अपने मन की वेदना भी किसको हम सुनायेंगे।
गीत गाने आ गया हूँ गीत गाते जायेगे।।
प्रेम अब पत्तों सा झड़ता क्यों हमें दिखने लगा।
दीवारों में कैद होकर आज क्यों बिकने लगा।।
विरहा के जो स्वर थे विरही वो कहा से लायेगे।।
गीत गाने आ गया हूँ गीत गाते जायेगे।।1।।
कुछ समय की चाल बदली,कुछ चरित्रों की डगर।
रोकना चाहा जो हमने,रुक सका न उम्रभर।।
काटों के पथ पर यहा हम रोज बड़ते जायेगे।।
गीत गाने आ गया हूँ गीत गाते जायेगे।।2।।
मन में था उत्साह मेरे,क्यों ये कम होने लगा।।
बैठ कर अंधेरी बस्ती,में तो क्यों रोने लगा।।
आसमाँ को ओर नज़रे,तारों से बतियायेगें।।
गीत गाने आ गया हूँ गीत गाते जायेगे।।3।।
ख़त स्याही वाले हमको,अब यहा मिलते नही।
आधुनिक तकनीक से भी,चेहरे अब खिलते नही।।
फेसबुक व्हाट्स ऐप सें हम,दिल कहा बहलायेगें।।
गीत गाने आ गया हूँ गीत गाते जायेगे।।4।।
धर्म की रफ्तार धीमी,क्यों सदा करने लगे।
बैठकर मंदिर पुजारी जेब वो भरने लगे।।
सत्यता सद्भावना सत्कर्म कैसे आयेगे।।
गीत गाने आ गया हूँ गीत गाते जायेगे।।5।।
- नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर ( मध्यप्रदेश )
सम्पर्क सूत्र :- 8109643725
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