Tuesday, September 17, 2019

ग़ज़ल शम्भू लाल जालान "निराला"

शम्भू लाल जालान *निराला*

        🌹  ग़ज़ल   🌹

जो  यादों का तेरी सहारा न होता
किसी तौर अपना गुज़ारा न होता।

न आंखें बरसती न यूं कांपते लब
ज़ुदाई का ग़र वो नज़ारा न होता।

अगर तेरे दामन की हसरत न होती
तो आवाज़ देकर पुकारा न होता।

न चलती कभी नफ़रतों की ये आंधी
जो इसां ने इसां को मारा न होता।

अगर जान जाता तेरी बेवफ़ाई
कभी तुझको दिल में उतारा न होता।

*निराला* समय पर जो तुम चेत जाते
तो धोखा कभी भी दुबारा न होता।

🌹🌹🌹 निराला  🌹🌹🌹

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