*भारत कितना कष्ट हुआ।*
याद आ रही हमको फिर,
प्यारे अपने गाँव की।
पेड़ नीम के नीचे बैठे,
घनी घनी सी छाँव की।।
छोना छप्पर टूटे खप्पर,
वाली एक दहलान थी।
थोड़ी आगे जाकर देखा,
बसती जिसमे जान थी।।
मिट्टी वाले बर्तन खोये,
फ्रिज आने के चक्कर में।
एक गिलास और ठंडा पानी,
नीबू के संग शक्कर में।।
शर्बत का तो स्वाद नही हैं,
आया कोको कोला हैं।
मास्टर साहब हाथ में डंडा,
और पहनकर झोला है।।
हाथों में मोबाइल पाया,
जोड़ घटाना भूल गये।
आधुनिकता का मिला जमाना,
अंग्रेजी स्कूल गये।।
संस्कारों की परिपाटी का,
लगता सबकुछ नष्ट हुआ।
आगे हाल नही बतलाता,
*भारत* कितना कष्ट हुआ।।
- नीतेन्द्र सिंह परमार " भारत "
छतरपुर ( मध्यप्रदेश )
सम्पर्क सूत्र :- 8109643725
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