प्रीत के गीतो से बढ़कर और कोई धन नही हैं।
अपनो से जो दूर भागू ऐसा मेरा मन नही हैं।।
नजरो से नजरे मिलता वो नजर ईमान की थी।
रुत जो आई सब लुटाया बात ये सम्मान की थी।।
तानो को सुनकर जो रूठु ऐसा मेरा तन नही हैं।।
अपनो से जो दूर भागू ऐसा मेरा मन नही हैं।1।
उसका मिलना भी क्या मिलना आज मिलके रो रहा हूँ।
जो कभी रहती जिगर में पास पाकर खो रहा हूँ।।
पहनी थी जो हाथ चूड़ी उसकी भी खन खन नही हैं।
अपनो से जो दूर भागू ऐसा मेरा मन नही हैं।2।
प्रेम का बनकर पुजारी मंदिरो को खोजता हूँ।
ईश को हृदय बसाकर देवता को पूजता हूँ।।
पायलो में बांधे घुँघरू घुँघरू की छन छन नही हैं।
अपनो से जो दूर भागू ऐसा मेरा मन नही हैं।3।
- नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर ( मध्यप्रदेश )
सम्पर्क:- 8109643725
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