*वीर योद्धा*
वीर सदा प्रतिकार करें,
लड़ने को तत्पर रहता है।
जब अपने ही प्रतिघात करें,
चुपचाप सदा ही सहता है।।
आँधी तूफ़ा,गर्मी सर्दी,
से हरगिज ना डरता है।
युद्ध क्षेत्र में कायरता से,
वीर कभी ना मरता है।।
जब साम दाम और दंड भेद का,
पाठ पढ़ाया जाता था।
जब अरिदल का शीश काट,
अग्नि में जलाया जाता था।।
तब रूह तलक तक काँप उठी,
होगी उसकी परछाई की।
आवाज बदल जाती है ज्यों ही,
युद्धों में शहनाई की।।
सन्नाटा भू से नभ तक यूं,
छा जाता है वायु में।
बढ़ जाती दुगुनी वीरों की,
आयु सीमा आयु में।।
सन्मुख जिसने ललकार दिया,
हम सहने वाले लोग नहीं।
जो हम को यम तक पहुंचा दे,
ऐसा कोई रोग नहीं।।
हम प्रबल प्रतापी वीरों की,
मिट्टी को चंदन कहते है।
*भारत* भूमि के हृदय क्षेत्र में,
वीर बुन्देला रहते है।।
*_ नीतेन्द्र भारत*
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