Sunday, November 24, 2019

ई-पत्रिका जनचेतना

*विशेष सूचना*

जय जय हिंदी के सभी सम्मानित रचनाकारों को सूचित किया जाता है कि संस्था *सशुल्क एकल ई संग्रह प्रकाशन* योजना की शुरुआत करने जा रही है जो भी रचनाकार अपना एकल ई संग्रह प्रकाशित करवाना चाहता है सम्पर्क करें।

नियम एवं शर्तें:-
1 - 21 रचनाएँ , जीवन परिचय अधिकतम  कुल पृष्ठ 25 शुल्क 1100 ₹।

2- 51 रचनाएँ , जीवन परिचय अधिकतम  कुल पृष्ठ 55 शुल्क 2500 ₹।

3- 75 रचनाएँ , जीवन परिचय अधिकतम  कुल पृष्ठ 80 शुल्क 4000 ₹।

4- 101 रचनाएँ , जीवन परिचय अधिकतम  कुल पृष्ठ 105 शुल्क 5500 ₹।

इच्छुक रचनाकार संपर्क करें।

नोट- संग्रह को isbn नम्बर दिलाने का केवल प्रयास रहेगा पूर्ण गारण्टी नहीं रहेगी।

ओम प्रकाश फुलारा "प्रफुल्ल"
अध्यक्ष
प्रदेश इकाई उत्तराखंड
विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत
9411583567

Friday, November 22, 2019

छंद सृजन

हिन्दी छन्द परिचय, गण, मात्रा गणना, छन्द भेद तथा उपभेद - (भाग २) में बताया गया कि छन्द मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं

१- वर्णिक छन्द
२- मात्रिक छन्द

तथा इनका परिचय भी प्रस्तुत किय गया अब छन्द के भेद के साथ उप भेद को भी जानेंगे

जैसा कि आपने जाना प्रत्येक पंक्ति को पद कहते हैं पद में यति/गति अर्थात विश्राम के आधार पर के आधार पर चरण का निर्माण होता है यति/गति अर्थात विश्राम न होने पर चरण नहीं बनता है
जैसे चौपाई में चार पद होते हैं तथा पदों में विश्राम नहीं होता इसलिए पद में चरण का निर्माण नहीं होता है

दो पंक्ति को द्विपदी कहते हैं
चार पंक्ति को चतुष्पदी कहते हैं

मुख्यतः छन्द के दो भेद १ - वर्णिक छन्द तथा २- मात्रिक छन्द के तीन तीन उप भेद होते हैं

मात्रिक छन्द के उप भेद

क) - सम मात्रिक छन्द
ख) - अर्ध सम मात्रिक छन्द
ग) - विषम मात्रिक छन्द

क) - सम मात्रिक छन्द - जिस द्विपदी के चरों चरण की मात्राएँ समान होती हैं अथवा जिस चतुष्पदी के चारो पद की कुल मात्राएं सामान होती हैं उन्हें सम मात्रिक छन्द कहते हैं

ऐसे चतुष्पदी का प्रचिलित उदाहरण चौपाई छन्द है जिसके चारो पद में १६ - १६ मात्राएं होती है|
विधान - ४ पद, प्रत्येक पद में १६ मात्रा
उदाहरण -
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
जय कपीस तिहुं लोक उजागर
राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवन सुत नामा 

मात्रा गणना
ज१ य१ ह१ नु१ मा२ न१  ज्ञा२ न१  गु१ न१  सा२ ग१ र१  = १६ मात्रा
ज१ य१ क१ पी२ स१ ति१ हुं१ लो२ क१ उ१ जा२ ग१ र१     = १६ मात्रा
रा२ म१ दू२ त१ अ१ तु१ लि१ त१  ब१ ल१  धा२ मा२      = १६ मात्रा
अं२ ज१ नि१ पु२ त्र१ प१ व१ न१ सु१ त१ ना२ मा२        = १६ मात्रा

चतुष्पदी का एक और उदाहरण कज्जल छन्द है जिसके चारो पद में १४ - १४ मात्राएं होती है, अंत गुरु लघु से होता है |
उदाहरण -
प्रभु मम ओरी देख लेव |  = १४ मात्रा
तुम सम नाहीं और देव |  = १४ मात्रा
कास प्रभु कीजै तोरि सेव | = १४ मात्रा
ताव न् कोऊ तोर भेव |    = १४ मात्रा

द्विपदी का प्रचिलित उदाहरण विधाता छन्द है जिसके चारो चरण में १४ - १४ मात्राएं होती हैं

सम मात्रिक छन्द के दो उप भेद हैं
१ - साधारण सम मात्रिक छन्द
२- दंडक सम मात्रिक छन्द

१ - साधारण सम मात्रिक छन्द - मात्रिक छन्द के अन्तर्गत प्रत्येक चरण अथवा प्रत्येक पद में मात्रा ३२ तक हो तो उसे साधारण सम मात्रिक छन्द कहते हैं
कुछ प्रचिलित छन्द -
उल्लाला छन्द (द्विपदी) प्रत्येक चरण १३ मात्रा
चौपाई छन्द (चतुष्पदी) प्रत्येक पद १६ मात्रा
सुमेरू छन्द (चतुष्पदी) प्रत्येक पद १९ मात्रा
हरिगीतिका छन्द (चतुष्पदी) प्रत्येक पद २८ मात्रा

 
२- दंडक सम मात्रिक छन्द - मात्रिक छन्द के अन्तर्गत प्रत्येक चरण अथवा प्रत्येक पद में मात्रा ३२ से अधिक हो तो उसे दंडक सम मात्रिक छन्द कहते हैं
उदाहरण  
हरिप्रिया छन्द (चतुष्पदी) प्रत्येक पद ४६ मात्रा
हरिप्रिया छन्द उदाहरण -
सोहाने कृपानिधान, देव देव राम चन्द्र भूमि पुत्रिका समेत देव चित्त मोहैं
मानो सुरतरुसमेत, कल्प बेलि छबि निकेत, शोभा श्रृंगार किधौं रोप धरैं सोहैं
लक्ष्मीपति लक्ष्मीयुत देवीयुत ईश किधौं छायायुत परम ईश चारु वेश राखैं 
वन्दैन् जग मात तात, चरण युगल, नीरजात जाको सुर सिद्ध विध मुनिजन अभि लाखैं  

ख)- अर्ध सम मात्रिक छन्द - जिस मात्रिक छन्द के द्विपदी में विषम चरम तथा सम चरण की मात्रा अलग अलग होती है अथवा चतुष्पदी में विषम पद तथा सम पद की मात्रा अलग अलग होती है उसे अर्ध सम मात्रिक छन्द कहते हैं
उदाहरण -
दोहा छन्द में विषम चरण १३ मात्रा तथा सम चरण ११ मात्रा का होता है अतः दोहा अर्ध सम मात्रिक छन्द है
अन्य अर्ध सम मात्रिक छन्द देखें -

सोरठा - (द्विपदी) = विषम चरण - ११ मात्रा / सम चरण - १३ मात्रा

उल्लाल - (चतुष्पदी) = विषम पद - १५ मात्रा / सम पद - १३ मात्रा

बरवै - (द्विपदी) = विषम चरण - १२ मात्रा / सम चरण - ७ मात्रा

ग) - विषम मात्रिक छन्द - जिस मात्रिक छन्द के द्विपदी में चारों चरण अथवा चतुष्पदी में चारो पद की मात्रा अलग अलग होती है उसे विषम मात्रिक छन्द कहते हैं
उदाहरण -
सिंहनी छन्द -(द्विपदी)
प्रथम चरण - १२ मात्रा
द्वितीय चरण - २० मात्रा
तृतीय चरण - १२ मात्रा
चतुर्थ चरण - १८ मात्रा

दो छन्दों के योग से निर्मित छन्द भी विषम मात्रिक छन्द कहलाते हैं
जैसे -
एक दोहा + एक रोला = कुंडलिया छन्द
एक रोला + एक उल्लाला = छप्पय छन्द

Thursday, November 21, 2019

छंद व्याकरण

मात्राभार और कलन की कला

छन्दबद्ध रचना के लिये मात्राभार की गणना का ज्ञान आवश्यक है। मात्राभार दो प्रकार का होता है – वर्णिक भार और वाचिक भार। वर्णिक भार में प्रत्येक वर्ण का भार अलग-अलग यथावत लिया जाता है जैसे – विकल का वर्णिक भार = 111 या ललल जबकि वाचिक भार में उच्चारण के अनुरूप वर्णों को मिलाकर भार की गणना की जाती है जैसे विकल का उच्चारण वि कल है, विक ल नहीं, इसलिए विकल का वाचिक भार है – 12 या लगा। वर्णिक भार की गणना करने के लिए कुछ निश्चित नियम हैं।

वर्णिक भार की गणना

(1) ह्रस्व स्वरों की मात्रा 1 होती है जिसे लघु कहते हैं, जैसे - अ, इ, उ, ऋ की मात्रा 1 है। लघु को 1 या । या ल से भी व्यक्त किया जाता है।

(2) दीर्घ स्वरों की मात्रा 2 होती है जिसे गुरु कहते हैं,जैसे - आ, ई, ऊ, ए,ऐ,ओ,औ की मात्रा 2 है। गुरु को 2 या S या गा से भी व्यक्त किया जाता है।

(3) व्यंजनों की मात्रा 1/ल होती है , जैसे - क,ख,ग,घ / च,छ,ज,झ / ट,ठ,ड,ढ,ण / त,थ,द,ध,न / प,फ,ब,भ,म / य,र,ल,व,श,ष,स,ह।
वास्तव में व्यंजन का उच्चारण स्वर के साथ ही संभव है, इसलिए उसी रूप में यहाँ लिखा गया है। अन्यथा क्, ख्, ग् … आदि को व्यंजन कहते हैं, इनमें अकार मिलाने से क, ख, ग ... आदि बनते हैं जो उच्चारण योग्य होते हैं।

(4) व्यंजन में ह्रस्व इ, उ, ऋ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार 1/ल ही रहता है।

(5) व्यंजन में दीर्घ स्वर आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार 2/गा हो जाता है।

(6) किसी भी वर्ण में अनुनासिक लगने से मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, जैसे – रँग = 11, चाँद = 21, माँ = 2, आँगन = 211, गाँव = 21

(7) लघु वर्ण के ऊपर अनुस्वार लगने से उसका मात्राभार 2 हो जाता है, जैसे – रंग = 21, अंक = 21, कंचन = 211, घंटा = 22, पतंगा = 122

(8) गुरु वर्ण पर अनुस्वार लगने से उसके मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, जैसे – नहीं = 12, भींच = 21, छींक = 21,
कुछ विद्वान इसे अनुनासिक मानते हैं लेकिन मात्राभार यही मानते हैं।

(9) संयुक्ताक्षर का मात्राभार 1 (लघु) होता है, जैसे – स्वर = 11, प्रभा = 12, श्रम = 11, च्यवन = 111

(10) संयुक्ताक्षर में ह्रस्व मात्रा लगने से उसका मात्राभार 1 (लघु) ही रहता है, जैसे – प्रिया = 12, क्रिया = 12, द्रुम = 11, च्युत = 11, श्रुति = 11

(11) संयुक्ताक्षर में दीर्घ मात्रा लगने से उसका मात्राभार 2 (गुरु) हो जाता है, जैसे – भ्राता = 22, श्याम = 21, स्नेह = 21, स्त्री = 2, स्थान = 21

(12) संयुक्ताक्षर से पहले वाले लघु वर्ण का मात्राभार 2 (गुरु) हो जाता है, जैसे – नम्र = 21, सत्य = 21, विख्यात = 221

(13) संयुक्ताक्षर के पहले वाले गुरु वर्ण के मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, जैसे – हास्य = 21, आत्मा = 22, सौम्या = 22, शाश्वत = 211, भास्कर = 211

(14) संयुक्ताक्षर सम्बन्धी नियम (12) के कुछ अपवाद भी हैं, जिसका आधार पारंपरिक उच्चारण है, अशुद्ध उच्चारण नहीं।

जैसे – तुम्हें = 12, तुम्हारा/तुम्हारी/तुम्हारे = 122, जिन्हें = 12, जिन्होंने = 122, कुम्हार = 121, कन्हैया = 122, मल्हार = 121, कुल्हाड़ी = 122
व्याख्या – इन अपवादों में संयुक्ताक्षर का पूर्ववर्ती अक्षर सदैव ऐसा व्यंजन होता है जिसका ‘ह’ के साथ योग करके कोई नया अक्षर हिन्दी वर्ण माला में नहीं बनाया गया है, इसलिए जब इस पूर्ववर्ती व्यंजन का ‘ह’ के साथ योग कर कोई संयुक्ताक्षर बनता हैं तो उसका व्यवहार संयुक्ताक्षर जैसा न होकर एक नए वर्ण जैसा हो जाता है और इसीलिए उसपर संयुक्ताक्षर के नियम लागू नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए न् म् ल् का ‘ह’ के साथ योग करने से बनने वाले संयुक्ताक्षर म्ह न्ह ल्ह ‘एक वर्ण’ जैसा व्यवहार करते है जिससे उनके पहले आने वाले लघु का भार 2 नहीं होता अपितु 1 ही रहता है। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि हिन्दी वर्णमाला के कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग और पवर्ग में पहले व्यंजन में ‘ह’ का योग करने से दूसरा व्यंजन तथा तीसरे व्यंजन में ‘ह’ का योग करने से चौथा व्यंजन बनता है। उदाहरणार्थ -
क् + ह = ख , ग् + ह = घ
च् + ह = छ , ज् + ह = झ
ट् + ह = ठ , ड् + ह = ढ
त् + ह = थ , द् + ह = ध
प् + ह = फ , ब् + ह = भ किन्तु -
न् + ह = न्ह , म् + ह = म्ह , ल् + ह = ल्ह (कोई नया वर्ण नहीं, तथापि व्यवहार नए वर्ण जैसा)

कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं जिनपर उपर्युक्त व्याख्या लागू नहीं होती है, जैसे नन्हा = 22, कुल्हड़ = 211, अल्हड़ = 211 आदि।

वाचिक भार की गणना
वाचिक भार की गणना करने में ‘उच्चारण के अनुरूप’ दो लघु वर्णों को मिलाकर एक गुरु मान लिया जाता है। उदहरणार्थ निम्न शब्दों के वाचिक भार और वर्णिक भार का अंतर दृष्टव्य है -

उदाहरण वाचिक भार, वर्णिक भार (क्रमशः)
कल, दिन, तुम, यदि, लघु, क्षिति, विभु, आदि ... 2 / गा, 11 / लल
अमर, विकल, विविध, मुकुल, मुदित आदि 12 / लगा, 111 / ललल
उपवन, मघुकर, विचलित, अभिरुचि आदि ... 22 / गागा, 1111 / लललल
नीरज, औषधि, शोधित, अंकुर, धूमिल आदि . 22 / गागा, 211 / गालल
चलिए, सुविधा, अवधी, विविधा, कमला आदि 22 / गागा, 112 / ललगा
आइए, माधुरी, स्वामिनी, उर्मिला, पालतू आदि 212 / गालगा, 212 / गालगा
सुपरिचित, अविकसित आदि 122/ललगा (212/गालगा नहीं), 11111 / ललललल
मनचली, किरकिरी, मधुमिता 212/गालगा (122/लगागा नहीं), 1112 / लललगा
असुविधा, सरसता, मचलती आदि 122/लगागा (212/गालगा नहीं), 1112 / लललगा

कलन की कला
जब हम किसी काव्य पंक्ति के मात्राक्रम की गणना करते हैं तो इस क्रिया को कलन कहते हैं, उर्दू में इसे तख्तीअ कहा जाता है। कलन में मात्राभार को व्यक्त करने की कई प्रणाली हैं। हमने ऊपर की विवेचना में मुख्यतः अंकावली या लगावली का प्रयोग किया है, अन्य प्राणियों के रूप में स्वरावली और अरकान का भी प्रयोग किया जाता है। आगामी उदाहरणों में हम इनका भी उल्लेख करेंगे। किसी काव्य पंक्ति का कलन करने के पूर्व यह समझ लेना आवश्यक है वह पंक्ति वर्णिक छंद पर आधारित है या फिर मात्रिक छंद पर। यदि पंक्ति वर्णिक छंद पर आधारित है तो कलन में वर्णिक भार का प्रयोग किया जाएगा और यदि पंक्ति मात्रिक छंद पर आधारित है तो कलन में वाचिक भार का प्रयोग किया जाएगा । एक बात और, काव्य पंक्ति का कलन करते समय मात्रापतन का ध्यान रखना भी आवश्यक है अर्थात जिस गुरु वर्ण में मात्रापतन है उसका भार लघु अर्थात 1 ही माना जाएगा। उदाहरणों से यह बात पूर्णतः स्पष्ट हो जाएगी।

वर्णिक कलन
इसे समझने के लिए महाकवि रसखान की एक पंक्ति लेते हैं -
मानुस हौं तो वही रसखान बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन
यह पंक्ति वर्णिक छंद (किरीट सवैया) पर आधारित है, इसलिए हम इसका कलन करने में वर्णिक भार का ही प्रयोग करेंगे।
पहले हम सभी शब्दों का वर्णिक भार अलग-अलग देखते हैं -
मानुस (211) हौं (2) तो’ (1) वही (12) रसखान (1121) बसौं (12) ब्रज (11) गोकुल (211) गाँव (21) के’ (1) ग्वारन (211)

इस कलन में प्रत्येक वर्ण का अलग-अलग भार यथावत लिखा गया है, दबाकर पढ़ने के कारण ‘तो’ का भार लघु 1 और ‘के’ का भार भी लघु 1 लिया गया है। यह वर्णिक छंद गणों पर आधारित है, इसलिए इसलिए इसके मात्राक्रम का विभाजन गणों के अनुरूप निम्नप्रकार करते हैं -
मानुस/ हौं तो’ व/ही रस/खान ब/सौं ब्रज/ गोकुल/ गाँव के’/ ग्वारन
211/ 211/ 211/ 211/ 211/ 211/ 211/ 211 (अंकावली)
गालल गालल गालल गालल गालल गालल गालल गालल (लगावली)
भानस भानस भानस भानस भानस भानस भानस भानस (गणावली)

वाचिक कलन
इसे समझने के लिए एक हम एक फिल्मी गीत की पंक्ति का उदाहरण लेते हैं -
सुहानी चाँदनी रातें हमें सोने नहीं देतीं
यह पंक्ति मात्रिक छंद (विधाता) पर आधारित है, इसलिए हम इसका कलन करने में वाचिक भार का ही प्रयोग करेंगे।
पहले हम सभी शब्दों का वाचिक भार अलग-अलग देखते हैं -
सुहानी(122) चाँदनी(212) रातें(22) हमें(12) सोने(22) नहीं(12) देतीं(22)
अब हम इसे प्रचलित स्वरकों (रुक्नों/अरकान) में विभाजित करते हैं-
सुहानी चाँ (1222) दनी रातें (1222) हमें सोने (1222) नहीं देतीं (1222)
सुविधा की दृष्टि से पारंपरिक रूप में हम इसे इसप्रकार भी लिख सकते हैं-
सुहानी चाँ/दनी रातें/ हमें सोने/ नहीं देतीं
1222 .... 1222 .... 1222 .... 1222 (अंकावली)
लगागागा लगागागा लगागागा लगागागा (लगावली)
यमातागा यमातागा यमातागा यमातागा (स्वरावली)
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन (अरकान)

इसी मापनी का एक और उदाहरण लेते हैं जिसमें मात्रापतन और वाचिक भार की बात भी स्पष्ट हो जाएगी। देखते हैं डॉ कुँवर बेचैन की यह पंक्ति -
नदी बोली समंदर से मैं तेरे पास आयी हूँ
यह पंक्ति भी मात्रिक छंद (विधाता) पर आधारित है, इसलिए वाचिक भार का प्रयोग करते हुए इसका वाचिक कलन निम्नप्रकार करते हैं -
नदी (12) बोली (22) समंदर (122) से (2) मैं (1) तेरे (22) पास (21) आयी (22) हूँ (2)
इस कलन में उच्चारण के अनुरूप ‘समंदर’ के अंतिम दो लघु 11 को मिलाकर एक गुरु 2 माना गया है (वाचिक भार) तथा दबाकर उच्चारण करने के कारण ‘मैं’ का भार गुरु न मानकर लघु माना गया है (मात्रापतन)।
पारंपरिक ढंग से इस कलन को हम ऐसे भी लिख सकते हैं -
नदी बोली/ समंदर से/ मैं’ तेरे पा/स आयी हूँ
1222 ..... 1222 ..... 1222 ...... 1222 (अंकावली)
लगागागा लगागागा लगागागा लगागागा (लगावली)
यमातागा यमातागा यमातागा यमातागा (स्वरावली)
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन (अरकान)

विशेष
छंदस काव्य की रचना प्रायः लय के आधार पर ही जाती है जो किसी उपयुक्त काव्य को उन्मुक्त भाव से गाकर अनुकरण से आत्मसात होती है। बाद में मात्राभार की सहायता से अपने बनाये काव्य का कलन करने से त्रुटियाँ सामने आ जाती हैं और उनका परिमार्जन हो जाता है और दूसरे के काव्य का निरीक्षण और परिमार्जन करने में भी कलन बहुत उपयोगी होता है।

- ओम नीरव, लखनऊ # 07526063802

Wednesday, November 20, 2019

विदाई गीत साथी जी

गीत
मापनी - 2122 , 1212 , 22
 
बेटी क्यो   जन्म   से   पराई   है ।
क्या वो  बेटो सी नही  जाई  है ।।

बेटियाँ  हर  जगह  हुई शामिल  ।
वो भी बेटो सी बनी हैं काबिल ।।
फिर क्यो बेटी की ही *विदाई* है ।
*बेटी क्यो जन्म.................*

प्यार  करती  है  बेटियाँ  सच्चा ।
उन्हे बाबुल लगे सबसे अच्छा ।।
प्यार  का  नाम  ही   जुदाई  है ।
*बेटी क्यो जन्म.................*

बेटी का  रूप माँ,  बहन , पत्नी ।
छोड़ती ही रही पहचान अपनी ।।
पीर  सबने  ही तो     बढ़ाई  है ।
*बेटी क्यो जन्म..................*

बेटी  को  हक  मिले बेंटो जैसा ।
बेटी  से घर  खिले  बेटो जैसा ।।
बेटी  ने   सृष्टि   ये   चलाई   है ।
*बेटी क्यो जन्म.................*

बेटियो  का जो हक नही मिलता ।
फिर भी पुरुषों को सब सही लगता ।।
आज  *साथी*  करे   दुहाई   है ।
*बेटी क्यो जन्म..................*

🌻🌻🌻🌻523🌻🌻🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा

विदाई गीत :- ममता वाणीं


विषय--विदाई

वो जान हमारी है, वो शान हमारी है
आंगन में जब डोले,नन्ही परी प्यारी है।।

1--पतझड़ में भी महके
     वो पुष्प की एक पंखी
       वीणा के तार वही
       वो मोहन की वंशी
वो गीत गज़ल मेरी, छंदों से न्यारी है।।
            आंगन में जब......

2--बचपन के दिन बीते
     अब नई कहानी है
      वो नन्ही परी मेरी
       अब भई सयानी है
ममता बेबस है मेरी, डोली की तैयारी है।।
              आंगन में जब.....

3--है द्रवित हृदय मेरा
     कम्पित स्वरलहरी है
     स्वांसों की विदाई है
     सच्चाई गहरी है
दम घुटा लगे जैसे, गई ज्योति हमारी है।।
             आंगन में जब डोले....

            ।।।ममता वाणीं।।।

Sunday, November 17, 2019

संगीता श्रीवास्तव "कसक " ग़ज़ल

ग़ज़ल......
वज़्न... 212 212 212 212
क़ाफ़िया.. आँ स्वर
रदीफ़ -हो  गये

हमनशीं हमसफ़र महरबाँ हो गये
कितने क़िस्से यहाँ खामखांँ हो गये !

हम नहीं जानते क्या हुआ क्या नहीं  
मगर कुछ तो हुआ हमज़बाँ हो गये !

बात मुद्दत से दिल में छिपाते रहे 
आज उनसे मिले ख़ुद बयाँ हो गये !

चलते चलते कदम रुक गये हैं कभी 
मिलके जब भी बढ़े कारवाँ हो गये  !

यूँ चमन दर चमन खिल रहा था कंवल 
इक नशा सा चढ़ा बदगुमाँ हो गये !

दिल की ज़द से "कसक "दूर जाती नहीं 
हाय कैसे कहें बेज़ुबाँ हो गये ! !

संगीता श्रीवास्तव "कसक "
छिंदवाड़ा मप्र

Wednesday, November 13, 2019

सूत्र

छंदशास्त्र में आठ गण होते हैं जिसका सूत्र है~👇
यमाताराजभानुसलगा
1 2 2 21 2 1 1 1 2
यगण~122-हमारा,तुम्हारा,किनारा---
मगण~222-आयेगा,पाजामा---
तगण~221-सामान,आसान-----
रगण~212-दीजिए,चाहिए-----
जगण~121-पुकार,शिकार-----
भगण~211-भूतल,शीतल-------
नगण~111-सहज,सरल,सरस----
सगण~112-लगता,सजना-------

लघु~1- अ, इ, उ, ऋ ,ँ ,इनकी मात्रा वाले सभी व्यंजन|(संयुक्त व्यंजन को छोड़कर सभी व्यंजन)|
गुरु~2~आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ,अं,अः और इनकी मात्राओं से युक्त व्यंजन व संयुक्त व्यंजन |
😊🙏😊

Thursday, November 7, 2019

स्वाभिमान सौरभ नारायण शुक्ला

स्वाभिमान कुंभज का जिसने सागर का जल सोख दिया!
एक सती के स्वाभिमान ने उगता सूरज रोक दिया!
स्वाभिमान रघुकुल का जिसने शंभुचाप को तोड़ा था!
स्वाभिमान लक्ष्मन का जिनने वन में साथ न छोड़ा था!
स्वाभिमान बजरंगी का कि जिसने लंका दहन किया!
स्वाभिमान मां सीता का कि हर कष्टों को वहन किया!
स्वाभिमान उस नटवर नागर नटखट कृष्ण कन्हैया का!
स्वाभिमान शेषावतार लक्ष्मण का दाऊ भैया का!
स्वाभिमान अर्जुन का जिसने जीता कुरूखेत का रण!
स्वाभिमान अभिमन्यु का जो जिया वीरता वाले क्षण!
स्वाभिमान चाणक्य का जिसने सिंहासन को बदल दिया!
स्वाभिमान उस चंद्रगुप्त का जिसने शासन बदल दिया!
स्वाभिमान है उस अशोक पर जिसने जीते हृदय देश!
जगती को सत्य अहिंसा के उपदेश प्रदाता बुद्धवेष!
स्वाभिमान चंदेलों की उस अद्भुत शिल्पकला पे है!
स्वाभिमान कवितावली के छोटे से रामलला पे है!
स्वाभिमान आल्हा ऊदल पर स्वाभिमान चौहानों पर!
स्वाभिमान है पृथ्वीराज के शब्दवेध संधानों पर!
स्वाभिमान है तुलसी पर जिनने मानस मंत्र महान लिखे!
सूरदास जी जिनको निश्चित बालकृष्ण भगवान दिखे!
स्वाभिमान चैतन्य व मीरा की अनुपम अनुरक्ति पर!
स्वाभिमान रैदास तुम्हारी निश्छल कठिन विरक्ति पर!
स्वाभिमान राणा पर है व राजस्थानी माटी पर!
स्वाभिमान हर समय रहेगा हमको हल्दीघाटी पर!
स्वाभिमान गुरुओं पर एवं गुरुओं की गुरूबानी पर!
स्वाभिमान है हमें हमारी झांसी वाली रानी पर!
स्वाभिमान है हमें भगतसिंह शेखर के बलिदानों पर!
स्वाभिमान नेताजी का जो भारी था हैवानो पर!
सीना तान खड़े सीमा पर स्वाभिमान उन वीरों पर!
स्वाभिमान है छत्रसाल बुंदेला की शमशीरों पर!
स्वाभिमान जिसके कारण ही कभी विजयरथ रुका नहीं!
स्वाभिमान जिसके कारण ही अमर तिरंगा झुका नहीं!
स्वाभिमान खंडित करने वाले का किंचित क्षेम नहीं!
स्वाभिमान से बढ़कर मुझको किसी और से प्रेम नहीं!
*_© सौरभ नारायण शुक्ला_*

Wednesday, November 6, 2019

अनुकूला छंद - ओम

🌷🌷  *शुभ प्रभात मित्रो* 🌷🌷

जय माता दी कीजिये, होगी   नैया  पार।
नाम  हृदय  में  धारिये, हर लेंगी माँ भार।।

*◆अनुकूला छंद◆*
विधान~ [भगण तगण नगण+गुरु गुरु]
( 211 221 111  22
11 वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]

मातु रमा  मैं  चरण  पड़ा हूँ।
हाथ  बढ़ाओ शरण  पड़ा हूँ।।
ये विनती  है अब सुन लीजे।
माँ मति ये, निर्मल कर दीजे।।

          *©मुकेश शर्मा "ओम"*

Sunday, November 3, 2019

आलेख - नीतेन्द्र भारत

*आलेख*

शीर्षक:- टिकट लेने में परेशानी

बात पूरी यह है कि एक महामना ट्रेन प्रतिदिन खजुराहो से भोपाल जाती है। वह महाराजा छत्रसाल स्टेशन छतरपुर में सायंकाल चार बजकर पैंतालीस मिनिट पर आती है। सभी पैसेंजर स्टेशन पर आते है और टिकट के काउंटर पर खड़े होते है टिकट लेने के लिए यह हाल चार बजे से शुरू हो जाता है। लोग आते रहते है। लाईन बढ़ाती रहती है। और बढ़ते बढ़ते वह लाईन महिला तथा पुरूष की चालीस फिट तक लम्बी हो जाती है। और टिकट का केवल एक काउंटर होने के कारण यह सभी पैसेंजर को भोगना पड़ता है। बीच में कई  ऐसे महान लोग आते है।जो लाईन में लगना पसंद नहीं करते है। वह आगे काउंटर पर धसने लगते है। और लाईन वाले व्यक्ति अपनी लाईन के अनुसार धीरे धीरे बढ़ते है। एक महिला और तीन पुरुष को टिकट देते जाते है।
        अब समय धीरे धीरे चार पैंतालीस हो जाते है। और आधे से ज्यादा लोग बिना टिकट के लोग फिर ट्रेन में बैठ जाते है। यहां भीड़ बहुत रहती है तो कोई जनरल में,रिजर्वेशन में तथा विकलांग आदि में बैठ जाते है। फिर वह डरे हुये पैसेंजर सफर करते है तथा अचानक जैसे ही टीटी आता है। वह टिकट मांगता है। तो वह लोग परेशान होने लगते है। हम उनके पास टिकट माँगने आता है। तो फिर टीटी उसका पाँच सो रुपये का चालान काटता है वह बोलता है कि सर वहां पर बहुत भीड़ थी। इसलिए टिकट लेने मे असमर्थ रहा। लेकिन वह नहीं सुनता किसी की और कार्यवाही करता है।
      दृश्य दोनो सामने है यदि  स्टेशन पर पर्याप्त काउंटर हो जाये तो दोनो समस्या हल हो जायेगी। हमारा मानना है कि यही ठीक रहेगा।

नीतेन्द्र सिंह परमार "भारत"
दिनांक:- 31/10/2019

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