Wednesday, September 18, 2019

18/09/2019 समीक्षक:- जितेन्द्र दिव्य जी

*आज की समीक्षा उल्लाला छंद में*
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वंदन  बारंबार  है, चरण  धूल  गुरु  सोम  की।
जब से पाया आपको,शक्ति फलित नित ओम की।।
दीजे  आर्शीर्वाद  को, करूँ  समीक्षा  आज मैं।
भूल चूक मेरी क्षमा,सफल अंतत: काज मैं।।

अलंकार अनुपम छटा ,लिए अनुज प्रिय तेज जी
जपते राधे  श्याम को, छोड़ी  ज्यों  ही  सेज जी
लेकर  दोहा  छंद  को ,आये  निषादराज  जी।
भाव शिल्प कथ ठीक है,टंकण त्रुटियाँ आज भी।।

भावुक दोहा छंद ले, सुमिर प्रात जगदीश को।
सुंदर सबका हो दिवस, झुका रहे है शीश को|
टंकण त्रुटियाँ भी दिखे,करना मीत सुधार को ।
कैसे मन निर्मल रहे,निर्मल  दा कह  सार को ।|

महिमा जसुदा नंद की, शचि दीदी बतला रहीं।
भाव कथ्य अनुपम रहा,टंकण त्रुटियाँ हैं कहीं||
आये  दादा  सरस दा, छंद  चंद्रिका  साथ में|
अद्भुत  भाव  विखेरते ,जो  भी  आया पाथ में|।

मातु शारदे की वंदना, मनु करते हैं ध्यान से।
चक्षु द्वार माँ  खोलिए, अपनी वीणा तान से।।
टंकण त्रुटियाँ दिख रही, इस घनाक्षरी छंद में।
शुचि दी के दोहे कहे, मैं नहीं नहीं हूँ बंध में|।

पन्ना ने पन्ना लिखा,गौरव क्षण इतिहास का।
त्याग मूर्ति करुणा दया,भरा जोश उल्लास का।।
लिखा फुलारा मीत ने, छंद  सवैया  ध्यान से|
बहुत बधाई आपको, अच्छा  लगा विधान से।।

राधेश्यामी  छंद में ,कींन्ह  वंदना  शारदे|
धस्माना दी कह रहीं,मातु मुझे भी सार दे||
भाव कथ्य तो ठीक है,गडबड़ लगा विधान जी|
करूँ निवेदन आप से, आगे देना ध्यान जी||

भावों का झरना मिला, झरना जी की बात में|
बेटी सबकुछ त्यागती,ढल जाती अनुपात में||
कुण्डलिया ले आ गए, बैरागी बाबा सुनो|
दिया जोर है कर्म पर,त्याग महत्वा को गुनो||

आई दीदी सीप जी,लिए गजल को साथ में|
किया करारा वार सच,फैशन है हर पाथ में||
आज विषैले आचरण,लगा रहे नित दाग को|
वर्तमान  परिवेश  ये, हवा  दे रहा आग को||

अंतिम रचना रश्मि दी, देती शुभ संदेश को|
सेवा  सबसे  है बड़ी, नहीं  भूलना  देश को||
दिव्य समापन पर चला, क्षमा कीजिए भूल को|
नमन मंच को मैं करूँ, गुरुवर दो पग धूल को||

~जितेन्द्र चौहान "दिव्य"

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