*ग़ज़ल*
2122 1122 22/ 212
दिल न यूँ हद से गुज़रने दे मुझे।
अपने आपे में ही रहने दे मुझे।
दर्दो-ग़म भूल ज़माने के सब
दो घड़ी बनने सँवरने दे मुझे।
ख्वाहिशें डूबने की हैं मेरी
इश्के दरिया में उतरने दे मुझे।
है मुसलसल बना जो जीवन में
अब तो उस ग़म से उबरने दे मुझे।
रह तू आबाद मेरा ग़म बत कर
मैं बिखरता हू् बिखरने दे मुझे।
हीरालाल
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