Friday, April 19, 2019

आ० हीरालाल यादव जी

2122 1212 22
इश्क  का  रोग है बुरा साहिब।
थक गये ढूँढ सब दवा साहिब।

रोक   पाया   है  कौन  होने  से
जो मुकद्दर में है लिखा साहिब।

चार  पैसे  कमा  के  दुनिया में
आप  तो हो गये ख़ुदा साहिब।

गौर तो कीजिए, कभी सुनिए
हम ग़रीबों की इल्तिज़ा साहिब।

शक्लो-सूरत नहीं भली लेकिन
आदमी हूँ बहुत भला साहिब।

दुख का आना हमारे जीवन में
रोज का ही है सिलसिला साहिब।

दिल में शिकवा-गिला नहीं कुछ तो
दरमियाँ क्यों है फासला साहिब।

                  हीरालाल

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