*1. शुद्ध जनक छंद*
तारा नयन कमाल है|
सुन्दर सूरत देखकर|
बिगड़ा मेरा हाल है|
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*2- पूर्व जनक छंद - पहले दो पद तुकांत*
मनभावन सा साथ है|
संग मीत का हाथ है|
जीवन सुखमय प्रेम से|
*3- उत्तर जनक छंद - अंत के दो पद तुकांत*
विरहा मन का कह रहा|
मधुर प्रीत ही सार है|
जग झंझट बेकार है|
*4. घन जनक छंद*
प्रेम दान भी दीजिए|
स्नेह सभी से कीजिए|
सेवा भाव भर लीजिए|
*5- सरल जनक छंद - तीनों पद अतुकांत।*
प्रेम हृदय का भोज है|
सब जन में सहकार हो|
यही सत्य सब जान लें|
*© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'*
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