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_ मुक्तक_
*पीर*
*पीर* दिल की तो मिटती नहीं दोस्तो।
उम्र मेरी भी घटती नहीं दोस्तो।।
राज दिल में बहुत से समेटे हुये।
मेरी मुझसे ही पटती नहीं दोस्तो।।1।।
दर्द दिल में समेटे चले जायेंगे।
याद रह रहके उनको सदा आयेंगे।।
वक्त की बात को कोई समझे नहीं।
बेवफा की कहानी न दोहराएंगे।।2।।
पीर पर्वत से भारी मुझे लग रही।
मेरे दिल में बसी वो मुझे ठग रही।।
दूर कैसे करें कुछ बताओ मुझे।
मैं यहाँ जग रहा वो वहाँ जग रही।।3।।
--- नीतेन्द्र सिंह परमार "भारत"
छतरपुर [ मध्यप्रदेश ]
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