*ग़ज़ल*
2122 1212 22/112
चैन जिसकी ख़ुशी से मिलता है।
क्यों वही बेरुख़ी से मिलता है।
हँस के करता हूँ मैं क़बूल उसे
जो भी कुछ ज़िन्दगी से मिलता है।
मेरी राहों का हर सिरा दिलबर
जा के तेरी गली से मिलता है।
मुझको संसार में सुकूँ या रब
बस तेरी बंदगी से मिलता है।
आज़ मतलब बिना कहाँ *हीरा*
जग में कोई किसी से मिलता है।
हीरालाल
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