*ग़ज़ल*
1212 1122 1212 22
अगर ख़ुदा की न रहमत भरी नज़र होगी।
जहां में कैसे किसी की गुज़र-बसर होगी।
चुभेगा सब की निगाहों में वो यकीनन ही
सदाकतों की यहाँ जिसकी भी डगर होगी।
सजाये रखते हैं इस आस पे डगर दिल की
कभी तो यार की इस राह से ग़ुज़र होगी।
सहोगे दर्दे जुदाई मेरी तरह जब तुम
तुम्हारी आँख भी अश्कों से तरबतर होगी।
डुबाने वाले मेरे दिल को ग़म के दरिया में
तेरी ख़ुशी की दुआ दिल में उम्र भर होगी।
बुझेगी कैसे भला प्यास रूह की आख़िर
मिलन की रात अगर इतनी मुख़्तसर होगी।
दिखेंगी कैसे ज़मीनी हक़ीक़तें *हीरा*
जो आसमान पे हर पल गड़ी नज़र होगी।
*हीरालाल*
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