*हरिहरण छंद*
शिल्प~
[8,8,8,8 प्रत्येक चरण की हर यति पर,लघु लघु समतुकांत सम वर्ण]
शारदे माँ प्यार कर ,
दया से निहार कर,
वीणा की झंकार कर,
काव्य में सुधार कर।
विनती स्वीकार कर,
अब न अबार कर,
गल्तियां बिसार कर,
दोष तार तार कर।।
दया दृष्टि डाल कर,
शारदे कमाल कर,
चरणों में पालकर,
जीवन निहाल कर।
विपदा को टाल कर,
मन खुशहाल कर,
सोम को सम्हाल कर,
आँचल को ढालकर।।
~ शैलेन्द्र खरे "सोम
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