गीत
विधान : 212 × 4
पलकें भीगी हुईं रो रहे हैं नयन।
ये विधाता ने कैसा बनाया चलन।
थे जो अपने वो पल में जुदा हो गये।
दूर हमसे वो कैसे खुदा हो गये।
वेदना हमसे होती नहीं है सहन।
ये विधाता ने कैसा बनाया चलन।
दूरियाँ यूं बढ़ाते गये इस कदर।
दिल की खुशियाँ जलाते गये इस कदर।
हाय! सुषमा गईं रो रहा हर सदन।
ये विधाता ने कैसा बनाया चलन।
याद उनकी सदा नैन रोते रहे।
बीज अब आँसुओं के ही बोते रहे।
उनके चरणों में करते रहेंगे नमन।
ये विधाता ने कैसा बनाया चलन।
हंस
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