*कुंडलिया*
(1)
आया जग में मीत जो,जायेगा सब छोड़||
तुच्छ सोच से दूर रह, सद्कर्मो को जोड़|
सद्कर्मो को जोड़,मोड़ जीवन की धारा|
सबसे रख अपनत्व, रहेगा नैनन तारा||
कहे दिव्य समझाय,अहं में क्यों भरमाया|
मोती चुग ले हंस, इसी कारण तू आया||
(2)
आया लिपट तिरंग में ,सीमा से जब वीर|
धरती अम्बर चांद भी, रोये खोकर धीर||
रोये खोकर धीर, पीर ये किसने जानी|
कुर्सी पा मद चूर, करें कैसे अगवानी||
कहें दिव्य कर जोड़,लाल जिस माँ ने ज्याया|
रखी दूध की लाज, नाम रौशन कर आया
(3)
आया फोन प्रभात में, माँ से कीन्ही बात|
आऊँगा मैं एक दिन,लेकर नव सौगात||
लेकर नव सौगात,हुई खुश तब महतारी|
देख रहे सब वाट, ईश की महिमा न्यारी||
कहे दिव्य भर नैन, अँधेरा घर में छाया|
लिपट तिरंगा संग, वीर सीमा से आया||
(4)
जो आया सो लिख दिया, ले गुरुवर का नाम|
चरण धूल माया बड़ी, करता कोटि प्रणाम||
करता कोटि प्रणाम,हाथ सिर पर रख दीजे|
मैं बालक अज्ञान, उजाला गुरुवर कीजे||
करें दिव्य अरदास, दास पर करना छाया|
कीन्हीं नैया पार, आपके दर जो आया||
(5)
आया क्या बदलाव है, पूछ रहा यह देश|
स्वारथ में अंधे हुए, बिगड़ रहा परिवेश||
बिगड़ रहा परिवेश, सैन्य पर पत्थर मारें|
कोई दे बतलाय ,धैर्य हम कैसे धारें||
होगा अब तो न्याय,यही भाषण सुन पाया|
मरते नित निर्दोष, कंठ फिर से भर आया||
(6)
आया खत ले डाकिया, सैनिक मन हर्षाय|
प्राण प्रिये ने क्या लिखा,पत को खोलत जाय||
पत को खोलत जाय ,नाथ कब घर आओगे|
तरस रहे है नैन ,प्रेम कब बरसाओगे||
कहे दिव्य सर्वस्य, देश पर जाय लुटाया|
कर उसका सम्मान, लौटकर जो नहिं आया||
(7)
आया हूँ मैं सीखने, कर लेना स्वीकार|
चाहत हिय में पल रही,पाऊँ सबका प्यार||
पाऊँ सबका प्यार, विनय मेरी सुन लेना|
हो जाए कुछ भूल, क्षमा मुझको कर देना||
कहे दिव्य कर जोड़,आस का दीप जलाया|
लेकर बहु उम्मीद,आपके दर पर आया||
(8)
आया पावन पर्व है, होली का त्यौहार|
भूल आपसी बैर को,कर लो सबसे प्यार||
कर लो सबसे प्यार,रंग जीवन में भर के|
हो जाये सब एक, नेक काम को कर के||
कहे दिव्य हरषाय,दूर हो गम का साया|
यही सिखाने मीत, पर्व होली का आया||
(9)
आया कहते हैं उसे, करती घर जो काज|
सोचा इसको बहुत मैं,समझ सका तब राज||
समझ सका तब राज,धाय पन्ना सी होती|
चंदन का कर त्याग,राष्ट्र हित सपने बोती||
कहे दिव्य कर जोड़, खूब कर्तव्य निभाया|
जय हो भारत देश, जहाँ पर ऐसी आया||
(10)
आया मिलने मीत वह, छोड़ पुरानी बात|
पत्थर दिखता मोम अब,मिले भ्रात से भ्रात||
मिले भ्रात से भ्रात, प्रेम गंगा बह आई|
किया शत्रु पर बार, सुरक्षित राणा जाई||
कहे दिव्य हरषाय ,ईश कौतुक दिखलाया|
बदल गया इतिहास,भ्रात जब मिलने आया||
(11)
आया कैसा दौर है ,हुए स्वयं से दूर|
कपड़े तन से हट गये, आग दिखे भरपूर||
आग दिखे भरपूर, सभ्यता अपनी खोई|
रहे पाप नित ढोय ,फसल ये किसने बोई|
कहे दिव्य दुखियाय,नंगपन चहुँदिश छाया|
कीजे तनिक विचार, दौर ये कैसा आया||
(12)
आया संकट यदि कही,दोषी हम अरु आप|
आने वाली पीढ़ियाँ,देगी पल पल श्राप||
देगी पल पल श्राप,पाप का घट जो छोड़ा|
बदल मीत परिवेश, जतन कर थोड़ा थोड़ा||
कहे दिव्य समझाय,वासना क्यों अपनाया|
सब हो गंगा पुत्र, दोष मन कैसे आया||
(13)
आया मौसम प्यार का,गांठ हृदय की खोल|
सबसे हिलमिल मीत चल,अमृत सा दे घोल||
अमृत सा दे घोल,त्याग की लिख परिभाषा|
तेरे कारज सिद्ध, पूर्ण हो हर अभिलाषा|
कहे दिव्य कर जोड़,बनो तरुवर सी छाया|
लिखो प्रेम के गीत,मिलन का मौसम आया||
(14)
आया तेरे द्वार मैं, मैया लेकर आस|
भाव लेखनी में भरो, मुझे बना लो दास||
मुझे बना लो दास ,प्यास माँ तुम हो मेरी|
रखो पुत्र की लाज, करो मत पल की देरी||
दिव्य विनय कर जोड़,दूर कर दो सब माया|
मिले चरण की धूल,लाल अब दर पर आया||
(15)
आया नर तू किस लिए,कर ले तनिक विचार|
मन की तृष्णा छोड़कर,समझ जगत का सार||
समझ जगत का सार, व्यर्थ क्यों जीवन खोये|
पाल रहा जंजाल, रात दिन यों ही रोये||
कहे दिव्य कर जोड़,सत्य को समझ न पाया|
जाये खाली हाथ, यहाँ पर जैसे आया||
(16)
आया कपटी भेष धरि,रावण सिय के पास|
भिक्षा मैया दे मुझे, करन लगा अरदास||
करन लगा अरदास, प्रभू की लीला न्यारी|
होंनी है बलवान, रहेगी होकर सारी||
लीला अपरंपार, टाल को उसको पाया|
लंका डूबी गर्त, काल जब नियरे आया||
17-
आया न निमंत्रण प्रिये, जाना फिर क्या ठीक|
पति का हो अपमान जहँ, नहीं जगह वह नींक||
नहीं जगह वह नींक, छोड़ हट अब तो प्यारी|
सबको लिया बुलाय,तोरि बाबुल मत मारी||
रहे शंभु समझाय, समझ कछु भेद न पाया|
पहुँची वह हठ ठान, भस्म का नम्बर आया||
~जितेन्द्र चौहान "दिव्य"