Sunday, January 6, 2019

गीत शैलेन्द्र खरे"सोम"

◆गीत(रूद्र-उत्पत्ति)◆

(एक डाल पे तोता बोले.....धुन आधारित)

ब्रह्मा जी बोले भोले से, विनय  करत यूं बैना
मेरे सँग में सृष्टि  रचाओ, मान जाओ त्रिनैना.....
                        खोलो नैना.....खोलो नैना.....

1-तब भोले उर में उमंग भर,
                सृष्टि रचें अति न्यारी।
   शिव जैसे ही सभी जीव थे,
               जटा  जूट   के  धारी।।
   इतने जीव बनाये। चौदह भुवनों छाये।
इत-उत देखो नाचें गावें, इन रूद्रन की सेना....
                       खोलो नैना.....खोलो नैना....

2-ब्रह्मा लख बोले शिवजी से,
                      ध्यान तनिक तो दीजे।
    मरण धर्म लागू हो जिस पर,
                           ऐसी रचना कीजे।।
    ब्रह्मा जब यूं बोले।शिव मन ही मन डोले।
शिव जी बोले हमसे सृष्टि,ऐसी कबहुँ रचै ना....
                     खोलो नैना........खोलो नैना....

3-कहने लगे कैलाशपति तब,
                          अब हम नहीं रचेंगे।
   जिन जिन को मैं रच हि चुका वो,
                          मेरे      संग   रहेंगे।।
   ऐसे रूद्र रचाये।शैलेन्द्र शिव गुण गाये।
श्री शिवमहापुराण प्रेम से सप्ताध्याय पढ़ लेना.....                 खोलो नैना.......खोलो नैना....

                                     
(शिवजी द्वारा जो रचना की गई उनकी संख्या
  ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह थी,जो एक रूद्री
के नाम से जाने गए और शिव जी ने इन रुद्रों को
अपने साथ ले लिया)
                                       ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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