Thursday, January 24, 2019

कुण्डलिया :- दिव्या जी

*कुंडलिया*

(1)
आया जग में मीत जो,जायेगा सब छोड़||
तुच्छ सोच से दूर रह, सद्कर्मो को जोड़|
सद्कर्मो को जोड़,मोड़ जीवन  की  धारा|
सबसे रख  अपनत्व, रहेगा  नैनन  तारा||
कहे दिव्य समझाय,अहं में क्यों भरमाया|
मोती चुग ले  हंस, इसी  कारण तू आया||

(2)
आया  लिपट  तिरंग  में ,सीमा  से  जब वीर|
धरती   अम्बर   चांद  भी, रोये  खोकर धीर||
रोये   खोकर   धीर, पीर   ये  किसने  जानी|
कुर्सी   पा   मद  चूर,  करें   कैसे  अगवानी||
कहें दिव्य कर जोड़,लाल जिस माँ ने ज्याया|
रखी  दूध  की  लाज, नाम रौशन कर आया

(3)
आया फोन प्रभात में, माँ से कीन्ही बात|
आऊँगा  मैं  एक दिन,लेकर नव सौगात||
लेकर नव सौगात,हुई खुश तब महतारी|
देख रहे सब वाट, ईश की महिमा न्यारी||
कहे दिव्य भर नैन, अँधेरा  घर में छाया|
लिपट तिरंगा संग, वीर सीमा  से आया||

(4)
जो आया सो लिख दिया, ले गुरुवर का नाम|
चरण धूल माया  बड़ी, करता  कोटि  प्रणाम||
करता  कोटि  प्रणाम,हाथ सिर पर रख दीजे|
मैं   बालक   अज्ञान, उजाला  गुरुवर  कीजे||
करें  दिव्य  अरदास, दास  पर करना छाया|
कीन्हीं  नैया   पार, आपके  दर  जो  आया||

(5)
आया क्या  बदलाव है, पूछ  रहा यह देश|
स्वारथ  में  अंधे  हुए, बिगड़ रहा परिवेश||
बिगड़ रहा  परिवेश, सैन्य  पर पत्थर मारें|
कोई  दे   बतलाय  ,धैर्य   हम  कैसे  धारें||
होगा अब तो न्याय,यही भाषण सुन पाया|
मरते नित निर्दोष, कंठ फिर से भर  आया||

(6)
आया  खत  ले डाकिया, सैनिक  मन  हर्षाय|
प्राण प्रिये ने क्या लिखा,पत को खोलत जाय||
पत को  खोलत जाय ,नाथ  कब घर आओगे|
तरस   रहे   है  नैन  ,प्रेम   कब   बरसाओगे||
कहे  दिव्य सर्वस्य, देश  पर  जाय  लुटाया|
कर उसका सम्मान, लौटकर जो नहिं आया||

(7)
आया  हूँ  मैं  सीखने, कर  लेना  स्वीकार|
चाहत हिय में पल रही,पाऊँ सबका प्यार||
पाऊँ  सबका  प्यार, विनय मेरी सुन लेना|
हो जाए कुछ भूल, क्षमा  मुझको कर देना||
कहे दिव्य कर जोड़,आस का दीप जलाया|
लेकर बहु उम्मीद,आपके  दर  पर आया||

(8)
आया  पावन  पर्व  है, होली  का त्यौहार|
भूल आपसी बैर को,कर  लो सबसे प्यार||
कर लो सबसे  प्यार,रंग जीवन में भर के|
हो जाये सब  एक, नेक  काम को कर के||
कहे दिव्य  हरषाय,दूर  हो गम का साया|
यही सिखाने मीत, पर्व  होली  का आया||

(9)
आया  कहते  हैं  उसे, करती  घर जो काज|
सोचा इसको बहुत मैं,समझ सका तब राज||
समझ सका तब राज,धाय पन्ना  सी  होती|
चंदन का कर त्याग,राष्ट्र हित  सपने  बोती||
कहे दिव्य कर जोड़, खूब  कर्तव्य  निभाया|
जय हो  भारत देश, जहाँ पर  ऐसी  आया||

(10)
आया  मिलने  मीत  वह, छोड़ पुरानी बात|
पत्थर दिखता मोम अब,मिले भ्रात से भ्रात||
मिले  भ्रात  से  भ्रात,  प्रेम  गंगा  बह  आई|
किया  शत्रु पर  बार, सुरक्षित  राणा  जाई||
कहे दिव्य हरषाय ,ईश  कौतुक दिखलाया|
बदल गया इतिहास,भ्रात जब मिलने आया||

(11)
आया  कैसा   दौर  है  ,हुए   स्वयं  से दूर|
कपड़े  तन  से  हट  गये, आग दिखे भरपूर||
आग  दिखे  भरपूर,  सभ्यता   अपनी खोई|
रहे  पाप  नित  ढोय ,फसल ये किसने बोई|
कहे दिव्य दुखियाय,नंगपन  चहुँदिश छाया|
कीजे  तनिक  विचार, दौर ये  कैसा आया||

(12)
आया संकट यदि कही,दोषी हम अरु आप|
आने  वाली  पीढ़ियाँ,देगी  पल  पल  श्राप||
देगी पल पल श्राप,पाप का  घट  जो छोड़ा|
बदल मीत परिवेश, जतन कर थोड़ा थोड़ा||
कहे दिव्य समझाय,वासना क्यों अपनाया|
सब  हो गंगा  पुत्र, दोष  मन  कैसे  आया||

(13)
आया मौसम प्यार का,गांठ हृदय की खोल|
सबसे हिलमिल मीत चल,अमृत सा दे घोल||
अमृत सा दे घोल,त्याग की लिख परिभाषा|
तेरे  कारज  सिद्ध, पूर्ण  हो  हर  अभिलाषा|
कहे दिव्य कर जोड़,बनो तरुवर सी छाया|
लिखो प्रेम के गीत,मिलन का मौसम आया||

(14)
आया   तेरे   द्वार  मैं,  मैया   लेकर  आस|
भाव  लेखनी में  भरो,  मुझे  बना  लो दास||
मुझे बना  लो  दास ,प्यास  माँ  तुम हो मेरी|
रखो पुत्र की  लाज, करो  मत  पल की देरी||
दिव्य विनय कर जोड़,दूर कर दो सब माया|
मिले चरण की धूल,लाल अब दर पर आया||

(15)
आया नर तू किस  लिए,कर  ले तनिक विचार|
मन की तृष्णा छोड़कर,समझ  जगत का सार||
समझ जगत का सार, व्यर्थ क्यों जीवन खोये|
पाल   रहा   जंजाल, रात  दिन  यों  ही  रोये||
कहे दिव्य कर जोड़,सत्य  को समझ न पाया|
जाये   खाली   हाथ,  यहाँ  पर  जैसे  आया||

(16)
आया कपटी भेष धरि,रावण सिय के पास|
भिक्षा मैया दे  मुझे, करन  लगा  अरदास||
करन लगा अरदास, प्रभू  की  लीला न्यारी|
होंनी   है  बलवान,   रहेगी   होकर  सारी||
लीला   अपरंपार,  टाल  को  उसको  पाया|
लंका  डूबी गर्त,  काल  जब  नियरे आया||

17-

आया न निमंत्रण प्रिये, जाना फिर क्या ठीक|
पति का हो अपमान जहँ, नहीं जगह वह नींक||
नहीं जगह वह नींक, छोड़ हट अब तो प्यारी|
सबको लिया बुलाय,तोरि बाबुल  मत मारी||
रहे शंभु समझाय, समझ कछु भेद न पाया|
पहुँची वह हठ ठान, भस्म का  नम्बर आया||

~जितेन्द्र चौहान "दिव्य"

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