मनहरण घनाक्षरी-
नयनों में चाह रख , ध्येय में प्रवाह रख
निरत प्रयास कर , आप लक्ष्य पाइए।
हिय जागे विश्वास, पथ में उगे प्रभास
स्वयम् सवित्र बन , ओझल हठाइए।
चेतना का वर लेना,शुष्क कंठ स्वर देना
सुप्तता को मेटकर, आग को जगाइए।
कौन करता विरोध ,कौन लेता प्रतिशोध
आप शक्तिवान हो के, शत्रु को दिखाइए।।
श्रीमन्नारायणाचार्य "विराट"
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