Thursday, December 27, 2018

गज़ल़ :- श्री शैलेन्द्र खरे "सोम" जी

-◆ग़ज़ल◆

काफ़िया-अर
रदीफ़- जा रहा है
बह्र-1222 1222 122

मेरे   दिल  को  दुखाकर  जा रहा है
कोई  मुझको   सताकर   जा रहा है

बिखरती  जा  रही   है  रोशनी  सी
वो जो  यूं मुस्कुराकर    जा  रहा है

हुई  अब  इसलिए नासाज़ तबियत
कोई  बिजली  गिराकर  जा रहा है

निकल आये जो आँसू क्या करूँ मैं
कोई   सपनें   चुराकर   जा  रहा है

हुई कुछ आज हरक़त संग-दिल में
मुझे  कोई     रुलाकर   जा  रहा है

फ़कत अब"सोम"क्यों रोकें उसे जो
सभी  वादे   भुलाकर   जा   रहा है

                    ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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