Sunday, September 8, 2019

ग़ज़ल :- सवीना सवी जी

221-2121-1221-212
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राहों के ख़ार हम भी हटाने नही गये
झूठों से हाथ फिर से मिलाने नहीं गये
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यादें सहेज लीं मुहब्बत के दिनों की
उस बेवफ़ा को हम भी मनाने नहीं  गये
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उल्फ़त की राह चलके मिला भी तो क्या मिला
इल्ज़ाम है कि सर को  झुकाने नहीं  गये
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ऐसा नहीं हुआ कि प्यार  हार ही गया
वो नाज़ वो अदा के ज़माने नहीं गये
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अश्कों से धो के देख लिया दामन-ए- वफा
लेकिन ज़रा भी दाग़  पुराने  नहीं गये
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है इक कली शज़र पे अभी तक खिली हुई
पतझर से दिन  *सवी* वो सुहाने नहीं गये
            सवीना सवी 🌹

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