*212_212_212_212*
आ रहा है मजा अब तेरी बात में
दर्द मिटने लगा इस मुलाकात में।
दीद को मैं तिरी बस तरसता रहा
आ भी जा मुझसे मिलने ख़यालात में।
छोड़ दे सारी बातें हुईं सो हुईं
अब क्या रक्खा है ऐसे सवालात में।
मैं तो बरसों परेशाँ रहा हूँ सनम
जैसे डाला किसी ने हवालात में।
जब ये बारिश की बूदें भिगोने लगीं
याद आने लगी तेरी बरसात में।
इल्तज़ा आज *पण्डित* की सुन ले ज़रा
आके मिल तू मुझे चाँदनी रात में।
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