।
जिद्दी
9826278837
3जून2019
💐💐💐🌹💐🌹
[06/06, 8:20 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: *दोहे*
प्राणवायु प्रति श्वास से,तन में करे प्रवेश।
जीवन का आधार है,सबको दो संदेश।।
गर्म हुई जलवायु तो,जलने लगा शरीर।
जीव जंतु सब हो गए,तृष्णा लिए अधीर।।
भीषण गर्मी से जले,सकल चराचर जीव।
बिगड़ गया है संतुलन,बढ़ता ताप अतीव।।
तीव्र धूप होने लगी,बढ़ा सूर्य का ताप।
धरती व्याकुल हो गई,करने लगी विलाप।।
शीतल हो जलवायु तो,सब पाते आराम।
वृक्ष लगाओ मिल सभी,अति उत्तम ये काम।।
छाया सबको चाहिए,पौध न रोपे कोय।
जो नर तरु को काटता,बाद बैठकर रोय।।
पौधा एक लगाइए,चौमासे में आप।
यही क्रिया प्रतिवर्ष हो,मिटे धरा संताप।।
प्यासे फिरते जीव सब,ढूँढ़ रहे हैं नीर।
दिखें जलाशय जल बिना,होता हृदय अधीर।।
तपता रेगिस्तान सम,मनुज हृदय अब देख।
नष्ट हुआ पर्यावरण,यह सब तेरा लेख।।
रचे दिव्य दोहे सभी,दिया दिव्य ने दर्श।
हर्षित उर मेरा हुआ,मिला स्नेह का स्पर्श।।
वृक्षारोपण कीजिए,धरती का श्रृंगार।
हरी भरी वसुधा सदा,दे लाखों उपहार।।
*आशीष पाण्डेय ज़िद्दी*
*9826278837*
*05जून2019*
[07/06, 8:50 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆राधेश्यामी छंद/मत्त सवैया छंद◆
नैनों से नीर बहा जितना,उतना तुझको सुख सार मिले।
खुशियों से महँक उठे जीवन,तुझको अपनों का प्यार मिले।
पूरी हों तेरी आशाएँ,हर सपना हो साकार मिले।
तुझको जीवन में हर मंजिल,तक जाने का अधिकार मिले।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी
9826278837
19अप्रैल2018
[07/06, 12:05 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: जी भर कर देखते हैं,चाँद की शीतल रोशनी को,
भरता नही जिया क्या करें,चूमते हैं शबनम की नमी को,
आती है खुशबू सो जाते हैं हम,मानकर आँचल माँ का जमी को,
कितनी मनभावन छँटा है
प्रकृति में,पूरी कर देती है दिल की हर कमी को,
अपनी तन्हाइयों को दिल से
हटाकर देखो,मिल जाएगा सुकून- ए- दिल हर आदमी को,
---------आशीष पान्डेय जिद्दी-------
[07/06, 3:58 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: ★★★★★समीक्षार्थ★★★★★
सतरंगी रंगों से रंगा,
जीवन का यह चित्र सरल।
मौन अधर कुछ कहते कैसे,
अंतर्मन में भरा गरल।।
कोई आकर अमिय पिला दे,
और खिला दे हृदय कमल।
सारी पीड़ा दूर करे अब,
आँखें कबसे भरीं सजल।।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
7जून2019
[07/06, 5:07 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆एक कविता समर्पण के नाम◆
अपना सारा जीवन जो अपनों पर अर्पित करती है।
वह तो केवल नारी है जो सर्व समर्पित करती है।।
बच्चों पर जो प्रेम लुटाए ममता की परिभाषा हो।
स्वर्ग बनाये अपने घर को जो हर मन की आशा हो।।
नारी में धीरज धरती सा उसमें नहीं निराशा हो।
सुख-दुख में जो साथ निभाए पत्नी प्रेम पिपासा हो।।
सास-ससुर का आदर करती अपना जनक समझती हो।
देवर को भाई जो माने बहन ननद को कहती हो।।
हर बंधन को प्रेम समझकर अपना फर्ज निभाती है।
दुखी कहीं पति ना हो जाये पत्नी दर्द छुपाती है।।
चेहरे पर मुस्कान बिखेरे सबको गले लगाती है।
अपनी इच्छाओं को अक्सर नारी नहीं बताती है।।
घर से बाहर जब वो निकले धरती की हरियाली हो।
धानी चूनर ओढ़े नारी प्रेम समर्पण वाली हो।।
कंधे से कंधा जब जोड़े अम्बर वो छू लेती है।
बेटों से कम नहीं मानना एक नगीना बेटी है।।
बेटी जब से होश सँभाले भार उठाकर चलती है।
उसको कोई दर्द हुआ तो छुपकर आँखें मलती है।।
घर का सारा काम करे वो फिर विद्यालय जाती है।
थकी हुई जब वापस आये माँ का हाँथ बटाती है।।
जीवन का हर क्षण एक रण हो नारी बनी विजेता हो।
त्याग समर्पण और प्रेम की केवल यही प्रणेता हो।।
नारी का सम्मान करे जो स्वर्ग उसे मिल जाता है।
माँ के चरणों में जन्नत का सुख वो मानव पाता है।।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
07अक्टूबर2018
[07/06, 5:45 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆मुक्तक◆
कल्पना के ख़ूबसूरत अब महल बनने लगे।
साज धड़कन में समाए गीत मृदु बजने लगे।
उड़ रही आकाश में स्वप्निल घटा अब छा रही।
उठ रहीं दिल में उमंगें पाँव खुद बढ़ने लगे।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
07जून2019
[08/06, 9:22 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: देश में वर्तमान निंदनीय स्थिति मासूमों की हत्या बलात्कर जैसे संगीन अपराधों पर हृदयतल से निकली पीड़ा और रोष।
◆कुकुभ छन्द◆
सरेआम जूतों की माला,चौराहों पर पहनाओ।
खींच निकालो कपड़े सारे,फिर कोड़े से पिटवाओ।।
अंग-अंग में गर्म सलाखें,दागो जी भर तड़पाओ।
सभी भेड़ियों को चुन-चुन कर,अब फाँसी पर लटकाओ।।
◆मुक्तक◆
जो मासूमों को मारे हैं जिंदा उन्हें जलाना है।
बहू बेटियों की इज़्ज़त को मिलकर हमें बचाना है।
जो निर्भय हो घूम रहे हैं खोजो सभी दरिंदों को।
मौन प्रशासन खड़ा रहा तो सबको शस्त्र उठाना है।
◆मुक्तक◆
बहू बेटियाँ सहमी रहतीं,डरकर कदम बढ़ाए हैं।
घूम रहे हैं यहाँ दरिंदे,रहते घात लगाए हैं।
गली मोहल्ले चौक ताकते,खूनी पंजे फैलाये।
लूट रहे नित मासूमों को,बहशीपन अपनाए हैं।
◆मुक्तक◆
अगर मिले अपराधी कोई,जो अबोध का कातिल है।
यही सोच रखना है सबको नहीं क्षमा के काबिल है।
नहीं कभी अपराध भीड़ पर कोई सजा नहीं होती।
जिंदा उसे जला दो मिलकर तब मानो कुछ हाशिल है।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
08जून2019
[09/06, 2:12 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆मुक्तक◆
1222 1222 1222 1222
पिटारे से निकलकर घूमते डसते हैं जीवन को।
अबोधों को नहीं छोड़ें दरिंदे नोचते तन को।
भरी है वासना बनकर ज़हर फुफकार में इनकी।
कुचल दो आज पैरों से विषैले साँप के फन को।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी
9826278837
09जून2019
[09/06, 9:32 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆मुक्तक◆
नाबालिक असहाय अबोधों,के ज़ालिम हत्यारों को।
सरेआम सर कलम करो अब,नहीं सहो व्यभिचारों को।
कानूनी हथकंडे छोड़ो,न्याय स्वयं ही कर डालो।
सजा मौत की सबके सम्मुख,दीजै सबक हजारों को।
जहरीले साँपों के तोड़ो,सारे दंत जरूरी है।
मानव पशुता अपनाए जब,उसका अंत जरूरी है।
गला काटकर भेंट चढ़ा दे,मंदिर वाली काली को।
न्यायाधीश रूप अपनाए,अब हर संत जरूरी है।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
08जून2019
[10/06, 7:56 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆गीतिका◆
मापनी-- 2122 2122 212
भोर में उठिए गगन को देखिए।
मौसमी शीतल पवन को देखिए।।
उड़ चले अपना बसेरा छोड़कर।
पंछियों की इस लगन को देखिए।।
चूमने धरती की हरियाली बढ़ें।
रश्मियाँ उतरीं वतन को देखिए।।
सूखने पाए नहीं पौधा कोई।
सींचता माली चमन को देखिए।।
गाँव की आभा सुनहरी लग रही।
शांति फैली है अमन को देखिए।।
ओस की बूँदें लगें मोती जहाँ।
नम करें मिट्टी छुअन को देखिए।।
स्वर्ग का सुख आपको मिल जाएगा।
आइये जब गाँव मन को देखिए।।।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
14अक्टूबर2018
[10/06, 7:56 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆गीतिका◆
मापनी-- 2122 2122 212
~~~~~~~~~~~~~~~~~
बेटियों का गान होना चाहिए।।
बाप का अरमान होना चाहिए।।
देश में परदेश में घर में सदा।
प्यार से सम्मान होना चाहिए।।
प्यार बेटों से नहीं कम हो कभी।
बेटी की पहचान होना चाहिए।।
भावना मन में मनुज ऐसी बना।
बेटियों का मान होना चाहिए।।
बेटियाँ कम हैं नहीं मत भूलना।
इनपे भी अभिमान होना चाहिए।।
चाँद भी छूने लगीं हैं बेटियाँ।
इनका भी उत्थान होना चाहिए।।
बेटियाँ जन्में जहाँ घर धन्य हो।
बाप को यह ज्ञान होना चाहिए।।
जन्म पर अंकुश लगाना छोड़ दे।
हे मनुज ईमान होना चाहिए।।
बेटियाँ वरदान हैं भगवान का।
हर किसी को भान होना चाहिए।।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
14/10/2018
[11/06, 10:46 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: सादर समीक्षार्थ
◆गज़ल◆
बहर~ 212 212 212 212
काफ़िया- अर, रदीफ़-चाहिए।
~~~~~~~~~~~~~~~
प्यार में जान दे वो ज़िगर चाहिए।
इश्क़ में जो झुके न नज़र चाहिए।।
होश खोने लगे देख ले इक नज़र।
प्यार की उस नज़र में असर चाहिए।।
साथ छोड़े नहीं उम्र भर आपका।
यार ऐसा कोई हमसफ़र चाहिए।।
फूल जिस राह पर इश्क़ में हों बिछे।
ढूँढ़ कर लाइए वो डगर चाहिए।।
प्यार ऐसे करो नाम हो आपका।
बाकी रहनी न कोई क़सर चाहिए।।
इश्क़ नेमत समझिए खुदा की मिली।
ये सलामत रहे वो हुनर चाहिए।।
आज मुश्किल वफ़ा खोजना हो गया।
मिल गई हो जिसे तो क़दर चाहिए।।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
11जून2019
[13/06, 9:42 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: कृष्णमय हो सृजन,कृष्णमय साधना।
कृष्णमय धर्म की,नित्य आराधना।
कृष्णमय कर्म हो,कृष्णमय भक्ति हो,
कृष्णमय डोर ही,प्रेम की बांधना।
आशीष पांडेय ज़िद्दी।
९८२६२७८८३७
१३जून२०१९
[18/06, 7:02 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: जन्म लिया है इस धरती पे,इसका कर्ज चुकाना है।
मातृभूमि के चरणों में ये, हमको शीश झुकाना है।
बना कुंज ये देश हमारा, अगणित पुष्प सजाए हैं।
इसकी खातिर माताओं ने, कितने लाल गवाएं हैं।
आशीष पाण्डेय जिद्दी
18-6-2016---9826278837
[20/06, 9:22 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: यह अषाढ़ का माह ले,आया हर्ष अपार।
जीवों की तृष्णा मिटे,बारिश के आसार।
अम्बर में दिखने लगे,काले - काले मेघ।
शीतल हो वसुधा मिले,बूंदों का उपहार।
आशीष पांडेय ज़िद्दी।
९८२६२७८८३७
२०जून२०१९
[21/06, 8:21 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆आल्हा छंद◆
विश्व योग दिवस पर।
योग भूमि भारत कहलाए,ऋषि मुनियों का है ये देश।
श्वेत वस्त्र पीताम्बर धारे,योग तपस्या का गणवेश।
दीर्घायु रहें सब जनमानस,योग करो इनका सन्देश।
स्वस्थ रहे तन-मन भी इससे,मिटे रोग बाधा सब क्लेश।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9827239737
21जून2018
[22/06, 10:51 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: मेरी मासूम सी चाहत, हुई है आज फिर घायल।
बजी गैरों के घर जब ये, मेरी बांधी हुई पायल।
तेरी डोली जनाजा बन गई, मेरे दिल के अरमां की।
मेरे दिल को भुलाकर गैर की, जो तू हुई कायल।
जिद्दी
21-6-2016--9826278837
जमाने को नहीं देखा, तेरी आँखों में खोया हूँ।
सनम तू जानती है क्या, तेरी यादों मे रोया हूँ।
मिले दर्द-ए-जुदाई में मुझे, जो घाव इस दिल में।
बना अश्कों का मै मरहम, ये अपने जख्म धोया हूँ।
आशीष पाण्डेय जिद्दी
21-6-2017-9826278837
भरोसा कर नहीं पाई, मुझे जाना नहीं तूने।
मुहब्बत कह रही जिसको,उसे माना नहीं तूने।
सनम चुभती हैं मेरे दिल में, तेरी आज की बातें।
मुझे अपना कहा लेकिन,कभी माना नहीं तूने।
जिद्दी
21-6-2016--9926278837
मेरी चाहत लगे तुझको,
दिखावा क्यूँ सनम बोलो।
बता क्या है कमी दिल से,
निभाई न कसम बोलो।
अगर मर जाऊंगा मै तो,
यकीन मेरे प्यार पर करना।
मुहब्बत की निभाई है नहीं,
मैने क्या रशम बोलो।
। जिद्दी।
दिनांक ---21-6-2016-9826278837
[22/06, 7:12 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: मित्र ने मित्रता जब निभाई नहीं।
साथ छोड़ा तनिक शर्म आई नहीं।
क्या करें हम अकेले बिलखते रहे।
राह कोई किसी ने बताई नहीं।
आशीष पांडेय जिद्दी
९८२६२७८८३७
२२जून२०१९
[23/06, 8:01 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: नीले - नीले नयन नशीले,दिल मेरा घायल करते।
होठ शबनमी मय के प्याले,मुझको ये पागल करते।
गाल गुलाबी गोरा तन ये,कातिल है मुस्कान बड़ी।
अंतर्मन से भींग रहा मैं,बारिश ये बादल करते।
आशीष पांडेय ज़िद्दी।
९८२६२७८८३७
२३जून२०१९
[23/06, 2:10 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: फूलों से भी नाजुक होती,बेटी को पहचानो।
बेटों से कम नहीं कभी तुम,निज बेटी को मानो।
बेटी पढ़कर आगे आए,छू ले चंदा तारे।
नाम करे ये रौशन जग में,फिर क्यूं इसको मारे।
ज़िद्दी
9826278837
23/06/2019
[23/06, 7:18 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: ताटंक छंद
यह अषाढ़ का मास सुहाना,प्यास बुझाने आया है।
देखो ये मतवाला बादल, काला-काला छाया है।।
बूंदें मोती बनकर गिरती,धरती अंक छुपाती है।
यहां किसानों के खेतों में,हरियाली खिल जाती है।।
आशीष पांडेय ज़िद्दी।
२३जून२०१९
९८२६२७८८३७
[23/06, 10:34 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: |दोहे|
ज्ञानी का यदि संग हो,मूढ़ बने विद्वान।
जग में उसका नाम हो,जीवन हो आसान।।
मनु इतना मत कीजिए,अपना हृदय कठोर।
कोमलता अपनाइए,रहिए भाव विभोर।।
शिथिल हुए सब लोग हैं, करे कौन उपचार।
दूषित है पर्यावरण,संकट में संसार।।
निर्भर अपने कर्म पर,रहते हैं जो लोग।
सदा स्वस्थ खुशहाल हों,होता नहीं वियोग।।
क्षिति जल पावक ये गगन,इनके साथ समीर।
अंग प्रकृति के हैं सभी,इनसे बने शरीर।।
तरु विहीन लगती धरा,जैसे सूनी माग।
आंचल में जलने लगी,पीड़ादायक आग।।
धन संचय मत कीजिए,कर दीजै सब दान।
सब कुछ छूटेगा यहीं,जानो सत्य सुजान।।
ऐसी संगत कीजिए,जिससे हो उद्धार।
ज्ञान बढ़े उत्साह भी,जीवन हो साकार।।
स्मृति निज कभी न खोइए,इतना रखिए ध्यान।
कर्ज फर्ज उपकार का,सदा कीजिए भान।।
रचना लेकर आ गए,कितने रचनाकार।
यह साहित्यिक मंच तो,लगता है भंडार।।
आशीष पांडेय ज़िद्दी
९८२६२७८८३७
२३जून२०१९
[24/06, 2:24 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: गीतिका◆
मापनी-- 2122 2122 212
~~~~~~~~~~~~~~~~~
बेटियों का गान होना चाहिए।।
बाप का अरमान होना चाहिए।।
देश में परदेश में घर में सदा।
प्यार से सम्मान होना चाहिए।।
प्यार बेटों से नहीं कम हो कभी।
बेटी की पहचान होना चाहिए।।
भावना मन में मनुज ऐसी बना।
बेटियों का मान होना चाहिए।।
बेटियाँ कम हैं नहीं मत भूलना।
इनपे भी अभिमान होना चाहिए।।
चाँद भी छूने लगीं हैं बेटियाँ।
इनका भी उत्थान होना चाहिए।।
बेटियाँ जन्में जहाँ घर धन्य हो।
बाप को यह ज्ञान होना चाहिए।।
जन्म पर अंकुश लगाना छोड़ दे।
हे मनुज ईमान होना चाहिए।।
बेटियाँ वरदान हैं भगवान का।
हर किसी को भान होना चाहिए।।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
14/10/2018
[27/06, 4:46 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: ताटंक छंद
16,14 पर यति
अंत में 222 (तीन गुरु)
दो -दो पंक्ति समतुकान्त
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
आज हमारी माताओं का,शीश गर्व से ऊँचा है।
एक हुए सब भाई-भाई,निर्भय हिन्द समूचा है।
हिन्द की धरती पावन इतनी,जितनी गंगा धारा है।
एक तिरंगा अम्बर में है,लहराता वो प्यारा है।
खून बहा सरहद पर इतना,कितनी कोखें रोई हैं।
कितनी बहनों ने सीमा पर,अपनी राखी खोई हैं।
माथे का टीका भी धोया,हिना हाथ की धोई हैं।
नई-नवेली दुल्हन ने भी,अपनी खुशियाँ खोई हैं।
हम बैठे हैं आज घरों में,सैनिक सरहद जाते हैं।
बम गिरते हैं गोली चलती,सीने पर वो खाते हैं।
उनके घर में मातम छाया,अपने घर दीवाली है।
भारत माता की ये झोली,वीरों से नहिं खाली है।
जय हिन्द जय भारत
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी
24/03/2017
[27/06, 5:20 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: *कलाधर छंद पर एक प्रयास*
विधान~~~~[21×8,21×7+2 मात्राविन्यास में।क्रमशः 16,15 वर्णों पर यति प्रति चरण समतुकांत।]
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
एकता बनी रहे सदैव हिन्द देश शान,तेज हो अखंड देश भावना जगाइये।
हों जवान जो शहीद वंदनीय पूजनीय,जन्म लेंय शूरवीर देव को मनाइये।
गोलियाँ चलीं न चीर वक्ष हिन्द पाँय आज,तान छातियाँ खड़े सपूत देख आइये।
जन्मभूमि को सदैव जन्मदायिनी समान,मान देश धर्म हेतु शीश तो कटाइए।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
29मार्च2018
[29/06, 10:10 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: अभिसारित कंचन काया है,अधर गुलाबी काले नैन।
प्रिये तुम्हारा बदन लचीला,देख हृदय को मिलता चैन।
नागिन जैसी लट ये काली,मुझे मारती कितने दंस।
तड़प - तड़प कर दिन ये गुजरें,आंखों में कटती है रैन।
आशीष पांडेय जिद्दी।
९८२६२७८८३७
२९जून२०१९
[29/06, 5:39 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: बड़ी पावन लगे मुझको मेरे इस देश की माटी
सदा महकाती सोंधी सी मेरे मन को है ये माटी
मुझे पाला संभाला है मेरे बहके कदम जब भी
मेरे जीवन में जननी से नही कम है मेरी माटी
मै बचपन में भी खाया था अभी खाता हूँ ये माटी
लगे चंदन सी लिपटी ये बदन पर है मेरे माटी
मुझे वो याद आये है सुहाना सा मेरा बचपन
छुपाओ आज आँचल में सुनो मुझको मेरी माटी
तेरा एहसान कैसे मैं चुकाऊंगा मेरी माटी
करूंगा कर्म कुछ ऐसा मेरे इस देश की माटी
तेरी ही गोद में जन्मा तेरी ही गोद में सोऊं
मुझे तू कोख में अपनी छुपा फिर से मेरी माटी
आशीष पान्डेय जिद्दी
13-2-2016 ---9826278837
[02/07, 5:56 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: °दोहे°
बारिश की बूंदे पड़ीं,बुझी धरा की प्यास।
मिट्टी से आने लगी,चन्दन जैसी बास।।
नदियां पोखर भर गए,ताल तलैया कूप।
हरियाली फैली धरा,लगती दुल्हन रूप।।
अमियां पकती बाग में,कोयल छेंड़े तान।
हलधर ले हल चल पड़े,गाएं मधुरिम गान।।
हर्षित होकर नाचता,वन में प्यारा मोर।
देख प्रकृति की यह छटा,मनु हों भाव विभोर।।
आशीष पांडेय ज़िद्दी
9826278837
03/07/2019
[02/07, 10:27 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: वृद्धावस्था में करें,मात पिता को भिन्न।
हों ऐसी संतान से,सदा देव भी खिन्न।।
पाल-पोष जिनको बड़ा,मात-पिता ने कीन्ह।
कष्ट बुढ़ापे में उन्हीं,संतानों ने दीन्ह।।
बचपन में उँगली पकड़,चलना जिनसे सीख।
उनसे ही संतान अब,कहें माँगिये भीख।।
पत्नि मोह में त्यागकर,किये दूर माँ - बाप।
ऐसी संतानें नहीं,कभी मुक्त हों पाप।।
वृद्धाश्रम में छोड़कर,मात-पिता जो आँय।
ऐसी संताने सुनो,पापी ही कहलांय।।
आशीष पाण्डेय जिद्दी।
9826278837
2फरवरी2019
[03/07, 8:17 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆अंतर्मन◆
16,14मात्राओं पर आधारित मुक्तक।
30 मात्राएँ प्रति पंक्ति।
★★★★★★★★★★★★★★★
अपने अंतर्मन में झाँको,क्या खोया क्या पाया है।
कर्म किये हैं तुमने कैसे,कैसा पेड़ लगाया है।
भावों की सुंदर बगिया में,शूल नहीं उगने देना।
सबने तिनका चुनकर अपना,प्यारा नीड़ सजाया है।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
3जुलाई2018
[03/07, 8:17 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: *पपीहा*
16,14 मापनी आधारित मुक्तक।
एक पपीहा टेर लगाए,बुलबुल राग सुनाती है।
वर्षा ऋतु की ये हरियाली,मन का चैन चुराती है।
सावन में झूले पड़ते हैं,कोयल बोले बागों में।
साजन से मिलने को गोरी,गीत विरह के गाती है।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
२८जून२०१८
[04/07, 4:01 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆वातावरण◆
अपने चारों ओर दिखे जो,सहमा हुआ कहीं रोये।
साफ-शुद्ध जो बचा नहीं अब,अपने परिचय को खोये।।
जहाँ वात का रहे आवरण,शुद्ध पेयजल मिलता हो।
मिट्टी जहाँ सुगन्धित रहती,कमल पंक में खिलता हो।।
भाव जहाँ भाईचारे का ,सबके मन में बसता हो।
जहाँ बैर का नाम नहीं मन,केवल प्रेम पनपता हो।।
प्रकृति जहां मन आनंदित हो,भेदभाव नहिं होता हो।
जहाँ धर्म की रक्षा खातिर,मानव तन को खोता हो।।
नारी का सम्मान जहाँ पर,नर से ज्यादा हो जाए।
मानव अपने कलुषित मन को,गंगा जल से धो जाए।।
जहाँ पंछियों का कलरव हो,और एकता नारा हो।
ऐसा सुंदर सुखद एक दिन,वातावरण हमारा हो।।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
19अक्टूबर2018
[08/07, 9:22 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: दोहे
मोदी जी अब देखिए,मचा हुआ हड़कंप।
धरती दहली पाप से,आया है भूकम्प।।
करता देश विकास है,बन्द नेत्र हैं अंध।
भ्रष्ट हुआ है आदमी,करता गोरखधंध।।
नारी की इज्ज़त लुटे,देखो बीच बजार।
हवस भरे शैतान हैं,बच्ची बनें शिकार।।
जन-जन की आवाज है,करता देश पुकार।
नारी की पीड़ा सुनो,नमो-नमो सरकार।।
बलात्कार की हो सजा,त्वरित मृत्यु आदेश।
बढ़े पाप अब देखिए,रोए सारा देश।।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
8/07/2018
[09/07, 12:11 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: बरसा बादल जोर से, मिटी धरा की प्यास।
आया है किस ओर से, लेकर प्यारी आस।
चमके चपला नभ कहे, धरती सुन ले गीत।
बादल गरजन कर रहे, जल ही तेरा मीत।
अंबर से जल गिर रहा, नाच रहा है मोर।
दादुर बोले अब यहां, गूंज रहा है शोर।
सावन में व्याकुल भई, सजनी विरह सुनाय।
साजन आकर अब मुझे, झूला दियो झुलाय।
आशीष पाण्डेय जिद्दी
दिनांक ---08-7-2016--9826278837
[10/07, 7:32 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆मनहरण घनाक्षरी◆
☆★★★★★★★★☆
चलो विद्यालय चलें,
गुरु की शरण पलें,
यह विद्या ज्ञान हमें,
धर्म से मिलाएगा।
अभी गुल खिला नहीं,
गुरु हमें मिला नहीं,
ज्ञान का प्रकाश नित्य,
फूल भी खिलाएगा।
ज्ञान देंय गुरुजन,
करें इनका पूजन,
इनका आशीष हमें,
मार्ग दिखलायेगा।
पाप कर्म से बचाय,
पाठ धर्म का पढ़ाय,
ज्योति ज्ञान की जलाय,
वेद बतलायेगा।।
••••••आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
09जुलाई2018
[10/07, 12:14 p.m.] Aashis Pandy Jiddi: मुक्तक
कलाई में हरी चूड़ी खनकती आज भी होगी।
मेरी पहनाई वो पायल छनकती आज भी होगी।
मिटाना है नहीं मुमकिन हमारे प्यार को दिल से।
वफ़ा दिल में कहीं उसके पनपती आज भी होगी।
आशीष पांडेय ज़िद्दी।
९८२६२७८८३७
१०जुलाई२०१९
[11/07, 8:44 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: जब श्रीकृष्ण , मटमैले फ़टे पुराने वस्त्रों में द्वार खड़े सुदामा को गले लगाने दौड़ पड़े तब,
सुदामा कहते हैं
हे माधव!
मन मेरा निर्मल सखे,फ़टे वस्त्र धन हीन।
गले लगा पीताम्बरी,करना नहीं मलीन।।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
[11/07, 9:10 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆विधा- चौपाई आधारित गीत◆
***********************
विषय- प्राकृतिक आपदा।
देखो जननी प्रकृति हमारी।अश्रु बहाती है बेचारी।।
सूखा ओला पाला पड़ता।ताप धरा का निशदिन बढ़ता।।
कभी वृष्टि अति भारी होती,कभी फसल बेचारी रोती।।
कभी बाढ़ का होता खतरा,कभी बूँद का मिले न कतरा।।
धरती बंजर मानव करता।जड़ें काट तरु पर है चढ़ता।।
सूखा ओला पाला पड़ता।ताप धरा का निशदिन बढ़ता।।
वनदेवी अब कैसे रोती।अंधाधुंध कटाई होती।।
झरने नदियाँ ताल सूखते।देख दशा यह अचल टूटते।।
प्यासा जीव यहाँ है मरता,मानव नित मनमानी करता।।
सूखा ओला पाला पड़ता।ताप धरा का निशदिन बढ़ता।।
धरा रुदन जब भी करती है।प्रकृति साथ में रो पड़ती है।।ज्वालामुखी फटा करता है।भूकम्प देख मानव डरता है।।
लहर सुनामी लेकर बढ़ता।सागर भी तट ऊपर चढ़ता।।
सूखा ओला पाला पड़ता।ताप धरा का निशदिन बढ़ता।।
बंजर धरती करे रसायन।खाद उर्वरा करे पलायन।।
चपला अम्बर से जब गिरती।नहीं लक्ष्य से पीछी फिरती।।
मानव प्रकृति भाव नहिं पढ़ता।नित्य नीति दोहन की गढ़ता।।
सूखा ओला पाला पड़ता।ताप धरा का निशदिन बढ़ता।।
जीवन का अस्तित्व मिटेगा।अगर नहीं यह कृत्य रुकेगा।।
रुष्ट प्रकृति जब हो जायेगी।नित्य नई विपदा आएगी।।
धरा कोष जो खाली करता।वही दंड का भागी बनता।।
सूखा ओला पाला पड़ता।ताप धरा का निशदिन बढ़ता।।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
02अगस्त2018
[11/07, 9:12 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: विधा-- चौपाई गीतिका।
मात-पिता भगवान समाना।
नित्य करो पूजन विधि नाना।।
यही जन्म दे जग में लाएँ।
जननी-जनक करो गुणगाना।।
सदा पुत्र में प्राण समाए।
मात-पिता करते अभिमाना।।
देव यक्ष गन्धर्व महा मुनि।
मात-पिता का करें बखाना।।
पुण्य बड़ा सेवा में इनकी।
चरण छोड़ हे मनु नहि जाना।।
इस धरती पर दो ही ईश्वर।
सदा चरण रज इनकी पाना।।
श्रवण कुमार बनो हे मानव।
पुत्र धर्म तुम सदा निभाना।।
बूढ़े मात-पिता नहिं रोयें।
कभी नहीं इनको ठुकराना।।
इनका आदर मान किया तो।
निश्चय होगा स्वर्ग ठिकाना।।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
25अगस्त2018
[11/07, 9:15 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: मित्र वही जो बने सहारा।
दूर करे जो दोष तुम्हारा।।
सदा कष्ट में साथ तुम्हारे।
आलिंगन को बाँह पसारे।।
मित्र वही जो बने.........
राम समान मित्र जो पाए।
धन्य वही सुग्रीव कहाए।।
राजपाठ वापस दिलवाए।
बाली को प्रभु मार गिराए।।
अंगद जामवंत हनुमंता।
रटत राम का नाम अनंता।।
राम लखन का पाँव पखारा।
मित्र वही जो बने सहारा।।
दानी कर्ण महा बलशाली।
बाण कभी जाए नहि खाली।।
दिया मित्र को वचन निभाया।
अनुज बाण से सद्गति पाया।।
कर्ण समान मित्र नहि दूजा।
करें मित्रता की सब पूजा।।
कर्ण मित्र सा सबको प्यारा।
मित्र वही जो बने सहारा।।
देख सुदामा की गति रोये।
मित्र चरण नैनन जल धोये।।
कृष्ण समान मित्र नहि आला।
तीनहुँ लोक दान कर डाला।।
पीताम्बर से पाँव सुखाए।
मित्र कन्हैया गले लगाए।।
देख चकित होवे संसारा।
मित्र वही जो बने सहारा।।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी ।
9826278837
05अगस्त2018
[11/07, 9:57 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: मुक्तक
★★★★★★★★★★
अकेली बेटियाँ घर से सड़क पर जब निकलती हैं।
शिकारी जानवर इंसान की नजरें फिसलती हैं।
न जाने कब कहाँ छेड़ें कहाँ पर आबरू लूटें।
डरी सहमी हुई सी बेटियाँ पग-पग सँभलती हैं।
भरी है वासना मन में निगाहों से दिखाई दे।
नहीं ऐसे दरिंदों को अदालत भी रिहाई दे।
बिलखती बेटियों की चीख बनकर सिसकियाँ थमतीं।
मगर कानून वालों को नहीं पीड़ा सुनाई दे।
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
[12/07, 7:25 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: चौपाई छंद
नाथ कृपा करिए रत्नाकर।
दीनदयाल दयानिधि नागर।।
भक्त खड़े कर जोर मनावें।
कृपासिंधु सब काज बनावें।।
सेवक राम वीर हनुमाना।
वानर पवनपुत्र बलवाना।।
जारि कपीसा क्षण में लंका।
तीनहुं लोक बजाए डंका।।
संकट में जो पार लगाए।
सच्चा मित्र वही कहलाए।।
जो दुख में करता है सेवा।
वही हितैषी अपना देवा।।
चरण सरोज पखारन लागा।
केवट धन्य हुआ बडभागा।।
राम चन्द्र की लीला न्यारी।
कृपा किए प्रभु पालनहारी।।
सुर सरिता में सभी नहाएं।
मिलकर गीत खुशी के गाएं।।
प्रेम सकल संसार बसाए।
द्वेष दंभ नहिं प्रेम सुहाए।।
कुसुम खिले बगिया में सोहे।
भंवरा नित यह बेला जोहे।।
कलियन में भंवरा मंडराए।
सबको उत्तम दृश्य सुहाए।।
अरुणोदय की छटा निराली।
नभ पर दिखती स्वर्णिम लाली।।
धरती अति पुलकित हो जाए।
जब किरणें की आभा आए।।
पूजन मात पिता का करिए।
खुशियों से निज झोली भरिए।।
धरती के भगवान कहाएं।
जननी जनक परम पद पाएं।।
आदर सबका करना सीखो।
बुरे कृत्य से डरना सीखो।।
मन से अपने मैल मिटाओ।
जीवन अपना सफल बनाओ।।
माला फेरत पंडित आएं।
वेदों की महिमा नित गाएं।।
पढ़ते राधा प्रेम प्रसंगा।
कृष्ण दिखाते हैं बहु रंगा।।
आशीष पांडेय ज़िद्दी।
११जुलाई२०१९
९८२६२७८८३७
[13/07, 10:45 a.m.] Aashis Pandy Jiddi: ◆ *प्राकृतिक आपदाएँ/कारण/निवारण* ◆
परिभाषा--- प्रकृति द्वारा स्वतः घटित ऐसी घटनाएं जिनसे प्रकृति में पल रहे जीव -जंतु ,वनस्पति,मानव और प्राकृतिक धरोहरों को नुकसान हो प्राकृतिक आपदाएँ कहलाती हैं।
प्रकार--- प्राकृतिक आपदाओं में मुख्य रूप से ओलावृष्टि,अतिवृष्टि,सूखा,बाढ़, हिमस्खलन,भू-स्खलन,भूकम्प,ज्वालामुखी,सुनामी,तूफ़ान,प्राकृतिक बिजली का गिरना, आदि शामिल हैं।
प्राकृतिक आपदाओं का जनजीवन पर प्रभाव-----
कभी-कभी अति वृष्टि से बाढ़ आ जाती है जिसमें फसल नष्ट हो जाती है।बाढ़ में बहुत से जीव-जंतु बहकर ,डूबकर मर जाते हैं।कभी-कभी मानव भी बाढ़ में फँसकर मर जाते हैं।अति वृष्टि से भूमि का कटाव भी होता है। कभी-कभी बादलों के टकराने से आकाशीय बिजली गिरती है जो जीव,वनस्पति आदि को नष्ट कर देती है।आये दिन खबरें मिलती हैं कि आकाशीय बिजली गिरने से इतने लोग इतने पशु मृत। सूखा एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जो धरती को जलविहीन कर देती है।बारिश का न होना इसका मुख्य कारण है। लोग पीने के पानी के लिए तरसते हैं,दर-दर भटकते हैं।जीव-जंतु मरने लगते हैं।किसानों की भूमि बंजर हो जाती है।अनाज नहीं पैदा होता भुखमरी और हाहाकार मच जाता है।लोग उस स्थान को छोड़कर पलायन करने लगते हैं।भू-स्खलन और हिमस्खलन भी प्राकृतिक आपदाओं के एक रूप है इसमें अचानक बर्फ के पहाड़ चट्टानें और भूमि स्वतः टूटकर गिरने लगती है जिसकी चपेट में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।अधिकांशतः यह घटनाएँ पर्वतीय और हिमाच्छादित प्रदेशों में होती है। ज्वालामुखी का फटना,भूमि से गैस का रिसाव आदि भी जनजीवन के लिए खतरनाक हैं।मध्यप्रदेश में भोपाल जिले में लगभग 25 साल पूर्व भोपाल गैस त्रासदी हुई थी जिसमें बहुत स्व लोगों की जान गई थी।समुद्री तूफान ,सुनामी ,गगनचुम्बी लहरें आकर पूरा का पूरा समुद्रतटीय प्रदेश तहस-नहस कर देती हैं । अनगिनत जानें जाती हैं,भवन, सड़क,यातायात के साधन व्यवसाय आदि को भी क्षति होती है। हुदहुद,सुनामी,केदारनाथ बाढ़, भोपाल गैस त्रासदी आदि कई बड़ी घटनाएं हैं जो प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुए विनाश का वर्णन करती हैं। कभी-कभी जंगलों में बाँस की खपच्चियों के आपसी घर्षण से आग उत्तपन्न होकर पूरे जंगल को जला देती है ,हजारों जीव जंतु कीट पतंगें ,वनस्पति जलकर राख हो जाती हैं।यह मुख्यतः बाँस वनों में होता है। ओलावृष्टि के कारण किसानों की फसलें बर्बाद जो जाती हैं।घरों के खपरैल फूट जाते हैं,और इनसब प्राकृतिक आपदाओं के आने के बाद आती हैं महामारी,बीमारियाँ, उल्टी,दस्त, हैजा,आदि ।
प्राकृतिक आपदा का कारण/निवारण-----
प्राकृतिक आपदा के मुख्य कारण प्रकृति का बदलता स्वरूप ,प्रकृति का विदोहन,प्रकृति की जलवायु परिवर्तन, भू-स्थलाकृति परिवर्तन,उत्खनन, एवं वनों का अंधाधुंध विनाश है।
आज प्रकृति ने अपना तापमान बढ़ा लिया है,झरने नदी,तालाब कुएँ बसन्त ऋतु से सूखने लगते हैं। ग्लोबल वार्मिंग ,हीट स्ट्रोक,ओजोन छिद्र ये सब पर्यावरण प्रदूषण और प्रकृति के विनाश के कारण हैं। आधुनिकता की दौड़ में मानव इतना आगे निकल चुका है कि सृष्टि पर दृष्टि नहीं डाल रहा।
प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए मानव को प्रकृति को सजाना होगा, उत्खनन वनों की कटाई को रोकना होगा,हर घर मे एक पेड़ हर खेत मे दस पेड़ हर गली सड़क मैदान में पेड़ लगाना होगा। प्रदूषण कम करना होगा। स्वयं पर अंकुश लगाकर आने वाली पीढ़ी एवम सृष्टि में जीवन की इस परिपाटी को गतिमान रखना होगा। यदि मानव अभी नहीं चेतता तो कुछ 500 वर्षों में पृथ्वी जीवन विहीन हो जायेगी।
लेखन- आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826278837
02अगस्त2018
[13/07, 10:36 p.m.]
भूल गई वादे सभी
नेक वो इरादे सभी
बेवफ़ाई कर गई
प्यार की मिसाल थी।
जेब खाली कर गई
लूट झोली भर गई
कबसे वो बुन रही,
मकड़ी का जाल थी।
प्यार नहीं छल किया
उसने जो कल किया
दिल मेरा तोड़ गई
बदली सी चाल थी।
सब कुछ वार दिया
मैंने उसे प्यार दिया
भावना से खेल गई
लड़की कमाल थी।
आशीष पांडेय ज़िद्दी।
9826278837
13/07/2019
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