ग़ज़ल
1212 1122 1212 22
किसी के प्यार के सपने सजा रहा हूँ मैं।
कठिन है राह, मगर आज़मा रहा हूँ मैं।
सफर कटेगा वहाँ कैसे ये ख़ुदा जाने
हरेक मोड़ जहाँ मात खा रहा हूँ मैं।
ख़ुशी से कह दो कभी और वो यहाँ आये
अभी तो दर्द से रिश्ता निभा रहा हूँ मैं।
ख़तायें भूल मेरी पास फिर चले आओ
दुखों में जीस्त ये तुम बिन बिता रहा हूँ मैं।
बचाना लाज मेरी तू ख़ुदा ज़माने में
तेरे यकीन पे फिर घर बना रहा हूँ मैं।
दिया है साथ मेरा कब भला मुकद्दर ने
फिजूल आस का दीपक जला रहा हूँ मैं।
हीरालाल
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