◆ग़ज़ल◆
212 212 212 212
काफ़िया-आने
रदीफ़-लगे
क्या कहें रंग क्या क्या दिखाने लगे
देखकर वो हमें मुस्कुराने लगे
भूलने की उन्हें जब से कीं कोशिशें
तब से वो और भी याद आने लगे
छोड़िये क्या कहें गैर की बात अब
हर घड़ी वो हमें आजमाने लगे
हाल पर मेरे वो मुस्कुराने लगा
आपबीती जिसे हम सुनाने लगे
वास्ते जिनके सब कुछ गए हार हम
आज वो ही हमें तो रुलाने लगे
"सोम" दिल पे हमारे गिरीं बिजलियां
आप उठके जो महफ़िल से जाने लगे
~शैलेन्द्र खरे"सोम"
212 212 212 212
काफ़िया-आने
रदीफ़-लगे
क्या कहें रंग क्या क्या दिखाने लगे
देखकर वो हमें मुस्कुराने लगे
भूलने की उन्हें जब से कीं कोशिशें
तब से वो और भी याद आने लगे
छोड़िये क्या कहें गैर की बात अब
हर घड़ी वो हमें आजमाने लगे
हाल पर मेरे वो मुस्कुराने लगा
आपबीती जिसे हम सुनाने लगे
वास्ते जिनके सब कुछ गए हार हम
आज वो ही हमें तो रुलाने लगे
"सोम" दिल पे हमारे गिरीं बिजलियां
आप उठके जो महफ़िल से जाने लगे
~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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