Sunday, November 17, 2019

संगीता श्रीवास्तव "कसक " ग़ज़ल

ग़ज़ल......
वज़्न... 212 212 212 212
क़ाफ़िया.. आँ स्वर
रदीफ़ -हो  गये

हमनशीं हमसफ़र महरबाँ हो गये
कितने क़िस्से यहाँ खामखांँ हो गये !

हम नहीं जानते क्या हुआ क्या नहीं  
मगर कुछ तो हुआ हमज़बाँ हो गये !

बात मुद्दत से दिल में छिपाते रहे 
आज उनसे मिले ख़ुद बयाँ हो गये !

चलते चलते कदम रुक गये हैं कभी 
मिलके जब भी बढ़े कारवाँ हो गये  !

यूँ चमन दर चमन खिल रहा था कंवल 
इक नशा सा चढ़ा बदगुमाँ हो गये !

दिल की ज़द से "कसक "दूर जाती नहीं 
हाय कैसे कहें बेज़ुबाँ हो गये ! !

संगीता श्रीवास्तव "कसक "
छिंदवाड़ा मप्र

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