Saturday, April 20, 2019

आ० हीरालाल यादव जी

*ग़ज़ल*
212  212  212

ख़ुद ही ख़ुद से अदावत न कर।
पत्थरों    से   मुहब्बत   न कर।

ख़ुद  में  भी झाँक कर देख ले
हर घड़ी  बस शिकायत न कर।

हाथ   आये  हैं  किसके यहाँ
चाँद  तारों  की चाहत न कर।

दिल दुखा कर के अपनों का यूँ
घर से ख़ुशियों को रुखसत न कर।

कर न नज़र-ए-इनायत भले
इल्तिज़ा है कि नफ़रत न कर।

पड़ के लालच में  *हीरा* किसी
नफ़रतों की तिजारत न कर।

                  हीरालाल

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