Thursday, December 20, 2018

आ:- जितेंद्र सिंह दिव्या जी

*गीत*

*मापनी~*
212 2212 2212 2212

जो खड़े सैनिक वहाँ नित शान मेरे देश की|
कब डरे है शत्रुओं से जय सदा परिवेश की||

सामने हो काल चाहे भाल पर माँ भारती|
शोणितों की बूंद से जाबांज करते आरती|
शीश धड़ से कट गये पर लड़ गये वो जंग को|
शत्रु की बोटी कँपी लख सामने  उत्तुंग को|

धूप वर्षा में खड़े गति कम नहीं आवेश की|
कब डरे है शत्रुओं से जय सदा परिवेश की||

देश पर अनुराग ऐसा फूल  की सेजें  तजी|
धन्य समझा स्वयं को तब देह कांटों पर सजी||
भूलती है नित सियासत सैन्य के उपकार को|
याद रक्खेगी कलम तो ओज के विस्तार को||

छू सकी ना कल्पना जो वो मिशाले पेश की|
कब डरे है शत्रुओं से जय सदा परिवेश की||

सिंहनी के  दूध का  सच कर्ज हावी था बड़ा।
पीठ पर ना घाव थे  वो जंग  को  ऐसे लड़ा।।
चांद  तारे  सूर्य  धरती  गान  करते  वीरता|
भारती के लाल नित रिपु वक्ष को यों चीरता।।

है नमन हर मात को अरु राखियाँ संदेश की।
कब डरे है शत्रुओं से जय सदा परिवेश की।।

~जितेन्द्र चौहान "दिव्य"

2 comments:

  1. वाह वाह मित्र। लाजवाब । माँ की कृपा बनी रहे।

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  2. बहुत बहुत आभार आदरणीय दादा श्री

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