221-2121-1221-212
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राहों के ख़ार हम भी हटाने नही गये
झूठों से हाथ फिर से मिलाने नहीं गये
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यादें सहेज लीं मुहब्बत के दिनों की
उस बेवफ़ा को हम भी मनाने नहीं गये
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उल्फ़त की राह चलके मिला भी तो क्या मिला
इल्ज़ाम है कि सर को झुकाने नहीं गये
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ऐसा नहीं हुआ कि प्यार हार ही गया
वो नाज़ वो अदा के ज़माने नहीं गये
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अश्कों से धो के देख लिया दामन-ए- वफा
लेकिन ज़रा भी दाग़ पुराने नहीं गये
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है इक कली शज़र पे अभी तक खिली हुई
पतझर से दिन *सवी* वो सुहाने नहीं गये
सवीना सवी 🌹
आप सभी के लिए एक नये रूप में। साहित्यिक सांस्कृतिक सामाजिक जानकारी। प्रदेश अध्यक्ष नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत " विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत छतरपुर ( मध्यप्रदेश )
Sunday, September 8, 2019
ग़ज़ल :- सवीना सवी जी
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