Friday, January 4, 2019

आ० इन्द्रजीत दीक्षित विरल जी







चौकडिया छंद

गोरी कड़ गई काट किनारो ।
                    दैखत बीतो पारो।।
धरो न बांधे रावै एकऊ ।
                    मोरो भीतर बारो।।
हंसी करत सब पुरा भरे के।
                      बूढ़ो हो य बारो।।
कहे "विरल" अब कैसे होने।
                    मौरो राम गुजारो।।

इंद्रजीत दीक्षित "विरल"
खजुराहो छतरपुर 

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